आध्यात्मिक विकास के लिए अपना कैसा व्यक्तित्व बनाएं?
सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि किसी ख़ास व्यक्तित्व या “मैं” की भावना के बिना दुनिया में काम करना संभव नहीं, लेकिन जब यही व्यक्तित्व ठोस हो जता है तो हमारे दुखों का कारण बन जाता है। जानते हैं…
ज्यादातर लोगों ने अपने व्यक्तित्व का बड़ा हिस्सा अनजाने में या कहें अपनी अचेतनता में बनाया हुआ है। हो सकता है इसका बहुत छोटा सा हिस्सा सजगता या चेतनता के साथ बनाया गया हो। जब आप अपने व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं तो एक तरह से आप यह सोचते हैं कि ईश्वर ने आपको सही नहीं बनाया है। अगर आप अपने व्यक्तित्व में सुधार करना चाहते हैं तो इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि आपको लगता है कि बनाने वाले ने मुझ पर पर्याप्त काम नहीं किया है।
व्यक्तित्व का बचाव करने की कोई जरुरत नहीं
आपको ऐसा क्यों लगता है कि ईश्वर की इतनी महान रचना उतनी अच्छी नहीं है, जितनी होनी चाहिए? ऐसा खुद को सुरक्षित रखने की साधारण सी प्रक्रिया की वजह से है। यह एक सामान्य सी प्रक्रिया है जो हमारे शरीर की हर कोशिका के भीतर पहले से ही मौजूद है, आप कह सकते हैं कि ‘इनबिल्ट’ है। हर छोटे से छोटे कीड़े या जानवर के भीतर यह प्रक्रिया मौजूद है। इंसान के भीतर भी यह है। दरअसल हम यह नहीं जानते कि आत्मरक्षा की इस प्रक्रिया को कहां रखा जाए। इसलिए इसने खुद को हर जगह फैला लिया है और इसी की वजह से आपने खुद को एक बेहद छोटा सा इंसान बना रखा है, जो हमेशा अपना बचाव करता रहता है।
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आपका व्यक्तित्व आपका ही बनाया हुआ है
इस नमूने को, जिसे आप मैं कहते हैं, किसने बनाया? निश्चित तौर पर आपने ही बनाया है, लेकिन अपने आसपास मौजूद बहुत सारे लोगों से प्रभावित हो कर आपने अपना ऐसा कार्टून बना लिया है। जब आप पंद्रह या सोलह साल के थे, तो अक्सर ऐसा होता था कि किसी फिल्म को देखने के बाद आप अनाजाने में ही उसके हीरो की तरह चलना या उठना-बैठना शुरू कर देते थे। हो सकता है, एकाध बार आपने ऐसा जानबूझकर भी किया हो, लेकिन ज्यादातर ऐसा अनजाने में ही होता था। आपने जो थोड़ा यहां से, थोड़ा वहां से इकठ्ठा किया है, उसी की वजह से आज आपके व्यक्तित्व की ऐसी तस्वीर तैयार हुई है।
भूगोल के वह शिक्षक क्लास में हमेशा गुस्से में भरे हुए आते थे। चाहे वह अमेरिका के घास के मैदानों के बारे में पढ़ा रहे हों या अफ्रीका के रेगिस्तान के बारे में, वह हमेशा गुस्से में होते थे। उस दिन भी जब वे क्लास में आए तो एक तो वह पहले से ही गुस्से में थे, दूसरे इस कार्टून ने उनका पारा और चढ़ा दिया। उन्होंने पूछा - ‘इस करतूत के लिए कौन जिम्मेदार है?’ जैसा कि होना ही था क्लास का हर बच्चा अपनी भूगोल की किताब में ऐसे व्यस्त हो गया जैसे कि सबको भूगोल पढ़ना कितना पसंद हो! अचानक सभी बच्चे पढ़ाकू नजर आने लगे। ऐसा लग रहा था कि किसी को इसके बारे में कुछ पता ही न हो। शिक्षक ने फिर पूछा - ‘कौन है इस करतूत के लिए जिम्मेदार?’ अंत में एक बच्चे ने हिम्मत जुटाई और खड़े होकर बोला - ‘हमें वाकई नहीं पता, लेकिन हां जिसने भी किया है, उसके माता-पिता इसके लिए जिम्मेदार हैं।’
ध्यान का अर्थ है व्यक्तित्व को इस्र्जित कर देना
इस शरारत के लिए जिसे आप “मैं” कहते हैं, आपके माता-पिता जिम्मेदार नहीं हैं। आप खुद जिम्मेदार हैं। जीवन के साथ आपको जबर्दस्त संभावनाएं हासिल हुई थीं, लेकिन उसे इतनी छोटी सी संभावना में विकृत करके आपने बहुत बड़ा अपराध किया है। आपका व्यक्तित्व जो एक कार्टून हैं, वह आपकी मदद के बिना एक दिन के लिए भी नहीं टिक सकता। आपको हर वक्त इसे सहारा देना होगा। ध्यान का मतलब भी एक तरह से यही है, आप अपने व्यक्तित्व से इस सहारे को छीन रहे हैं। अचानक यह बिखर जाता है और फिर केवल उपस्थिति रह जाती है, व्यक्ति गायब हो जाता है।
कभी लोगों से एक अलग तरीके से मिलकर देखिए। मसलन जिस व्यक्ति से आप मिल रहे हैं, उसके हिसाब से उस वक्त जैसा व्यक्तित्व जरूरी हो, वैसे व्यक्तित्व को ओढ़ लीजिए। ऐसा करके रोज एक नया कार्टून बनाने का मौका मिलेगा, जो अपने आप में बड़ा मजेदार होगा। लेकिन एक बार किसी खास विकृति (व्यक्तित्व) में अगर उलझ गए तो बड़ी समस्या हो जाएगी। अगर आप रोजाना एक नई विकृति(व्यक्तित्व) पैदा कर लेते हैं तो इसे कला कहा जाएगा। अगर आप एक ही विकृति में उलझे रह गए, तो आप पंगु बन जाएंगे। यही बड़ा अंतर है।