डिप्रेशन और उदासी - कैसे बचें इनसे?
अपने जीवन में हर कोई कभी न कभी, किसी न किसी वजह से उदास जरुर हो जाता है। कई बार हमारे हालात कुछ ऐसे चल रहे होते हैं कि हम लंबे दिनों तक उदास रहते हैं और फिर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
अपने जीवन में हर कोई कभी न कभी, किसी न किसी वजह से उदास जरुर हो जाता है। कई बार हमारे हालात कुछ ऐसे चल रहे होते हैं कि हम लंबे दिनों तक उदास रहते हैं और फिर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। आइए आज सद्गुरु से जानते हैं कि आखिर कैसे बचें उदासी और अवसाद से ?
हमें समझना होगा कि आखिर उदासी और अवसाद होते क्या हैं? असल में अगर उदासी लम्बे समय तक कायम रहती है, तो आप अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ऐसे हालातों में आपके भीतर क्या होता है? बुनियादी तौर पर, जब चीजें आपकी योजना के अनुसार नहीं होतीं, या लोगों का बर्ताव आपके मनमुताबिक नहीं होता, और साथ ही इन पर आपका कोई वश भी नहीं होता, तब आप उदास हो जाते हैं।
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आखिर आप किसी चीज के खिलाफ क्यों होते हैं? आप खिलाफ सिर्फ इसलिए होते हैं, क्योंकि चीजें आपकी उम्मीद के हिसाब से नहीं हुईं। आखिर पूरी दुनिया को आपके हिसाब से क्यों चलना चाहिए? आप कृपया समझने की कोशिश कीजिए कि दुनिया आपके बेवकूफी भरे अंदाज में नहीं चलेगी। इसका सीधा सा मतलब तो यह हुआ कि या तो आपको सृष्टि के रचयिता पर भरोसा नहीं है, या फिर आपमें स्वीकार भाव नहीं हैं, या फिर दोनों ही बातें सही हैं और साथ ही आपका ’अहं’ अति-संवेदनशील है। इसी वजह से आप अवसाद से घिर जाते हैं।अवसाद आपको चिड़चिड़ा और गंभीर रूप से आत्मघाती बनाता है। आमतौर पर अवसाद से घिरे लोग किसी दूसरे को नहीं मारते, बल्कि वे खुद को ही अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। मारने का मतलब हमेशा सिर्फ शारीरिक रूप से मारना या नुकसान पहुंचाना ही नहीं होता। अवसाद एक तरह का हथियार है, लेकिन यह ऐसा हथियार नहीं है, जो बाहर निकलकर किसी को भी काट डाले। यह तो खुद के ही टुकड़े कर डालेगा और आपका जीवन दुखी बना देगा। अवसाद से घिरे लोग ऐसा ही करते हैं।
एक इंसान, जो तलवार लेकर बाहर निकलता है और किसी को काट डालता है, उसका अहं न तो उतना संवेदनशील होता है और न ही उसके अहं को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है, जितनी कि एक अवसाद से ग्रस्त इंसान के अहं को। एक उत्तेजित और हिंसक इंसान को समझाया जा सकता है। क्या आपने नहीं देखा कि सडक़ पर झगड़े के दौरान लोग एक दूसरे की जान लेने तक उतारू हो जाते हैं, ऐसे में अगर वहां मौजूद कोई एक समझदार इंसान उन लोगों को समझाने की कोशिश करता है, तो एक पल पहले तक मरने-मारने पर उतारू लोग, अगले ही पल अपने हथियार डाल देते हैं, और दोस्त बन जाते हैं और अपने-अपने रास्ते चल देते हैं।
आपको क्या चीज चोट पहुंचा सकती है? अगर मैं आपके शरीर को एक छड़ी से मारूं तो आपके शरीर को तकलीफ पहुंचेगी, यह एक अलग बात हुई। वरना आपके भीतर वो कौन सी चीज है, जिसे तकलीफ पहुंचती है। क्या वह सिर्फ आपका अहं नहीं है? देखिए मस्तिष्क को तो ठेस लग नहीं सकती। इसी तरह से आपके भीतरी मूल तत्व को भी आहत नहीं किया जा सकता। यह सिर्फ अहं ही है, जिसे ठेस पहुंचाई जा सकती है। इसलिए अगर आप कहते हैं कि मैं आगे बढऩा चाहता हूं, तो आगे बढऩे का मतलब हुआ, इनसे पार जाना, अपने अहं को कुचलकर कर आगे बढऩा।
इंसान अपनी किसी भी भावना को अपने जीवन की रचनात्मक शक्ति बना सकता है। यह शक्ति नकारात्मक नहीं होती। अस्तित्व में नकारात्मकता जैसी कोई चीज होती ही नहीं। यह तो हम सोचते हैं कि यह सकारात्मक है और यह नकारात्मक। नकारात्मक को भी सकारात्मक जितना ही महत्वपूर्ण और रचनात्मक आयाम बनाया जा सकता है। देखिए दो तरह के तार होते हैं - धनात्मक और ऋणात्मक, जिनसे बल्ब में रोशनी होती है, जिससे माइक्रोफोन काम करता है। इसलिए नकारात्मकता कोई ऐसी चीज नहीं है, जिससे छुटकारा पाया जाए, क्योंकि इसे भी सकारात्मकता जितना ही लाभदायक बना सकते हैं। अगर आपकी उदासी आपको याद दिला रही है कि आप अधूरे हैं, तो यह अच्छी बात है, इस उदासी का इस्तेमाल अपने विकास के लिए कीजिए। लेकिन जब आप दुखी होते हैं, अगर आप चिड़चिड़ाना शुरू कर देते हैं, अगर आप गुस्सा हो जाते हैं, अगर आप सोचते हैं कि पूरी दुनिया ही गलत है, तब आप सिर्फ एक मूर्ख हैं।
असल में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इंसान की इंसानियत केवल तभी जागती है, जब वह जीवन से हार जाता है। ज्यादातर इंसानों में दुख को जाने बिना परिपक्वता नहीं आती। अगर आपको उदासी के बारे में पता है और आपको पीड़ा का भी अहसास है, केवल तभी आप एक परिपक्व इंसान बन सकते हैं। वरना न तो कभी आप यह समझ पाएंगे कि आपके साथ क्या हो रहा है, और न ही कभी आप जान पाएंगे कि आसपास के लोगों के साथ क्या घटित हो रहा है। बिना दर्द को जाने कभी आपको करुणा का अहसास नहीं होता। अपनी सभी भावनाओं को रचनात्मक तरीके से काम में लेना सीखना भी बेहद जरूरी है। जीवन में केवल सुख का होना ही महत्वपूर्ण नही होता।
योग में अवसाद को शरीर, मन और ऊर्जा के स्तर पर संभाला और संचालित किया जाता है। जब जरूरत के हिसाब से तन, मन और ऊर्जा के बीच संतुलन बन जाता है, तब जीवन में आनंदमय होना बहुत स्वाभाविक है। एक आनंदपूर्ण व्यक्ति में कभी अवसाद आ ही नहीं सकता।