आदियोगी आलयम में महाभारत की भव्यता से लेकर कठोर सादगी से भरे सम्यमा तक दो कार्यक्रम हुए। आठ-आठ दिन के दोनों ही कार्यक्रम एक दूसरे से पूरी तरह भिन्न थे। चटक व भव्य साड़ियों और राजसी वेशभूषा से लेकर शांत श्वेत रंग। रात भर के लगातार नृत्य से लेकर लोगों का अपनी पाशविक प्रकृति पर काम करना। और उसके बाद बारी भोजन की। सम्यमा में तो कोई भोजन भूल ही नहीं सकता। महाभारत के दौरान हमने विभिन्न तरह के स्वाद और सुगंधों का जायका लिया, जिसमें 15 तरह के व्यंजन पड़ोसे जाते, जबकि सम्यमा में सिर्फ तीन तरह का खाना था - कंजी, कंजी और कंजी।

यहां 1370 समर्पित साधक शारीरिक अस्थिरता से आंतरिक निश्चलता की ओर बेहतरीन तरीके से बढ़ते नजर आते हैं। पिछले कई सालों से स्पंदा हॉल में होने वाले इस कार्यक्रम के बाद यह पहला सम्यमा है, जो आदियोगी आलयम में हुआ। हालांकि इस बार भी उतने ही लोग थे जितने पहले हुआ करते थे, लेकिन इस बार जगह पहले की तुलना में ढाई गुना ज्यादा है। जहां तक इसमें शामिल साधकों के अनुभवों का सवाल है तो वह स्पष्ट रूप से झलकता है।

स्पंदा का शाब्दिक अर्थ है- आदिम या मौलिक। शुरू में स्पंदा हॉल का निर्माण भाव स्पंदन और सम्यमा कार्यक्रम के लिए हुआ था, उसमें भी सम्यमा से ज्यादा भाव स्पंदन के लिए। लोगों को पिघलाने के लिए यह अपने आप में एक जबर्दस्त जगह है, जहां चीजें बड़ी आसानी से होती हैं। स्पंदा हॉल में भाव स्पंदन कार्यक्रम के आसानी से होने की वजह यह है कि इसको एक खास ढंग से प्रतिष्ठित किया गया है। अगर भाव स्पंदन के शिक्षक किसी और जगह इसे सिखाएं तो इसमें अंतर साफ देखा जा सकते हैं। इसमें चीजें बड़ी आसानी से खुलने लगती हैं। इसका एक बड़ा कारण है कि इसका निर्माण ध्यानलिंग व भैरवी मंदिर के साथ एक खास तरह सरेखा में हुआ है, जिसका लोगों पर एक खास तरह का प्रभाव पड़ता है।

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जबकि आदियोगी आलयम की प्रकृति काफी अलग तरह की है। इसका जो भी और जैसा भी प्रभाव होता है, वह कई गुना हो जाता है। इसका अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसका मूल रूप से निमार्ण ही योग विज्ञान के प्रयोग के लिए किया गया है, इसलिए इसमें सभी चीजें सम्मिलित हैं। योग विज्ञान का अर्थ भी यही हैः यहां तक कि अगर आप एक छोटे बच्चे को चिकोटी काटेंगे तो वह रोएगा, इसका वजह है कि शरीर का अनुभव उसे भी होता है। हो सकता है कि शुरू में वह अपने विचारों और भावनाओं को समझने में सक्षम न हो, लेकिन वह अपने शरीर का अनुभव तो कर ही सकता है। तो शरीर वह पहली चीज है, जिसका अनुभव एक बच्चा करता है। योग दरअसल, एक ऐसी यात्रा है जो आपको आपके शरीर से निकाल कर आपके अस्तित्व के विभिन्न आयामों से घुमाते हुए आपके चरम लक्ष्य तक ले जाता है। इस आर्थ में ये आदियोगी पूरी तरह से संपन्न और सक्षम हैं। हमने किसी और स्थान की इस तरह से प्रतिष्ठा नहीं की है, यह विभिन्न आयामों को एक खास तरह से उजागर करता है।

अगर आप आदियोगी आलयम में बैठकर अपने शरीर की प्रकृति का निरीक्षण करना शुरू करें तो आप पाएंगे कि यह आपको आपकी कल्पनाओं से भी तेज गति से आगे ले जाएगा। अगर आप यहां हठ योग या फिर किसी और तरह की ध्यान प्रक्रिया जैसी कोई चीज करते हैं, जिसमें बंद आंखों द्वारा एक खास तरह का अन्वेषण या निरीक्षण किया जाता है तो वह प्रक्रिया यहां अपेक्षाकृत काफी अच्छी तरह से होगी। यह जगह भाव स्पंदन के लिए भले ही बेहतर न हो, क्योंकि यह इंसान में बहुत ज्यादा संतुलन लाती है, जबकि हमें उसमें कुछ हल्का बावलावन या दीवानगी चाहिए। अगर लोग हल्की उत्तेजना या मस्ती में नहीं आते तो भाव स्पंदन की प्रक्रिया सफल नहीं होती। हां हम चाहते हैं कि व्यक्ति शांत व स्थिर होने से पहले थोड़ा उड़े या अपने पंख फड़फड़ा ले। ऐसा नहीं है कि भाव स्पंदन यहां नहीं किया जा सकता, यह जगह भी उसकी संपूर्णता में काफी मदद करेगी, क्योंकि इसे एक योगिक आयाम दिया गया है। लेकिन आदियोगी आलयम की प्रकृति अपने आप में बेहद अन्वेषणात्मक है, जो उल्लसित बनाए रखने की जगह आपको और अधिक भीतरी गहराइयों की तरफ ले जाता है।

वास्तव में अगर आप स्पंदा हॉल में चहलकदमी करें तो आप अपने भीतर अधिक उल्लास या उत्साह का अनुभव कर सकते हैं, जबकि अगर आप आदियोगी आलयम में बैठें तो कुछ देर बाद ही आप खुद को अपने भीतर डूबता महसूस करेंगे। यह कुछ ऐसा ही है कि अगर आप बिना खास तैयारी के ध्यानलिंग मंदिर में जाते हैं तो हो सकता है कि चारों तरफ देखकर या नजरें डालने के बाद आपको वहां सिर्फ एक चट्टान ही खड़ी दिखाई दे। लेकिन अगर आप बिना जानकारी के भी भैरवी मंदिर में जाएं तो आपको वहां कुछ न कुछ अनुभव अवश्य होगा, क्योंकि वहां का माहौल बेहद उत्लासपूर्ण है। जबकि आदियोगी आलयम में एक निश्चलता है। निश्चलता का अनुभव करने में उल्लास का अनुभव करने से कहीं ज्यादा प्रयास करना होता है। उल्लास को पाना इसलिए आसान है, क्योंकि यह सामने घटित होता नजर आता है, जबकि निश्चलता की आपको तलाश करनी होती हैं, अन्यथा आप चूक सकते हैं।

इसलिए... आदियोगी आलयम की प्रकृति अन्वेषणात्मक है। यहां जब आप एक कदम आगे बढ़ाएंगे और ढूंढना शुरू करेंगे, यह आपको उससे एक कदम आगे ले जाएगा। यह कुछ ऐसा ही है कि अगर आप सौ रुपये कमाते हैं तो यह आपको सौ रुपये का बोनस देता है। है न यह एक बढ़िया सौदा?

प्रेम व प्रसाद