सद्गुरु बहुत बार हमसे कहते हैं – “ज्यादातर समय आप जिंदगी के बारे में सोच रहे होते हैं, जिंदगी जी नहीं रहे होते”। हम अपनी जिंदगी को देखें तो यह बिलकुल सच लगता है। हम अपना ज्यादा समय बीते हुए कल के बारे में सोचते हुए या फिर आने वाले कल के बारे में चिंता करते हुए बिताते हैं। हिंदी भाषा में ‘कल’ शब्द आने वाले और बीते हुए कल – दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि दोनों का ही अस्तित्व नहीं है, अस्तित्व तो केवल इस पल का है।