भावी गॉडज़िला
सद्गुरु अपने जीवन की एक घटना के बारे में बता रहे हैं, जिसमें प्रकृति के जीवों का जिक्र है। एक ऐसी घटना एक गोह के बारे में है, जिसने उनके घर पर कब्जा कर लिया था।
सद्गुरु: मेरा घर अधिकतर कई प्रकार के जीवों से भरा रहता है। कुछ समय पहले एक छोटी मगरमच्छ प्रजाति की छिपकली हमारे यहाँ आ गई। वह बहुत छोटी थी और बरामदे की छत की टाइलों में रहने लगी। बाग में उसे अपना कोई दुश्मन नहीं मिला और वही सबसे बड़ा प्राणी हो गई। हमारे यहाँ पक्षी, गिलहरी और साँपों को खा कर, उसका समय मजे से बीतने लगा। ज्यों-ज्यों दिन बीतने लगे तो वह बड़ी हो गई और अब वह लगभग चार फ़ीट की हो गई है।
इन दिनों वह बाहर का चक्कर भी लगा आती है पर आकार बड़ा होने की वजह से अक्सर छत की टाइलों को हिला देती है। जब तक वह बरामदे के ऊपर की छत पर रहती है, तब तो ठीक है, पर कमरे की छत की टाइलों पर उसके चलने से, वे हिल जाती हैं और फिर बारिश का पानी घर में आने लगता है। पर हम उसे भगाना नहीं चाहते। मैं वहाँ बाहरी वासी हूँ, वो तो स्थानीय जीव हैं। संपत्ति की मेरी समझ के हिसाब से, उस घर पर मेरे से भी ज़्यादा हक़ तो उसका ही बनता है।
संपत्ति की मेरी समझ के हिसाब से, मैं वहाँ बाहरी वासी हूँ, वो तो स्थानीय जीव हैं। उस घर पर मेरे से भी ज़्यादा हक़ तो उसका ही बनता है।
मैंने घर की छत की टाइलों को इस तरह लगाने पर काम कर रहा हूँ, कि कम से कम वह घर के अंदर न आ सके। वह बाहरी बरामदे में रह सकती है।