अहंकार क्या है?
सद्गुरु, ‘अहं क्या है,’ प्रश्न का उत्तर देते हैं और अक्सर गलत समझे जाने वाले इस पहलू पर गौर करते हैं। वे समझाते हैं कि अहं न तो अच्छा है और न ही बुरा है, जब तक कि व्यक्ति इससे पहचान नहीं जोड़ लेता।
प्रश्न: नमस्कारम। अहं क्या है? और इसे नष्ट करने के लिए हम कैसे बढ़ें?
सदगुरु: ऐसी चीज नहीं है जो आपके पास इसलिए आई क्योंकि आपने कोई अच्छी चीज की या आप अमीर हो गए या सुंदर हैं या किसी और चीज के कारण। जब आपने अपनी माँ के पेट में लात चलानी शुरू की, तभी अहं का जन्म हो गया था। अपने भौतिक शरीर के साथ पहचान जोड़ने की पहली गलती का मतलब है अहं का जन्म। यह एक सुरक्षा प्रणाली है। इस छोटे से शरीर से आपकी पहचान जुड़ी। इस छोटे से जीव को इस विशाल अस्तित्व में जीवित रहना है, जिसके बारे में आपके पास यह जानने का भी कोई तरीका नहीं है कि यह कहां शुरू होता है और कहां खत्म होता है। बस अपने वजूद को कायम रखने के लिए ही, आपको खुद को एक बड़े आदमी की तरह दिखाना होता है। तो अहं पैदा हो गया। यह एक झूठी हकीकत है जिसे आपने बस जीवन संरक्षण हेतु बनाया है।तो अहं क्या है? यह आपकी परछाई की तरह है। जिस पल आपके पास एक भौतिक शरीर होता है, आपकी एक परछाई भी होती है। परछाई अपने आप में न तो अच्छी है और न ही बुरी है। अगर सूरज ऊपर है तो आपकी परछाई छोटी होगी। अगर सूरज नीचे है तो आपकी परछाई मील भर लंबी होगी। बाहरी परिस्थिति की जैसी मांग होती है, आपकी परछाई भी उसी किस्म की होती है। आपका अहं भी उसी किस्म का होना चाहिए।
वैराग्य
आपने ‘वैराग्य’ शब्द सुना होगा। राग का अर्थ है रंग। ‘वै’ का अर्थ है परे। ‘वैराग्य’ का अर्थ है रंग से परे होना, आप पारदर्शी हो गए हैं। अगर आप पारदर्शी बन जाते हैं तो आपके पीछे अगर लाल रंग है, तो आप भी लाल बन जाते हैं। अगर आपके पीछे नीला है तो आप भी नीले बन जाते हैं। अगर आपके पीछे पीला है तो आप भी पीले बन जाते हैं। आप बिना किसी पूर्वाग्रह के हैं। आप जहां भी होते हैं, आप उसका हिस्सा बन जाते हैं, लेकिन आपसे कुछ चिपका नहीं रहता। अगर आप इस तरह हैं, अगर आप वैराग्य की अवस्था में हैं, सिर्फ तभी आप जीवन के सारे आयामों की खोजबीन करने की हिम्मत करेंगे, जब आप यहां रहते हैं।
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अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की स्थितियों को संभालने के लिए, हमें अलग-अलग तरह की पहचानों की जरूरत होती है। अगर आप उस बारे में लचीले हैं, अगर आप एक से दूसरे में शालीनता से बदल सकते हैं, तब आप अपनी भूमिका पूर्णतया निभा सकते हैं और तब भी उसके साथ कोई समस्या नहीं होती। लेकिन अभी समस्या यह है कि आपने उसके साथ इतनी गहरी पहचान जोड़ ली है, कि आप मानने लगे हैं कि आप वही हैं। एक बार जब आप मान लेते हैं कि ‘मैं परछाई हूँ,’ तब आप क्या करेंगे? आप स्वाभाविक रूप से जमीन पर रेंगेंगे। अगर आप जमीन पर रेंगते हैं, तो जीवन कैसा होगा? अगर हम फर्श पर कालीन बिछा देते हैं, तो आप आराम से रेंगेंगे, आनंद में नहीं। मान लीजिए पत्थर और चट्टानें और कांटे आते हैं? तब आप चीखने लगेंगे। आपका जीवन अभी इसी तरह चल रहा है। अगर बाहरी हालात कालीन जैसे हैं, आप आराम से रेंगेंगे। अगर छोटे कांटे आ जाते हैं, तो आप रोएंगे, क्योंकि आप जमीन पर रेंग रहे हैं।
भौतिक को छीलकर अलग करना
अभी जीवन का आपका पूरा अनुभव भौतिक तक सीमित है। हर चीज जो आप अपनी पांच इंद्रियों से जानते हैं, वह भौतिक है। भौतिक का अपना कोई मकसद नहीं होता, यह बस फल के छिलके की तरह मौजूद रहता है। छिलके का मतलब एक ऐसी चीज से है जो फल के लिए सुरक्षात्मक परत की तरह है। यह शरीर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके अंदर कोई दूसरी चीज है। आपने उस दूसरी चीज का कभी अनुभव नहीं किया है। अगर वह दूसरी चीज कल सुबह चली जाती है, तो कोई भी इस शरीर को छूना पसंद नहीं करेगा जो शव बन गया होगा। तो, आज जब वह मौजूद है, तो हमें उसका ख्याल रखना होता है।
अगर हम भौतिक की सीमाओं से परे नहीं जाते, अगर हम भौतिक के सीमित अनुभव से परे नहीं जाते, तब जीवन सिर्फ एक संघर्ष होगा। अगर हालात अच्छे होते हैं, तो आप बहुत आत्मविश्वास से भरे होते हैं। अगर हालात अच्छे नहीं होते, तो आप शंका से भरे होते हैं। और आप हमेशा जानते हैं कि जो भी हालात अच्छे चल रहे हैं, किसी भी पल, चीजें बिगड़ सकती हैं। यह चीजें बिगड़ने का सवाल भी नहीं है। जीवन किसी भी पल कोई भी दिशा ले सकता है। किसी भी पल, चीजें इस तरह से हो सकती हैं जो आपको पसंद नहीं हैं।
अगर दुनिया में आपके लिए हर चीज बिलकुल गलत जा रही है, और आप फिर भी इस जीवन से अछूते, शांतिपूर्वक और अपने अंदर खुशी-खुशी गुजरते हैं, तब आप जीवन को उस तरह जानते हैं जैसा वह है। वरना, आप बस भौतिक के गुलाम होते हैं।
अहं को नष्ट करने की कोशिश मत कीजिए
आज दुनिया में अहं को नष्ट करने के बारे में बहुत ज्यादा अनावश्यक चर्चा हो रही है। इसे धर्मग्रंथों से लिया गया है। जब भी आपका व्यक्तित्व भद्दा बन जाता है, आप उसे अहं कह देते हैं। यह बात को दूसरी चीज पर डालने का बस एक और तरीका है। जब आपका व्यक्तित्व भद्दा बन जाता है, तो आपको उसे स्वयं की तरह देखना चाहिए। अगर आप यह देखते हैं कि ‘मैं भद्दा हूँ,’ तो आप उस बारे में कुछ करना चाहेंगे। आप उस तरह से अब और नहीं होना चाहेंगे।
लेकिन बस इस संभावना से बचने के लिए हमने तमामों रणनीतियां बना ली हैं। किसी पल में, आप चाहे सुंदर हों या भद्दे हों, वह आप ही हैं, है न? इसे उसी तरह कायम रखें। ऐसी चीजें मत पैदा कीजिए जो नहीं हैं - आपका अहं, आपकी आत्मा, या कोई दूसरी चीज। जिस पल आप ऐसी चीजें पैदा करते हैं, ‘जो सुंदर है वह मेरी आत्मा है, जो भद्दा है वह मेरा अहं है,’ तब कोई रूपांतरण संभव नहीं होगा। अगर आप यह देखते हैं: ‘मैं जो भी बकवास हूँ, मुझमें जो सुंदर है और मुझमें जो भद्दा है, वह दोनों मैं ही हूँ, तब जो भद्दा है वह स्वाभाविक रूप से बदलना शुरू होगा - आप जरूर रूपांतरित होंगे, आप उसे रोक नहीं सकते।
आज दुनिया में, हमें एक साधारण बोध लाने की जरूरत है - जीवन-बोध। अभी, लोगों में सिर्फ अहं-बोध है, उनमें कोई जीवन-बोध नहीं है। वे अहं के प्रति संवेदनशील है, जीवन के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। जब आप इस तरह होते हैं, तब आप सिर्फ खुद को जीवन की तरह देखते हैं, कोई दूसरा जीवन नहीं होता। आप किसी भी चीज को या किसी को भी कुचल सकते हैं। लेकिन अगर आप जीवन के प्रति संवेदनशील हैं, तो आपके अनुभव में हर चीज जीवन होती है, तब आप स्वाभाविक रूप से अपने आस-पास हर दूसरे जीवन के साथ बहुत समझदारी से बर्ताव करते हैं। अगर आप जीवन के प्रति संवेदनशील बन जाते हैं तब अहं कोई समस्या नहीं रह जाएगी।