कावेरी पुकारे अभियान की झलकें : स्वयंसेवकों के अनुभव
कावेरी पुकारे रैली के तमिल नाडू चरण के बारे में जानने से पहले जानते हैं कुछ स्वयंसेवकों के अनुभव।
कल्पना कीजिए एक छोटी सी लड़की अपने कन्धों पर या अपने सिर पर पानी की बालटी उठा कर चल रही है। उनकी माँ की हाल ही में सर्जरी हुई थी और वो भारी सामान नहीं उठा सकती थीं, तो उन्हें अपनी बेटियों को कुँए से पानी भरकर पहली मंजिल पर स्थित मकान तक ले जाने के लिए कहना पड़ा। वे ऐसा हफ्ते में 2-3 बार करते थे, जिससे सभी नहा सकें और बाकी चीज़ों के लिए पानी उपलब्ध हो।
ये किसी गाँव या दूर-दराज के शहर की बात नहीं है। ये मध्य बेंगलुरु में कैंब्रिज लेआउट नाम की जगह में वर्ष 1992 में हुआ था। इस शहर का ज़मीन के नीचे का पानी दशकों से सूख रहा है।
इस लड़की के पिता, जो एक चित्रकार हैं, कावेरी विवाद और पानी की कमी से बहुत हताश थे। उनकी भावनाएं एक चित्रकारी के रूप में प्रकट हुईं। दो लड़के जिनके हाथ में स्लेट बोर्ड हैं, वे पानी के लिए लड़ रहे हैं, एक की स्लेट पर कन्नड़ भाषा में ‘अ’ लिखा है, और दूसरे की स्लेट पर तमिल भाषा में ‘अ’ लिखा है। उनकी माँ दोनों के बीच फंस गई हैं, और तभी पानी का गिलास ज़मीन पर गिर जाता है और किसी के काम नहीं आता।
आज, बेंगलुरु की ये छोटी से लड़की एक नदी वीर (ईशा फाउंडेशन की नदी अभियान स्वयंसेवक) बन गई है और अपने पिता से कहती है, “सद्गुरु आपके सपने को सच कर रहे हैं, पापा। कावेरी बच जाएगी।”
वे गर्व और आनंद से भर गए और बोले, “मैं बहुत खुश हूँ, मैं बहुत ही खुश हूँ।” वे 74 साल के हैं और उन्हें पार्किन्सन-रोग है, लेकिन उनका जोश आज भी वैसा ही है, जैसा दशकों पहले था।
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