सुबह का अलार्म कैसे तय करता है आपका दिन?
ऐसे अलार्म रिंगटोन से बचिए, जो नींद में आपको अचानक एक झटका सा दे जाती हैं। अलार्म का प्रयोग करना ही है तो उसकी ध्वनि ऐसी होनी चाहिए, जो आपको नींद से धीरे-धीरे बाहर लेकर आए। ऐसा होने से आपको कई तरह से अपने दिन की बेहतर शुरुआत करने का मौका मिलेगा।
प्रश्न: सद्गुरु, मैंने सुना है कि सुबह अलार्म की आवाज से जागना अपने दिन की शुरुआत करने का अच्छा तरीका नहीं है। किसी खास तरह के संगीत को सुनते हुए उठना क्या बेहतर तरीका हो सकता है? क्या ऐसा करके हम अपने चारों ओर एक बेहतर वातावरण तैयार कर सकते हैं और एक बेहतर दिन की शुरुआत कर सकते हैं?
सद्गुरु: अलार्म की आवाज के साथ जागने में मुद्दा सिर्फ उस आवाज का नहीं है, असली समस्या यह है कि आप अचानक पैदा हुई एक ध्वनि से जागते हैं। आप गहरी नींद में हैं और अचानक एक तेज आवाज होती है तो इसे अच्छा नहीं माना जा सकता। खुशकिस्मती से आजकल लोग अलार्म अपने मोबाइल फोने या आईपैड वगैरह में लगाते हैं, जिसमें वे अपनी पसंद का म्यूजिक लगा सकते हैं। अपने देश में ‘सुप्रभात’ शब्द का चलन है। ‘प्रभा’ का अर्थ है भोर, सुबह या प्रकाश। इस तरह ‘सुप्रभात’ का मतलब अंग्रेजी में ‘गुड मॉर्निंग’ हुआ। सुप्रभात आपको कहा तो गया, लेकिन शब्दों में नहीं, बल्कि एक ध्वनि के जरिए। इस तरह के संगीत कई बार अलग-अलग देवताओं पर आधारित होते हैं। एक ऐसा ही संगीत ध्यानलिंग को समर्पित है। इसके पीछे विचार यही है कि लोग इस ध्वनि को सुनकर उठें, लेकिन आजकल ऐसा नहीं हो रहा है। अगर होता तो कम से कम छोटे शहरों और गांवों में तो आपको सुबह इस तरह की चीजें सबसे पहले सुनाई देतीं। सार यही है कि आपकी सुबह की शुरुआत एक अच्छी ध्वनि के साथ हो।
सुबह के वक्त जागना एक तरह से पुनर्जन्म की तरह है। जब आप नींद में होते हैं तो आप मरे हुए प्राणी की तरह होते हैं और जागने के बाद आप दोबारा जन्म ले रहे होते हैं। अब आपकी वापसी किन चीजों के साथ या किन चीजों को सुनते और महसूस करते हुए होती है, इससे काफी हद तक यह तय हो जाता है कि आपका दिन कैसा रहने वाला है। आज आपका दिन किस दिशा की ओर जाएगा, इसका काफी कुछ फैसला इसी बात से हो जाता है कि आप सुबह किस तरह जाग रहे हैं। पहले के लोगों ने निश्चित रूप से इस चीज को महसूस किया होगा, इसीलिए जब वे सुबह जागते थे, तो उनकी मां और दादी हमेशा शिव, शंभु, हरिओम जैसे शब्दों का स्मरण करती थीं। लेकिन इस ध्वनि के साथ सोने का भी एक तरीका है।
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विनम्रता और गर्व का संयोग
सन् 1800 के मध्य में एक खूबसूरत घटना घटी। मध्य प्रदेश में एक आध्यात्मिक आंदोलन हुआ था, जिसे महिमा नाम से जाना गया। उस वक्त यह एक बहुत बड़ा आंदोलन था। उस क्षेत्र में उनके कुछ आश्रमों में मैं गया हूं। आजकल इतने बड़े-बड़े आश्रम बन चुके हैं कि उनमें हजारों की संख्या में लोग आ सकते हैं। जब मैं वहां एक आश्रम में गया तो मैंने देखा कि वह इतना बड़ा है कि उसमें आराम से तीन से चार हजार लोग रह सकते हैं, लेकिन वहां महज पांच या छ: संन्यासी नजर आए। अब इस सब में गिरावट आ गई है, लेकिन उस दौर में यह अपने चरम पर था। इन योगियों ने आध्यात्मिक पथ पर इतनी तरक्की की थी कि उस वक्त उनका एक अलग पंथ बन गया था। उस दौर में ऐसे तमाम आध्यात्मिक आंदोलनों को स्थानीय राजाओं का संरक्षण मिला करता था, क्योंकि आध्यात्मिक कार्यों को उस दौर में सबसे अहम चीज माना जाता था और इसीलिए समाज उनकी मदद करता था। समाज का एक अहम हिस्सा प्रशासन होता है, इसलिए स्थानीय प्रशासन की ओर से ऐसे आंदोलनों को मदद मिला करती थी।
जब कोई व्यक्ति या प्रशासन ऐसे आंदोलनों की मदद करता है तो वह भी बदले में कुछ फायदे लेना चाहता है। ईशा में हमने ऐसी व्यवस्था की है कि कोई कितना भी बड़ा दान दे, किसी का भी नाम मंदिर पर नहीं लिखा जाएगा। बहुत सारे लोगों को यह बात बड़ी अजीब सी लगी, क्योंकि ऐसे बहुत सारे मंदिर हैं जहां अगर कोई एक ट्यूबलाइट भी दान करता है उस ट्यूबलाइट के आधे से अधिक हिस्से पर तो उसका नाम पता ही लिखा हुआ रहेगा। उस दौर में महिमा के ये लोग किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके और उन्होंने अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया पर ही ध्यान लगाए रखा। ये योगी अपनी विनम्रता को बनाए रखते हुए पूरे गर्व के साथ अपने पथ पर आगे बढ़ते रहे। विनम्रता और गर्व का संयोग - यह बहुत आश्चर्यजनक होता है।
असली या बनावटी?
तो उस दौर में स्थानीय राजा इन सबको मदद दिया करता था। राजा के कुछ चाटुकार इस बात से परेशान हो गए, क्योंकि ये योगी उनके लिए कुछ भी नहीं करते थे। आपके बच्चे का नामकरण संस्कार हो, वे नहीं आएंगे, आपके घर में विवाह संस्कार हो, वे नहीं करेंगे, किसी की मौत हो, वे कोई संस्कार नहीं करेंगे। कुल मिलाकर उनकी कोई सामाजिक उपयोगिता नहीं थी। इसी वजह से राजा के आसपास के कुछ चाटुकारों ने यह मसला उठाया कि जब उनकी कोई उपयोगिता ही नहीं है तो हम उनकी मदद क्यों कर रहे हैं। उनका मानना था कि उन पर पैसा बर्बाद किया जा रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि इन योगियों को देखने से ऐसा भी नहीं लगता कि वे भूखे मर रहे हों। अच्छे-खासे खाते-पीते नजर आते हैं। वे राजा तक के सामने सिर उठाकर गर्व से चलते हैं। फि र हम क्यों उनका साथ दें। अगर हम किसी को पैसा दे रहे हैं तो कम से कम उसे हमारी मदद तो करनी ही चाहिए, हमारे काम तो आना ही चाहिए, लेकिन ये लोग तो अपनी मस्त जिंदगी जी रहे हैं। इन लोगों ने राजा के खूब कान भरे और उसे भरोसा दिलाया कि इन योगियों पर खर्च किया जा रहा पैसा बर्बाद हो रहा है। आखिरकार राजा ने उस पंथ के गुरु को बुलवा लिया और कहा - ‘मेरे कई मंत्रियों का मानना है कि हम आप पर अपना पैसा बर्बाद कर रहे हैं। मैं आपका काफी सम्मान करता हूं, लेकिन हम पर दबाव है कि हम आपको मदद देनी बंद कर दें, क्योंकि आप लोग आध्यात्मिक नजर नहीं आते। हमें लगता है कि अगर आप आध्यात्मिक हैं तो आपको हमारे काम आना चाहिए, लेकिन हम जो चाहते हैं, आप लोग वह सब नहीं कर रहे हैं।’ यह सुनकर गुरु ने कहा, ‘अगर ऐसा है तो एक काम करते हैं। आप मेरे साथ चलें और एक रात मेरे साथ रहें। मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं। उसके बाद आप अपना फैसला लें।’ बात तय हो गई और एक रात वह गुरु और राजा भेष बदलकर निकल पड़े।’
तो जो गुरु थे, वे राजा को पहले उस मंत्री के घर पर लेकर गए, जो आध्यात्मिक लोगों के खिलाफ चल रहे इस पूरे षड्यंत्र का मुखिया था। गर्मियों के दिन थे और वह मंत्री खुले में सो रहा था। गुरु ने एक बाल्टी पानी लिया और छिपकर उस मंत्री पर फेंका। ठंडा पानी बदन पर अचानक गिरते ही मंत्री चौंककर उठ बैठा और गालियां बकने लगा। फिर गुरु और राजा ने दूसरे घर का रुख किया। यह घर सेनापति का था। वह भी आध्यात्मिक आंदोलन के खिलाफ होने वाले षड्यंत्र में शामिल था। योगियों की टोली उसे किसी सेना से कम नहीं लगती थी, इसलिए वह उनसे घबराया रहता था। यहां भी उसी प्रयोग को दोहराया गया। सोते सेनापति पर पानी फेंका गया और उसने मंत्री से भी अधिक भद्दी गालियां बकनी शुरू कर दीं। इसके बाद गुरु राजा को आश्रम ले गए, जहां तमाम योगी यहां-वहां सोए हुए थे। उन्होंने एक सोते हुए योगी पर पानी फेंका। हो सकता है आप पूरी जिंदगी बनावटी बने रहें, लेकिन जब आप सो रहे होते हैं तो आप बनावटी नहीं हो सकते। जागते हुए आप पूरी दुनिया को मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन जब आप सो रहे होते हैं तो आप वही होते हैं, जो आप असल में हैं। खैर, जैसे ही पानी फेका गया, एक योगी चौंककर उठा और बोला - 'हे शिव'। दूसरे की आंख खुली तो उसके मुंह से निकला - 'हे शम्भो'। यह देखकर गुरु बोले - ‘इसे कहते हैं रूपांतरण, जो इन योगियों ने अध्यात्म के बल पर प्राप्त कर लिया है। अपने भीतर गहराई में ये लोग ऐसे हो गए हैं।
तो अलार्म की ध्वनि की मदद से सुबह सबेरे उठना दिन की शुरुआत करने का अच्छा तरीका नहीं हो सकता। मौन की अवस्था में जागना सबसे अच्छा है। लेकिन अगर आपको लगता है कि बिना अलार्म के आप सही समय पर सोकर उठ ही नहीं सकते तो कम से कम सही ध्वनि का प्रयोग कीजिए। ऐसे रिंगटोन से बचिए, जो नींद में आपको अचानक एक झटका सा दे जाती हैं। अलार्म का प्रयोग करना ही है तो उसकी ध्वनि ऐसी होनी चाहिए, जो आपको नींद से धीरे-धीरे बाहर लेकर आए। ऐसा होने से आपको कई तरह से अपने दिन की बेहतर शुरुआत करने का मौका मिलेगा। सुप्रभात कई बेहतरीन चीजें पैदा करता है, लेकिन आप वैराग्य मंत्र के साथ भी उठ सकते हैं।
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