कौन हैं मेरे इष्ट देवता?
आज के स्पॉट में सद्गुरु हमें इष्ट देवता और भक्ति के बारे में बता रहे हैं। वे बता रहे हैं कि वे किसे इष्ट देवता मानते हैं। साथ ही वे भक्ति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि एक सच्चा नेता असल में एक भक्त होता है।
एक दिन किसी ने मुझसे पूछा, ‘सद्गुरु आपके इष्ट देवता कौन हैं? क्या आप शिव भक्त हैं?’ मैंने उन्हें जवाब दिया, ‘क्या आपने मुझे कभी शिव के सामने बैठ कर पूजा करते देखा है? मैं अपना पूरा जीवन आप जैसे मूर्खों के साथ बिता रहा हूं।
मैं चाहता हूं कि यह बात हर कोई समझे। आपकी भक्ति या समर्पण आपके देवता के लिए कुछ नहीं करता, बल्कि यह आपको रूपांतरित कर रहा है। अगर आप यह नहीं जानते कि आप अपनी भक्ति को खुद के रूपांतरण के लिए कैसे इस्तेमाल करें तो यह छलावा हो जाती है। अगर आप चीजों को श्रेष्ठतर या कमतर, ऊंचे या नीचे, अच्छे या बुरे के तौर पर देखते हैं तो इसका मतलब है कि आपने दिव्यता का स्वाद नहीं लिया है। किसी चीज़ को न तो ऊंचा समझें, और न ही किस चीज़ को नीचा समझें। अगर आप हर चीज पर पूरी तरह से अपना ध्यान केंद्रित करेंगे तो आपको हर चीज में कुछ न कुछ शानदार दिखाई देगा। अगर मैं किसी चींटी को भी देखता हूं तो वह उस पल के लिए मेरी इष्ट देवता होती है।
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मेरे लिए नेतृत्व भक्ति योग है। अगर आप उस चीज़ के निर्माण में पूरी तरह समर्पित हैं, जो चीज़ आपको परम लगती है तो आप भक्त हैं। आप जो भी काम करते हैं, जब तक कि आप उसमें समर्पित नहीं होते, तब तक आप जीवन में कुछ महत्वपूर्ण नहीं कर सकते।
आप जो भी करते है, उसमें खुद को पूरी तरह से डुबो कर विसर्जित कर देना ही भक्ति है। अपने सामान्य बुद्धिमानी से परे जाकर असाधारण बुद्धिमानी व सूझबूझ तक पहुंचने का यह एक तरीका है। तब आप उन चीजों को देख सकेंगे, जो दूसरे लोग शायद ही कभी देख पाएं। भक्ति का मतलब सिर्फ मंदिर जाना, नारियल फोड़ना या पूजा करना ही नहीं है। भक्ति का मतलब बिना किसी सीमा, शर्त व पूर्वाग्रह के किसी चीज में डूब जाना। आप जो भी कर रहे हैं, उसमें आप खुद को पूरी तरह से ऐसे डुबों दें, मानो आप वहां हैं ही नहीं। तभी आप एक सच्चे नेता होते हैं। तभी आप एक सच्चे भक्त होते हैं।
अगर आप भारतीय परंपरा के महान भक्तों जैसे रामकृष्ण परमहंस, मीराबाई, दक्षिण भारत के नयनमार भक्तों या उनकी तरह दूसरे भक्तों को देखेंगे तो आप पांएगे कि उन लोगों को अपने आसपास की किसी चीज में न तो कोई दिलचस्पी थी और न ही कोई होश।
मेरे अनुभव में भक्ति और नेतृत्व एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। लोगों को लगता है कि मैं एक नेता हूं। लेकिन वास्तव में मैं एक भक्त हूं।