रोमांच से योग की ओर
खतरे से खेलने और रोमांच को गले लगाने वाले सद्गुरु को ‘एडवेंचर’ खूब पसंद है। रोमांचक जीवन बिताने वाले सद्गुरु के बारे में अधिक जानें।
सद्गुरु की उम्र क़रीब तेरह साल रही होगी, जब उनकी मुलाकात राघवेंद्र स्वामी योगी से हुई, जो मलड्डीहल्ली स्वामी के नाम से जाने जाते थे। स्वामी जी अस्सी साल से भी ज़्यादा उम्र के होने के बावजूद सद्गुरु से कहीं ज़्यादा चुस्ती-फु़र्ती रखते थे, यही देख कर सद्गुरु का ध्यान उनकी ओर गया!
सद्गुरु: जब मैं बहुत छोटा था, तो वे मेरे दादा जी के घर आया करते। मैं बारह-तेरह बरस का था और उनकी आयु इक्यासी के करीब रही होगी। उस समय, मैं इतना फु़र्तीला था कि किसी भी ऊँचाई तक आसानी से चढ़ सकता था। गाँव में जहाँ दादा जी का घर था, वहाँ पिछले आँगन में कुएँ थे। उनका घेरा लगभग छः-सात फ़ीट और गहराई 120 से 130 फी़ट थी। पानी सतह से साठ फु़ट के करीब रहता। हम लड़के अक्सर इस कुएँ में कूदने और बाहर आने का खेल खेलते। अपनी एक छोटी सी भूल की वजह से आप, पथरीली दीवारों से टकरा सकते थे, और वहीं जीवन का अंत हो जाता। कोई भी बच्चा मेरी जितनी फु़र्ती से यह काम नहीं कर सकता था, पर एक दिन, उस इक्यासी साल के बूढ़े ने इसे कहीं तेज़ी से कर दिखाया। जब मैंने उनसे इसका राज़ जानना चाहा, तो वे बोले, ”मेरे साथ चल कर योग करो।” इस तरह सबसे पहले मैं उनके साथ जाने के लिए, और कुछ आसान योगासन सीखने के लिए तैयार हुआ।