चिदंबरम – महर्षि पतंजलि द्वारा प्रतिष्ठित आकाश तत्व से जुड़ा मंदिर
सद्गुरु इस मंदिर के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाल रहे हैं, और इसके महर्षि पतंजलि के साथ सम्बन्ध के बारे में बता रहे हैं।
दक्षिण भारत में प्रकृति के पांच मौलिक तत्वों पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि व आकाश के लिए पांच मंदिरों का निर्माण किया गया। इनमें से हरेक मंदिर एक अलग तत्व के लिए था। ये पांच मंदिर पंचभूत स्थल कहलाते हैं। भौगोलिक दृष्टि से ये सभी दक्कन के पठार पर स्थित हैं। इनमें से चार तमिलनाडु में और एक आंध्र प्रदेश में स्थित है। जल से जुड़ा मंदिर तिरुवनईकवल में, अग्नि से जुड़ा तिरुवन्नमलाई में, वायु से जुड़ा कालाहस्ति में, पृथ्वी से जुड़ा कांचिपुरम और आकाश से संबंधित मंदिर चिदंबरम में है।
चिदंबरम मंदिर अपने आपमें एक अद्भुत जगह है। इस मंदिर का नया हिस्सा तकरीबन एक हजार साल पुराना है, लेकिन पुराने हिस्से के बारे में कोई नहीं जानता कि यह कितना पुराना है। लोग कहते हैं कि यह हिस्सा लगभग साढ़े तीन हजार साल या उससे भी पुराना है। भारतीय संस्कृति ऐसी ही रही है। जरा देखिए कि प्राचीन काल में भी अपने यहां किस तरह के मंदिरों का निर्माण हुआ है। चाहे आप रामेश्वरम मंदिर ले लीजिए, चाहे चिदंबरम या फिर मदुरई मंदिर, ये सभी विशालकाय इमारतें हैं, जो तकरीबन हजार साल पहले बनी थीं। यह वो समय था, जब राजाओं को छोडक़र लगभग सारे लोग झोपडिय़ों और कुटियों में रहा करते थे। उस समय भवन निर्माण के लिए न तो भारी-भरकम मशीनें हुआ करती थीं और न ही ट्रक और क्रेन जैसी सुविधाजनक चीजें। इसके बावजूद उस समय इन मंदिरों को बनाने में कई पीढिय़ों ने, मकसद से बिना भटके अपना योगदान दिया। इन लोगों ने अपनी पूरी जिंदगी इस मकसद के लिए दे दी। इन मंदिरों के निर्माण के लिए ही जिए और मरे। इसकी वजह थी कि इन मंदिरों का महत्व उनके लिए बहुत ज्यादा था।
चिदंबरम का एक पहलू - नृत्य के देवता नटराज
चिदंबरम मंदिर में शिव की नटराज रूप में प्रतिमा है। शिव को ‘नटराज’ यानी नृत्य का देवता कहा जाता है। नटराज शिव के कुछ महत्वपूर्ण स्वरूपों में से एक है। पिछले दिनों मैं स्विट्जरलैंड स्थित यूरोपियन काउंसिल ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च के ऑफिस गया। यह भौतिकी की दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है, जहां परमाणुओं पर सारे प्रयोग और नाभिकीय विस्फोट होते हैं। मैंने उसके प्रवेशद्वार पर नटराज की एक मूर्ति लगी देखी। दरअसल, उन लोगों का मानना था कि मानव संस्कृति में शिव या नटराज को छोडक़र कोई ऐसा नहीं है, जो उनके द्वारा किए जा रहे कामों के इतना करीब हो।
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शिव का नटराज स्वरूप मूल रूप से दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु से आता है। यह सृष्टि के उल्लास, उसके नृत्य का प्रतीक है, जो शाश्वत मौन से अपने आप पैदा हुआ है। चिदंबरम मंदिर में खड़े नटराज की मूर्ति का अपने आप में प्रतीकात्मक महत्व है, क्योंकि चिदंबरम का मतलब ही पूर्ण शांति या निश्चलता है। यही वो चीज है जो मंदिर के रूप में संजो कर रखी गई है - परम शांति। शास्त्रीय कला का मकसद ही इंसान में पूर्ण शांति लाना है। बिना शांति या निश्चलता के असली कला पाई ही नहीं जा सकती।
चिंदरबरम मंदिर का एक महत्वपूर्ण पहलू तो नटराज हैं, लेकिन इसके जो मुख्य देवता हैं वह उस मंदिर का घेरा है। इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा खुद पंतजलि ने की थी। पतंजलि ने इस मंदिर को खास वैज्ञानिक तरीके से प्रतिष्ठित किया। दरअसल, वह एक भक्त न हो कर एक वैज्ञानिक थे, इसलिए उन्होंने मंदिर के रख-रखाव का एक सही तरीका निकाला। उन्होंने कुछ ऐसे लोगों का समूह तैयार किया, जिन्हें खास तरह की साधना और अनुशासन के साथ-साथ मंदिर में दैनिक कर्मकांडों की विधियों का पालन करना था। वो परिवार समय के साथ बढ़ते गए और उन्होंने मंदिर की देखभाल जारी रखी। यहां तक कि आज भी वे लोग आमतौर पर पतंजलि द्वारा तय किए गए तरीकों और कर्मकांडीय विधियों के मुताबिक ही मंदिर की देखभाल कर रहे हैं।
चिदंबरम का पुनरोद्धार
चिदंबरम मंदिर की इमारतें तकरीबन पैंतीस एकड़ में फैली है। पूरी तरह से पत्थरों से बना यह मंदिर बेहद भव्य है। इस विशाल मंदिर की देखभाल और रखरखाव के लिए उस समय इस मंदिर को सैकड़ों एकड़ जमीन और जेवरात दिए गए थे। लेकिन ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने भारत के तमाम मंदिरों पर न सिर्फ अपना अधिकार जमा लिया, बल्कि उन्होंने मंदिरों से जुड़े बेपनाह खजाने को भी लूटा। इन मंदिरों के अधिकांश जेवरात आज गायब हो चुके हैं। कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के लिए ब्रिटेन को जो पैसा चाहिए था, उसका ज्यादातर हिस्सा भारत के मंदिरों से लिया गया था। अग्रेजों ने इन मंदिरों की जमीन लेकर भी बांट दी, जिससे मंदिरों की आर्थिक हालत खस्ता हो गई और आज उनकी देखभाल के लिए भी दिक्कतें आ रही हैं।
आज मंदिर से जुड़े तकरीबन 360 परिवार इस मंदिर की पूजा और कर्मकांड-परंपरा को निबाह रहे हैं और उनकी जिंदगी भी इसी से चल रही है। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते ये परिवार मंदिर का रखरखाव नहीं कर पा रहे हैं, जिससे बहुत सी चीजें नष्ट होजी जा रही हैं। मंदिर की छत पर वेजिटेबल पेंट से बनी तकरीबन एक हजार साल पुरानी पेंटिंग्स का 60 फीसदी हिस्सा आज गायब हो चुका है। जगह-जगह इसका प्लास्टर झड़ रहा है, लेकिन इसे कोई ठीक कराने वाला नहीं है। इसे ठीक करने के लिए अनजाने में ही ये लोग कंकरीट का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन इससे पूरी तरह से पत्थर से बने इस मंदिर की खूबसूरती, कलात्मकता और संरचना बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।
पतंजलि ने जब इस मंदिर को बनाया तो इसमें उन्होंने जो भी चीजें बनवाईं, वो केवल सजावट के लिए नहीं थीं, बल्कि उन्होंने वही किया जो बेहद जरूरी था। यह अपने आप में एक अद्भुत जगह है। आज इस जगह को संरक्षण और साजसंभाल की और पूरी मानवता तक पहुंचाने की जरूरत है। हम यह काम करना चाहते हैं। लेकिन इस मंदिर के पुनरोद्धार और इसके आसपास की जगह को साफ कराने के लिए बहुत पैसों की जरूरत है। मंदिर के चारों तरफ हर तरह का घना बाजार बस गया है, जो कि ऐसी जगह के लिए ठीक नहीं है। हम इस बारे में कुछ करना चाहते हैं, मसलन यहां योजनाबद्ध तरीके से बाजार या होटल वगैरह का खाका बनाना चाहते हैं, लेकिन यह सब फिलहाल सिर्फ वैचारिक स्तर पर ही है।
इंसान की सच्ची खुशहाली
हम इस काम को करने के लिए भारत में ही किसी कॉरपोरेट सहयोग की तलाश कर रहे हैं। अगर ये होता है, तो मैं इसका पुनरोद्धार कराना चाहूंगा, क्योंकि आपका घर चाहे हजार वर्गफीट का हो या दस हजार वर्गफीट का, इससे आपकी जिंदगी में कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन आपके आसपास एक प्रतिष्ठित स्थान के होने से निश्चित तौर पर आपकी जिंदगी जबरदस्त तरीके से प्रभावित होती है। भारतीय संस्कृति में मौजूद इसी समझ के साथ हमारे पूर्वजों ने रहने के इंतजाम किए। अगर पच्चीस घर हैं, तो आसपास एक मंदिर होना चाहिए। भले ही आप इन मंदिरों में जाएं या नहीं, आप वहां पूजा या प्रार्थना करें या न करें, भले ही आप मंत्र जानते हों या नहीं, इसका कोई महत्व नहीं है। असली महत्व है कि आप जीवन के हर पल एक प्रतिष्ठित स्थान के प्रभाव क्षेत्र में बिताएं।
जीवन के इस पहलू के बारे में एक विशाल जानकारी हमारी संस्कृति में रची बसी है और इसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना गया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या खाते हैं या कैसे और कितने सालों तक जीते हैं, लेकिन जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर आकर आप इस सृष्टि के रचयिता के संपर्क में जरूर आना चाहेंगे। अगर धरती पर इस संभावना का निर्माण न हो, और इसकी खोज में लगे हर इंसान को यह संभावना उपलब्ध न कराई जाए, तो समाज इंसान को उसका असली कल्याण दे पाने में नाकाम रहेगा।