महाभारत-कृष्ण भी मुक्त नहीं
इस हफ्ते के सद्गुरु स्पॉट में, सद्गुरु लिखते हैं "इन दिनों हम सब महाभारतमय हो गए हैं। दुनियाभर से आए तकरीबन 450 कलाकार इस विशालगाथा के मंचन में भाग ले रहे हैं। यह एक ऐसी कथा है, जो हुई तो आज से लगभग 5000 साल पहले थी, लेकिन आज ...
इन दिनों हम सब महाभारतमय हो गए हैं। दुनियाभर से आए तकरीबन 450 कलाकार इस विशालगाथा के मंचन में भाग ले रहे हैं। यह एक ऐसी कथा है, जो हुई तो आज से लगभग 5000 साल पहले थी, लेकिन आज भी सामयिक है। इसमें एक लाख से ज्यादा श्लोक कुछ हजार चरित्रों को सामने रखते हैं। इन श्लोकों में उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक - उनके कर्म, उसके फल, उनकी खुशियां, उनकी पीड़ाएं और उनके पिछले जन्म तक सब बताए गए हैं। इन आठ दिनों में हम महाभारत को महज एक कहानी के तौर पर ही पेश नहीं कर हैं, बल्कि ऐसे प्रस्तुत कर रहे हैं, जैसे यह आज भी समसामयिक है। महाभारत एक कहानी के जरिए लोगों को जीवन के अनुभवों से गुजरने, मानव जीवन के मर्म की गहराई और विभिन्न आयाम समझने में मदद करता है।
शोलों से भरी हुई, शोलों का तो उसे होना ही था। जुनून था, गुरूर था, लज्जा और रोष था। उत्थान के लिए भरपूर ज्वाला और उतना ही पतन के लिए भी। उसका जुनून और सौंदर्य ने सबकुछ खत्म कर डाला। क्या खूबसूरत फंदा था।
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एक नेक इंसान
एक नेक इंसान
और एक नेक इंसान
इतने उबाऊ जितना
एक नेक इंसान हो सकता है।
लेकिन जब जीवन क्षुद्र हो जाता है
फिर तुम्हें एक नेक इंसान चाहिए।
मानव जीवन में होने के मर्म से कृष्ण जैसा व्यक्तित्व भी मुक्त नहीं है। वह कहते हैं कि अगर मैं मानव शरीर में आया हूं तो मुझे मानव होने की सभी सीमाओं और बंधनों को स्वीकारना होगा, हालांकि मेरी सामर्थ्य इससे बिल्कुल अलग है। मैं जब भी चाहूं, एक अलग आयाम में प्रवेश कर सकता हूं। फिर भी मैं माता के गर्भ से जन्मा हूं। मैं सिर्फ मरूंगा ही नहीं, बल्कि हर उन परिस्थियों और अवस्थाओं से भी गुजरूंगा, जिससे हरेक मानव गुजरता है।
यही धर्म है। आपने 14 साल की उम्र में कई तरह के काम किए होंगे। क्या आप पीछे मुड़कर अपने जीवन पर नजर डाल यह नहीं कहते कि क्या यह मैं ही हूं। क्या आपको हैरानी नहीं होती कि आप ही ये सब किया करते थे। अगर आप ऐसा नहीं सोचते हैं तो इसका मतलब है कि आप अभी भी सिर्फ 14 साल के ही हैं, आप बिल्कुल बड़े नहीं हुए है। इसलिए यहां एक निश्चित प्रक्रिया है। एक बार आप यह शरीर धारण कर लेते हैं तो आपको इन प्रक्रिया के कुछ प्राकृतिक नियमों का पालन करना होता है। हालांकि यह आपके लिए जीवन के एक सिरे को खुला भी रखता है। मानव जीवन की यही एक खूबी है। जबकि कुदरत ने बाकी सभी प्राणियों के जीवन के दोनों छोरों को बांध रखा है। मानव के लिए कुदरत ने सिर्फ एक ही छोर स्थिर रखा है। कृष्ण ने साफ कहा है - मेरे लिए भी जीवन का एक सिरा बंधा हुआ है, जबकि दूसरा छोर खुला है। और मैं हर मानव जीवन के दूसरे छोर को खुला हुआ देखना चाहता हूं।
सोमवार की रात यक्षा की जोरदार शुरुआत हुई, जहां नृत्यांगना अलारमेल वल्ली ने लिंग भैरवी मंदिर के समक्ष भारतनाट्यम की भव्य प्रस्तुति दी। आज दूसरे दिन का समापन हुआ। आश्रम में लगातार उत्सव चल रहा है। आगे और भी बहुत कुछ होना है। महाशिवरात्रि के आने में अब एक सप्ताह से भी कम का समय बचा है।
आगे जारी ...