अध्यात्म और गोल्फ - क्या सम्बन्ध है इनमें?
सद्गुरु जब गोल्फ खेलते हैं तो कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि एक आध्यात्मिक गुरु का गोल्फ से क्या संबंध है? क्या वाकई गोल्फ का खेल आध्यात्मिकता से जुड़ा है? आइये जानते हैं कैसे मन की स्थिरता गोल्फ में मदद करती है...
सद्गुरु जब गोल्फ खेलते हैं तो कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि एक आध्यात्मिक गुरु का गोल्फ से क्या संबंध है? क्या वाकई गोल्फ का खेल आध्यात्मिकता से जुड़ा है?
सद्गुरु : आजकल दुनिया में एक खेल की खूब चर्चा हो रही है, वह है गोल्फ। हर किसी का कहना है कि गोल्फ सबसे शानदार खेल है, उसमें बहुत भागीदारी की जरूरत होती है, यह दूसरे खेलों जैसा नहीं है, यह ऐसा है, यह वैसा है – लोग इसे स्वर्ग तक पहुंचा दे रहे हैं। पता नहीं, कब इसे ऊपर भेज दिया जाएगा। कुछ लोग मुझसे बात करने की कोशिश कर रहे थे, मैंने कहा, ‘देखिए, इसमें कुछ भी महान नहीं है। यह खेल ऐसे लोग खेलते हैं, जो और कुछ ठीक ढंग से नहीं कर सकते।’ यह सच है कि आजकल बहुत से जवान लोग इसे खेल रहे हैं, वरना पिछली पीढ़ी तक लोग पचास या साठ साल का होने के बाद ही गोल्फ खेलते थे। उस उम्र में वे कोई काम ठीक से नहीं कर पाते थे। पूरी जिंदगी वे अपने ऑफिस में बैठते थे, पैसे कमाते थे या ऐसा ही कोई काम करते थे, उसके अलावा, वे अपनी जिंदगी के साथ कुछ नहीं करते थे। अब वे गेंद को मारने की कोशिश करते थे, गोल्फ कोर्स खोदते थे।
उन्हें लगता था कि यह सबसे मुश्किल और लगभग असंभव खेल है, जिसमें बहुत एकाग्रता की जरूरत पड़ती है, ध्यान की जरूरत पड़ती है। देखिए, किसी भी दूसरे खेल में, गेंद अलग-अलग रफ्तार, अलग-अलग कोणों, अलग-अलग उछाल में आपकी ओर आती है। आपको उसे समझना होता है और आपके पास समय नहीं होता। आपको एक पल में फैसला करना पड़ता है, हरकत में आना होता है। इस खेल में गेंद यहीं पड़ी रहती है। आपके पास वक्त ही वक्त होता है। आप सोच सकते हैं, आप खड़े हो सकते हैं, आप खुद को ठीक स्थिति में ला सकते हैं, फिर से अपनी स्थिति बदल सकते हैं, गेंद वहीं पड़ी रहती है – वह कहीं नहीं जाती।
इसलिए, जब कुछ न हो रहा हो, तब भी आप गोल्फ तो खेल ही सकते हैं। बहुत से लोग जो मेरे पास आते हैं, मैं उनसे कहता हूं कि आपको यहां रोजगार जरूर मिल जाएगा क्योंकि आप काफी अच्छा गड्ढा खोदते हैं। यह काम भी वैसा ही है। लोग इसकी ओर इतने आकर्षित इसलिए होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनसे कोई अपेक्षा नहीं है। बस एक शांत गेंद होती है। हालांकि लोगों ने गेंदों को तरह-तरह के नाम दिए हैं, मगर यह बहुत शांत दिखने वाली सफेद रंग की गेंद होती है जो वहां पड़ी रहती है, कुछ नहीं करती। आपको बस उसे मारना होता है, मगर आप उसे मार भी नहीं पाते। आपको बस बैठना है, कोई पहाड़ नहीं चढ़ना है, गीत नहीं गाना, डांस नहीं करना, कोई बड़ी समस्या नहीं सुलझानी। कुछ नहीं, सिर्फ बैठना है। ध्यान भी इसी तरह की चीज है। इसमें आपको कुछ नहीं करना, बस बैठना है। यह सबसे आसान काम है। मगर देखिए, आपको कितनी समस्याएं होती हैं। बस सिर्फ अपने आप के साथ होना, अपने वास्तविक रूप में होना कितना मुश्किल होता है।
अध्यात्म जीवन को सशक्त बनाता है
जिज्ञासु: आप गोल्फ को आध्यात्मिक जीवन से कैसे जोड़ कर देखते हैं?
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सद्गुरु: मैं इन दोनों को जोड़ता नहीं हूं, बल्कि एक तरह से कहें तो मैं इन दोनों के बीच का सेतु हूं। क्योंकि मैं दोनों कर सकता हूं। बल्कि हर कोई दोनों काम कर सकता है।
मैं जानता हूं कि यह सवाल इसलिए पूछा जाता है, क्योंकि बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि आध्यात्मिकता किसी तरह की कमजोरी या अक्षमता है। आध्यात्मिकता कोई अक्षमता नहीं है, यह तो जीवन की असाधारण क्षमता है। इसलिए, हमेशा यह सवाल पूछा जाता है, ‘अरे, आप आध्यात्मिक हैं, फिर भी आप खुद गाड़ी चलाते हैं, खुद अपना विमान उड़ाते हैं, आप गोल्फ खेलते हैं, आप यह करते हैं, आप वह करते हैं!’ मैं और भी तमाम चीजें करता हूं।
इसलिए एक चीज मैं हर किसी को बहुत साफ तौर पर बता देना चाहता हूं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया कोई कमजोरी नहीं है। यह एक असाधारण शक्ति है। अगर आप कोई भी काम अच्छी तरह करना चाहते हैं, तो अपने साथ पूरी तरह तालमेल में होना बुनियादी जरूरत है। चाहे आप कारोबार करना चाहते हों, या गोल्फ खेलना चाहते हों या कुछ भी करना चाहते हों। आपके अंदर पूरा तालमेल होना चाहिए, वरना आप कोई काम अच्छी तरह नहीं कर पाएंगे। अगर आप तालमेल में नहीं हैं, तो आप अपनी इच्छा से नहीं, बस संयोगवश चीजें कर सकते हैं।
सृष्टि की बनावट की समझ जरुरी है
जिज्ञासु: आपने पहली बार गोल्फ कब खेला था? जब आपने आठवें छेद में गेंद डाली, तो मेरे दिमाग में सबसे पहले यही आया। अद्भुत था! आपने गोल्फ खेलना कब शुरू किया था?
सद्गुरु: करीब चार साल पहले मैं बच्चों के साथ फुटबॉल खेलते हुए अपना घुटना बुरी तरह जख्मी कर बैठा था। फिर मैंने एक तरह से तय कर लिया कि जीवन के इस चरण में, सिर्फ गोल्फ ही ऐसा खेल है, जिसे ज्यादा चोट खाए बिना खेला जा सकता है। बाकी खेलों में आप खुद को चोट पहुंचा सकते हैं। इसलिए, गोल्फ मेरे लिए आखिरी सहारा था, बाकी खेल अब मेरे लिए नहीं हैं।
मेरे लिए एक सबसे अहम और महत्वपूर्ण चीज रही है ज्यामिति। बचपन से ही मेरे लिए अस्तित्व की ज्यामिति सबसे महत्वपूर्ण रही है। ज्यामिति से मेरा मतलब है कि अगर मैं किसी पेड़ को देखता हूं, तो मैं उसके रंगों और बाकी चीजों को तो देखता ही हूं, मगर मेरे लिए सबसे रोमांचक चीज, जिस पर मैं सबसे पहले ध्यान देता हूं, वह है उसके खड़े रहने की ज्यामिति। प्रकृति में बिना किसी ज्यामितिय एकात्मकता के, कोई भी चीज अपने दम पर खड़ी नहीं हो सकती। योग की सारी प्रणाली यही है – मानव-तंत्र की ज्यामिति को सही करना। आज ‘कंस्ट्रक्शनल थ्योरी’ नाम का एक पूरा विज्ञान है, जिसमें बताया जाता है कि चाहे आप किसी अणु को लें या इंसान को, किसी झींगुर को या केंचुए को या पूरे ब्रह्मांड को, मूलभूत स्तर पर सबकी बनावट एक जैसी है। उस सामान्य बनावट से यह इतनी जटिल संभावनाओं में विकसित हो गया है, मगर मूलभूत बनावट एक सी है। इन सभी में, ज्यामिति सबसे अहम है। योग की तरह गोल्फ में भी ज्यामिति सबसे महत्वपूर्ण है। आपको सीधा खड़ा होना नहीं आता, आपको सिर्फ सही तरीके से खड़े होने में सालों लग सकते हैं। इसलिए मुझे कभी कहीं नहीं सीखना पड़ा, मैं कभी किसी ड्राइविंग रेंज पर नहीं गया, मगर मैं सब कुछ काफी अच्छा कर रहा हूं। यह मूलभूत रूप से ज्यामिति और चीजों को समझने की आपकी काबिलियत है। आपको उस दूरी का अंदाजा लगाना पड़ता है और गेंद पर सही मात्रा में बल लगाना पड़ता है। इसलिए, मेरे लिए यह सबसे अहम तत्व बन गया। मैंने उसमें मौजूद ज्यामिति की जटिलता का पूरा आनंद उठाया। और जब तक कि आप ज्यामिति का सही अंदाजा नहीं लगाते, आप अपने थ्री फुट पुट से चूक जाएंगे।
गोल्फ के लिए मन स्थिर होना चाहिए
जिज्ञासु: सद्गुरु, क्या आपके पास एक गोल्फर के लिए कोई संदेश या कोई योग संबंधी सलाह है?
सद्गुरु: गोल्फ मत खेलिए, बस गेंद को मारिए। देखिए, मैंने बचपन से बहुत से खेल खेले हैं। जो खेल मैंने कुछ ज्यादा समय तक खेले, वे हैं हॉकी और फुटबॉल, थोड़ा-बहुत क्रिकेट और वॉलीबॉल जैसे खेल भी। आप जो भी खेल खेलते हैं, गेंद अलग-अलग रफ्तार, कोण, उछाल, घुमाव में आपकी तरफ आती है। आपको एक पल में अपना फैसला लेना होता है और गेंद को खेलना होता है। मगर गोल्फ में, गेंद वहीं पड़ी रहती है।
अगर आप अपने हाथ को अपनी मर्जी से बिल्कुल सही तरीके से हिलाना चाहते हैं, अगर आप बस अपनी उंगली पकड़ें और बिना देखे अपने शरीर के दूसरे हिस्से को आप छूना चाहते हों, तो आपको एक खास मानसिक अवस्था में होना चाहिए। वरना आपकी उंगली यहां-वहां, या कहीं और चली जाएगी। इसे करने के लिए गोल्फ सीखने की जरूरत नहीं है। अगर आपके मन में लगातार विचार प्रक्रिया नहीं चल रही है, तो आप अपनी मर्जी से गेंद को जिधर चाहें, उधर भेज सकते हैं। इसलिए लोग गोल्फ से नहीं जूझते, वे अपने दिमाग से जूझ रहे होते हैं। मेरे ख्याल से 70 फीसदी खेल सिर्फ दिमागी होता है, सिर्फ 30 फीसदी गोल्फ होता है। मुझे नहीं पता कि वह 30 फीसदी कैसे खेलते हैं। मैं सिर्फ 70 फीसदी जानता हूं। मैं वही 70 फीसदी खेलता हूं। बाकी के 30 फीसदी को सीखने का मुझे कभी समय ही नहीं मिला।
जिज्ञासु: फिर तो आप एक शानदार गोल्फर होंगे।
सद्गुरु: सिर्फ 70 फीसदी।