शिल्पकार
आश्रम के भवन अपने डिजाइनर की शैली और सौंदर्यबोध को दर्शाते हैं, जो इस पूरे स्थान को मनमोहक और भव्य बनाते हैं।
सद्गुरु: घर बनाने की कला बस ज्यामिति का खेल है। सारी सृष्टि एक कमाल का आर्किटेक्चर है और मेरा यह शिल्प, इसी सृष्टि की छोटी सी नकल है, जो सीधा प्रकृति से ली गई है। मैं कोई पढ़ा-लिखा आर्किटेक्ट नहीं हूँ, पर आश्रम की सभी इमारतों का नमूना मैंने ही तैयार किया है। हमारी इमारतें अपनी निर्माण सामग्री की मजबूती से नहीं, बल्कि सिर्फ अपनी सटीक ज्यामिति की वजह से ही खड़ी हैं। अगर आप इस्पात और सीमेंट से भवन बना रहे हों, तो उसे आप मनचाहे तरीके से बना सकते हैं क्योंकि उसे ज्यामीति नहीं बल्कि निर्माण सामग्री से मजबूती मिलती है। यहाँ तो सारी भवन निर्माण सामग्री ही कुदरत की देन है : ईंटें, चूना और गारा। यह केवल अपनी ज्यामितिक बनावट के कारण खड़ी हैं।
यहाँ की इमारतों में एक तरह की शांति पाई जा सकती है - आप यह भी कह सकते हैं कि ये ध्यान लगाए हुए हैं, क्योंकि इनके भीतर कोई तनाव नहीं है।
आधुनिक भवन तनाव के साथ खड़े किए जाते हैं। अधिकतर भवनों में, छतों और गुरूत्वाकर्षण की शक्ति के बीच एक निरंतर संघर्ष बना रहता है - गुरुत्व का बल भवन को नीचे गिराना चाहता है, छत उसे ऊँचा रखना चाहती है। और एक दिन गुरुत्व इस संघर्ष में जीत जाएगा। इमारत खड़ी सिर्फ इसलिए है, क्योंकि छत की सामग्री मज़बूत है। यहाँ के भवन ऐसे तनाव से रहित हैं, आप यह भी कह सकते हैं कि ये ध्यान लगाए हुए हैं, क्योंकि इनके भीतर कोई तनाव नहीं है। तभी तो मैं लोगों से कहता हूँ, “जब इमारतें ही ध्यानमग्न हों तो आपके लिए तो ऐसा करना और भी आसान होना चाहिए।” ये ग्रह के बलों के साथ पूरी तरह से सामंजस्य में हैं।