आज्ञा चक्र और तीसरी आँख में क्या सम्बन्ध है?
यहां सदगुरु लिंग भैरवी देवी की तीसरी आंख के बारे में बता रहे हैं। वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि कैसे उनमें आज्ञा चक्र न होते हुए भी तीसरी आंख हो सकती है। जानने के लिये पढ़िए.....
प्रश्नकर्ता : नमस्कारम सदगुरु। आप ने कहा है कि लिंग भैरवी देवी साढ़े तीन चक्रों से बनी हैं-- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक एवं आधा अनाहत। साथ ही साथ देवी के कई नामों में से एक त्रिनेत्रिणी भी है, " वे जिनके पास तीसरी आंख है"। यदि तीसरी आंख आज्ञा चक्र से सबंधित है तो क्या लिंग भैरवी देवी के पास आज्ञा चक्र भी है?
सद्गुरु: तीसरी आंख का भौतिक स्थान या स्वरूप नही होता, जैसा आप को लगता है। चूंकि आप की दो आंखें यहां पर(चेहरे पर माथे के नीचे) हैं, आप को लगता है कि तीसरी आंख इनके बीच में होनी चाहिये। ऐसा नहीं है। बात ये है कि आंखें सिर्फ वो ही देख सकती हैं जो प्रकाश को रोक सकता है। आप किसी वस्तु को इसलिये देख सकते हैं क्योंकि वह प्रकाश को रोक रही है। यदि कोई वस्तु ऐसी हो, जिसमें से हो कर प्रकाश निकल जाये, यदि वह पूर्णतः पारदर्शी हो तो आप उसे नहीं देख सकते।
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आप अपने चारों ओर की वस्तुएं इसलिये देख सकते हैं क्योंकि हवा पारदर्शी है। यदि हवा स्वयं प्रकाश को रोक ले तो आप कुछ भी नहीं देख पायेंगे।तो इन दो आंखों से आप वही देख सकते हैं जो भौतिक है। लेकिन भौतिक चीजों में भी आप सभी भौतिक चीजें नहीं देख पाते। इन दो आंखों से आप सिर्फ भौतिकता का सबसे मोटा स्वरूप ही देख पाते हैं। आप हवा को नहीं देख पाते क्योंकि वह प्रकाश को नहीं रोक सकती, हालाँकि हवा भौतिक प्रकृति की ही है। भौतिकता से परे जो भी है वह तो आप इन आँखों से देख ही नहीं सकते।
आज्ञा चक्र और तीसरी आँख के बीच क्या सम्बन्ध है?
यदि आप आप ऐसी अवस्था में आ जायें कि आप भौतिक प्रकृति से परे भी कुछ देख पायें, अनुभव कर सकें या समझ सकें तो हम कहेंगे कि आप की तीसरी आंख खुल गयी है। देवी की तीसरी आंख का चित्रण सिर्फ प्रतीकात्मक है, संकेत रूप में है। चूंकि आज्ञा चक्र जानने से जुड़ा हुआ है, इसलिए आम तौर पर तीसरी आंख को दो आंखों के बीच में चित्रित किया जाता है। लेकिन वास्तव में वह किसी एक जगह नही होती।
मान लीजिये मैं किसी जगह जाता हूँ और किसी प्रकार की ऊर्जा को महसूस करता हूँ, मुझे लगता है कि यहां कुछ हो रहा है तो सबसे पहले मैं अपनी आंखें बंद करता हूँ, अपनी उंगलियां सक्रिय करके अपने बायें हाथ की हथेली को नीचे की ओर रखता हूँ, यह देखने के लिये कि यहां क्या हो रहा है? मान लीजिये कि आप को नहीं पता कोई चीज़ ठंडी है या गरम तो आप भी उस पर हथेली रख कर जानना चाहेंगे कि कैसा महसूस होता है? तो क्या इसका यह मतलब है कि आपकी तीसरी आंख आप की उंगलियों में है? एक तरीके से हाँ, उस क्षण के लिए! तीसरी आंख का कोई भौतिक स्थान नहीं होता। यह कोई शारीरिक घटना नहीं है। यह बस एक बोध है।
तीसरी आंख को किसी तय स्थान की जरूरत नहीं है
हम जब उन चीज़ों को समझना चाह रहे हैं, जिसका भौतिक स्वरूप नहीं है, तो कृपया इस तीसरी आंख को भौतिक शरीर के किसी विशेष भाग में स्थापित करने का प्रयास न करें। जिसका भौतिक स्वरूप नही है, उसकी यह मजबूरी नहीं है कि वह यहां हो या वहां हो। वह यहां और वहां हो सकती है। जब आप उसके बारे में बात कर रहे हैं जो भौतिक नहीं है तो आप को यह नहीं सोचना चाहिये कि वह कहाँ पर है? जब आप ऐसे आयाम के बारे में बात कर रहे हैं जो भौतिक नहीं है तो उस पर यहां और वहां लागू नहीं होता। जो भौतिक नहीं है, उसके लिये कोई विशेष स्थान नहीं है। सिर्फ भौतिकता को ही किसी खास जगह की ज़रूरत होती है। जो भौतिक नहीं है, उसका न स्थान है न भूगोल।
तो फिर क्या देवी की तीसरी आंख है? हाँ, बिल्कुल! क्या वे साढ़े तीन चक्रों की हैं? जी हां!!