आध्यात्मिकता की राह में क्या रिश्ते बाधक हैं?
यह लगभग आम राय होती है कि आध्यात्मिकता की राह में रिश्ते बाधक होते हैं। या फिर रिश्तों के लिए आध्यात्मिकता बाधक है। क्या सचमुच ऐसा है? या फिर यह एक मिथक है?
आध्यात्मिक विकास करने के लिए किसी भी रिश्ते को खत्म करने की जरूरत नहीं है। आपको बस अपनी वर्तमान स्थिति को समझने की जरूरत है। उस तरीके से नहीं जिस तरीके से दुनिया या कोई दूसरा इंसान इसे समझता है, बल्कि उस तरीके से जैसी ये आपके अंदर वास्तव में है। दर्द और संघर्ष हर आदमी का अपना व्यक्तिगत होता है, इसलिए हर आदमी को इस चीज पर अपने तरीके से विचार करना पड़ता है।
सवाल यह नहीं है कि आध्यात्मिकता का मार्ग और रिश्ते एक दूसरे के विरोधी हैं या नहीं। ये दोनों बिल्कुल भिन्न आयाम हैं जो कहीं भी एक दूसरे से नहीं टकराते। अध्यात्म आपके भीतर की चीज है। आप बाहर क्या करते हैं, ये आपकी पसंद है, आपका चयन है। आप रिश्तों के बीच रहना चाहते हैं या अकेले रहना चाहते हैं, आप शहर में रहना चाहते हैं या पहाड़ों पर रहना चाहते हैं, यह व्यक्तिगत चयन है। इस बात का चयन आपको अपनी पसंद, नापसंद और जरूरत के आधार पर करना होगा। आध्यात्मिक प्रक्रिया से इसका कोई लेना देना नहीं है।
किसी के साथ आप कैसा संबंध रखते हैं यह आपका अपना फैसला होता है और ये आपकी जरूरतों पर आधारित होता है। यह इस बात से तय नहीं होता कि आपने या दूसरे इंसान ने आध्यात्मिक तौर पर कुछ किया है। हमें आध्यात्मिकता और संबंधों को मिलाना नहीं चाहिए क्योंकि आप उनको मिला नहीं सकते हैं। एक हमारे भीतर का पहलू है जबकि दूसरा बाहरी पहलू है।
मांग और अपेक्षाएं
संसार में कई लोग ऐसे हुए जिन्होंने आध्यात्मिक प्रक्रिया अपनाने के बाद अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर दिया। ऐसा इसलिए नहीं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया इस तरह की मांग करती है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो रिश्तों की मांगों को पूरा नहीं कर सकते थे। आध्यात्मिक मार्ग इस बात की मांग नहीं करता कि आप अपने रिश्तों को छोड़ दीजिए लेकिन रिश्ते अक्सर ये मांग करते हैं कि आप आध्यात्मिक राह को छोड़ दीजिए। ऐसे में लोग या तो आध्यात्मिक मार्ग का चुनाव करते हैं, या अपने रिश्तों को बचाए रखते हैं।
दुर्भाग्य से अधिकांश लोग रिश्तों का ख्याल करके अपने आध्यात्मिक पथ का त्याग कर देते हैं। लेकिन ऐसा कभी समय नहीं आता जब ये दोनों आपस में टकराते हों। आप अपने भीतर जो कर रहे हैं उसका आपके किसी रिश्ते से संघर्ष नहीं होता है। लेकिन जब आपका रिश्ता इस बात की मांग करने लगता है कि आपको किसी खास तरीके से ही रहना है तो वह रिश्ता आध्यात्मिक मार्ग में बाधक बन जाता है।
हम देखते हैं कि कुछ मामलों में ऐसा होता है। जब कोई ध्यान करना शुरू करता है तो शुरूआत में उसके परिवार के दूसरे सदस्य खुश होते हैं, क्योंकि उस व्यक्ति की मांगें कम हो जाती हैं, वह शांत रहने लगता है और चीजों को बेहतर तरीके से करने लगता है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति ध्यान की गहराई में जाता है, जब वो आंखें बंद करके आनंद के साथ चुपचाप बैठा रहता है, तो लोगों को परेशानी होने लगती है। अगर कोई इंसान कहीं या किसी के पीछे जाता है तो उसके जीवनसाथी को अक्सर पता होता है कि उस स्थिति से कैसे निपटना है। लेकिन जब आप अपने आप में खुश रहने लगते हैं तो लोग असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। उन्हें खतरा महसूस होने लगता है। इसलिए वे कहने लगते हैं, ‘इस घर में अब और ध्यान नहीं चलेगा।’ आप कहेंगे कि ठीक है, मैं बस चुपचाप बैठा रहंूगा। उनका जवाब होगा, ‘आपको चुपचाप नहीं बैठना है, मुझसे बातें करनी है या कुछ और करना है।’ एक सरल से काम पर, जिससे किसी को नुकसान भी नहीं पहुंचता, इतने प्रतिबंध लगाए जाएंगे तो आपको हैरानी और परेशानी होती है। जब कोई मूर्खता भरा काम करता है तो संबंधों में दरार आती ही है। निहित स्वार्थों से प्रेम तकहजारों लोगों के साथ मेरा बहुत गहरा संबंध रहा है। ये संबंध विभिन्न स्तर के और विभिन्न आयामों के रहे हैं। मेरी आध्यात्मिक प्रक्रिया और मेरे संबंध कभी नहीं टकराते क्योंकि वे जीवन के दो अलग-अलग क्षेत्र हैं। संबंध आपके जीवन के बाहरी हिस्से के दायरे में आते हैं। अपनी सर्वोच्च क्षमता के साथ आपको उन्हें निभाना है। आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया आपके व्यक्तिव के भीतरी भाग से ताल्लुक रखती है। अगर आपका जीवनसाथी आध्यात्मिक हो रहा हो या आप आध्यात्मिक हो रहे हों, तो इससे आपके संबंध में टकराव उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
होता यह है कि एक बार जब आप आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ अपने अंदर किसी चीज का आनंद लेना शुरू कर देते हैं तो वह आनंद आपके जीवन का केन्द्र बन जाता है। लेकिन अधिकांश रिश्ते ऐसे होते हैं जिसमें लोग यह चाहते हैं कि वे दूसरे व्यक्ति के जीवन के केन्द्र में बने रहें। यही कारण है कि वे खतरा महसूस करते हैं।
लोग अक्सर यह दावा करते हैं कि वे ईश्वर में विश्वास करते हैं। अगर आप ऐसा विश्वास करते हैं तो क्या ईश्वर को आपके जीवन के केन्द्र में नहीं होना चाहिए। मामला रिश्तों का नहीं, असुरक्षा का है। अगर रिश्ते प्रेम पर आधारित हैं तो कोई मुद्दा नहीं रह जाता। वहीं अगर रिश्ते निहित स्वार्थों पर आधारित हैं, तो समस्या खड़ी हो जाती है। जब लोग किसी से इसलिए संबंध बनाते हैं कि वे उनसे कुछ हासिल करना चाहते हैं, ऐसे में जब वो चीजें हासिल नहीं कर पाते तो परेशान हो जाते हैं। अन्यथा एक बार जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर चलने लगते हैं, तो आपके रिश्ते बहुत ज्यादा परिपक्व और सुंदर बन जाते हैं। आप दूसरे लोगों से फालतू की अपेक्षाएं नहीं रखते। आप दूसरे व्यक्ति को एक जीवन के रूप में सम्मान देने लगते हैं। हमारे मन में सबसे ज्यादा सम्मान होता है - जीवन के लिए। तो हम दूसरे लोगों का भी एक जीवन जितना सम्मान क्यों न करें?
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