सद्‌गुरुयोग विज्ञान के अनुसार सिर के सबसे ऊपरी बिंदु पर एक छेद या मार्ग होता है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि इसी मार्ग से जीव गर्भ में पल रहे भ्रूण में प्रवेश करता है...

प्रश्न: सद्‌गुरु, कभी-कभार मुझे सिर के मध्य में कुछ तनाव या खिंचाव सा महसूस होता है। मुझे उसकी वजह समझ में नहीं आ रही है।

ब्रह्मरंध्र जीव के लिए एक प्रवेश द्वार है

सद्‌गुरु: सिर पर सबसे ऊपर ब्रह्मरंध्र नाम का एक बिंदु होता है। जब बच्चा पैदा होता है तो उसके सिर पर एक नर्म जगह होती है, जहां तब तक हड्डियां विकसित नहीं होतीं, जब तक बच्चा एक खास उम्र में नहीं पहुंच जाता।

आप भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
रंध्र एक संस्कृ‍त शब्द है मगर दूसरी भारतीय भाषाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है। रंध्र का मतलब है मार्ग, जैसे कोई छोटा छिद्र या सुरंग। यह शरीर का वह स्थान होता है, जिससे होकर जीवन भ्रूण में प्रवेश करता है।

जीवन प्रक्रिया में इतनी जागरूकता होती है कि वह अपने विकल्पों को खुला रखता है। वह देखता है कि यह शरीर उस जीवन को बनाए रखने में सक्षम है या नहीं। इसलिए वह उस द्वार को एक खास समय तक खुला रखता है ताकि अगर उसे लगे कि यह शरीर उसके अस्तित्व के लिए ठीक नहीं है तो वह उसी रास्ते से चला जाए। वह शरीर में मौजूद किसी अन्य मार्ग से नहीं जाना चाहता, वह जिस तरह आया था, उसी तरह जाना चाहता है। एक अच्छा मेहमान हमेशा मुख्य द्वार से आता है और उसी से वापस जाता है। अगर वह मुख्य द्वार से आकर पिछले दरवाजे से चला जाए तो इसका मतलब है कि वह आपका घर साफ करके गया है! आप भी जब शरीर छोड़ते हैं, तो पूरी जागरूकता के साथ आप चाहे शरीर के किसी भी भाग से जाएं, उसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन अगर आप ब्रह्मरंध्र से शरीर छोड़ सकें, तो यह शरीर छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।

हो सकता है जीव लौट जाए और शिशु मृत पैदा हो

कई मेडिकल मामले हैं, जहां मेडिकल साईंस के सभी मानदंडों से भ्रूण के स्वस्थ होने और सब कुछ ठीक होने के बावजूद बच्चा मृत पैदा होता है।

यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में एक गर्भवती स्त्री के आस-पास अलग तरह का माहौल बनाने के लिए कई सावधानियां रखी जाती थीं।
इसकी वजह सिर्फ यह है कि भीतर मौजूद जीवन अब भी चयन कर रहा होता है। जब किसी भ्रूण के अंदर जीव प्रवेश करता है और शिशु बनने की प्रक्रिया में उस भ्रूण को ठीक नहीं पाता है, तो वह उससे बाहर निकल जाता है। इसीलिए एक द्वार खुला रखा जाता है।

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यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में एक गर्भवती स्त्री के आस-पास अलग तरह का माहौल बनाने के लिए कई सावधानियां रखी जाती थीं। आजकल हम उन चीजों को छोड़ते जा रहे हैं, मगर इन सब के पीछे यही उम्मीद होती थी कि आपकी कोख में आने वाला आपसे बेहतर हो। इसलिए एक गर्भवती स्त्री को आराम और खुशहाली की एक खास स्थिति में रखा जाता था। उसके आस-पास सही तरह की सुगंध, ध्वनियों और भोजन की व्यवस्था की जाती थी। ताकि उसका शरीर सही किस्म के प्राणी का स्वागत करने के लिए अनुकूल स्थिति में हों।

ब्रह्मरंध्र एक ‘एंटीना’ है

ब्रह्मरंध्र के बारे में बहुत कुछ कहा गया है और कई किताबें लिखी गई हैं। दुर्भाग्य से कई लोग कल्पना करना शुरू कर देते हैं कि उनके सिर के उपरी हिस्से में कुछ हो रहा है।

अगर आपकी भौतिकता से परे कोई आयाम आपके भीतर निरंतर सक्रिय प्रक्रिया बन जाता है, तो कुछ समय बाद आम तौर पर सुप्त रहने वाले ये दो चक्र जाग्रत हो जाते हैं।
आपको यह समझने की जरूरत है कि आप अपने शरीर के जिस हिस्से पर अपने दिमाग को एकाग्र करेंगे, उसी में आपको कुछ सनसनी महसूस होगी। आप प्रयोग करके देख सकते हैं। अपनी छोटी उंगली के सिरे पर अपना ध्यान एकाग्र करें, आपको वहां काफी संवेदना महसूस होने लगेगा। शरीर में कई बार यहां-वहां मनोवैज्ञानिक मरोड़ और ऐंठन महसूस होती रहती है, खासकर अगर आप जल्दी परेशान होने वाले या तनाव में आ जाने वाले शख्स हैं। ऐसा होने पर ये नहीं समझ लेना चाहिए, कि शरीर में कोई महान प्रक्रिया हो रही है।

शरीर में 114 चक्र हैं, जिनमें से दो भौतिक शरीर से बाहर हैं। अगर आपकी भौतिकता से परे कोई आयाम आपके भीतर निरंतर सक्रिय प्रक्रिया बन जाता है, तो कुछ समय बाद आम तौर पर सुप्त रहने वाले ये दो चक्र जाग्रत हो जाते हैं। उनके सक्रिय होने पर आपके सिर पर एक एंटीना बन जाता है जो आपको जीवन का एक खास नजरिया प्रदान करता है!

ब्रह्मरंध्र एक चौखट की तरह है

यह आपको हमेशा चौखट पर तैयार रखता है, यानी जीवन और उसके परे जाने के चौखट पर। एक योगी हमेशा खुद को देहरी पर रखना चाहता है, ताकि वह जब चाहे, पूरी चेतनता में शरीर से बाहर चला जाए।

यह सोचना शुरू न कर दें कि आप देहरी पर हैं। अगर आपको अपने शरीर में कुछ सनसनी महसूस होती है, तो वह ठीक है।
खास तौर पर मेरे जैसा एक सक्रिय योगी, जो कार तेज़ चलाता है, हेलीकॉप्टर उड़ाता है, फुटबॉल खेलता और अपना घुटना जख्मी कर लेता है, के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि मैं हमेशा खुद को देहरी पर रखूं। ऐसा सभी योगी करते हैं मगर मैं ऐसा ज्यादा करता हूं क्योंकि हेलीकॉप्टर के क्रैश होने की स्थिति में भी मैं अचेतनता में नहीं मरना चाहता।

खुद को देहरी पर रखना सुरक्षित होता है। अगर आप संतुलित हैं, तो तनी हुई रस्सी पर चलना अधिक सुरक्षित है। जो संतुलित नहीं है, उसे यह बहुत खतरनाक लग सकता है मगर वास्तव में यह सड़क पर गाड़ी चलाने से कहीं अधिक सुरक्षित है। क्योंकि तनी हुई रस्सी पर चलने की प्रक्रिया में सिर्फ आप होते हैं। सड़क पर आप अकेले नहीं होते। अगर आपके अंदर संतुलन है, तो देहरी पर बैठना बहुत सुरक्षित है। उसमें कोई जोखिम नहीं है। दुर्घटनावश उससे गिरने का कोई खतरा नहीं है, मगर यह आपको आजादी देता है – अगर चीजें ठीक से न हों, तो आप बाहर निकल सकते हैं, मगर तब आप अचेतन, बेखबरी की स्थिति में नहीं जाएंगे।

यह सोचना शुरू न कर दें कि आप देहरी पर हैं। अगर आपको अपने शरीर में कुछ सनसनी महसूस होती है, तो वह ठीक है। आप या तो अपनी साधना जारी रखें,  या अगर इस ऊर्जा को एक अधिक बड़ी संभावना में रूपांतरित करना चाहते हैं, तो हमारे पास आएं।

संपादक की टिप्पणी:

*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:

21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया

*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:

ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया

नाड़ी शुद्धि, योग नमस्कार