दूसरे शरीर में प्रवेश करने को क्या योग में महत्त्व दिया जाता है?
यहाँ सद्गुरु शमनवाद के कुछ पहलुओं को स्पष्ट कर रहे हैं और ये भी बता रहे हैं कि क्यों इन क्रियाओं को यौगिक विज्ञान में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया?
आदिम अमेरिकन संस्कृतियों में शमनवाद की परंपरा
सद्गुरु: शमनवाद की, खास कर आदिम अमेरिकन संस्कृतियों में, बड़ी परंपरा है। आदिम अमेरिकन ओझा(शमन) अपने आपको एक बाज़, मक्खी या भेड़िये या किसी भी और प्राणी के रूप में बदल लेते थे, इस बारे में आज भी लोग बात करते है। ये सिर्फ कहानियाँ नहीं हैं, ये पूरी तरह से संभव है कि किसी व्यक्ति की अगर इच्छा हो तो वो अपना खुद का आकार, रूप, शरीर बदल ले। लोगों का दूसरे शरीर में प्रवेश करना कोई अनसुनी बात नहीं है, ये बात दुनिया के लगभग हर भाग में मौजूद है।Subscribe
किसी ओझा द्वारा अपने आपको बाज़ या भेड़िये के रूप में बदल लेने की बात आप काफी सुनेंगे क्योंकि ये दो तरह के शरीर उनके लिये सामान्य बात है। यौगिक संस्कृति में भी ये कोई अनसुनी बात नहीं थी पर इसे अच्छा नहीं माना गया। इसका कारण यह है कि ये आध्यात्मिकता नहीं है, ये तंत्र है। इसमें हमारे तंत्र वैज्ञानिक - मैं उन्हें वैज्ञानिक इसलिये कहता हूँ क्योंकि वे उसी तरह के हैं - अपने आपको किसी पक्षी या पशु के रूप में नहीं बदलते क्योंकि इसमें खतरे बहुत हैं। ये उन चीजों को करने का मूल तरीका है, क्योंकि जब आप किसी और के शरीर में प्रवेश करते हैं तो आपके मूल शरीर को संभाल कर रखा जाना बहुत ज़रूरी है और इसका दुरुपयोग हो सकता है।
ओझाओं की शमन प्रक्रियाओं के खतरे
यौगिक संस्कृति में एक प्रसिद्ध घटना है, जो इसका उदाहरण है। तमिलनाडु में सुन्दरनाथ नाम के एक महान ऋषि और दिव्यदर्शी घूमते रहते थे। एक दिन उन्होंने एक गोपालक को देखा, जिसका नाम मूलन था और जो जंगल में साँप के काटे जाने से मर गया। उसकी गायें उसके साथ बहुत ज्यादा घुली-मिली हुईं थीं और उसके लिये उन्हें इतना ज्यादा प्रेम था कि जब उसकी मृत्यु हुई तो वे उसे जंगल में छोड़ने को तैयार नहीं थीं, और ऐसे रो रहीं थीं जैसे उनकी माँ मर गयी हो। इस परिस्थिति को देख कर सुन्दरनाथ बहुत दुखी हुए।
उन्होंने करुणावश सोचा कि उन गायों को इस तरह शोक में रहने देना ठीक नहीं है, तो, एक पेड़ के खोखर में जा कर उन्होंने अपना शरीर वहाँ छोड़ा और उस गोपालक, मूलन के शरीर में प्रवेश कर गये। इसे ही 'परकाया प्रवेश' कहते हैं। जब मूलन के शरीर में सुन्दरनाथ उठ कर बैठ गये तो वे गायें बहुत खुश हुईं। वे उन गायों को वापस घर ले गये।
पर उन्होंने एक बात के बारे में नहीं सोचा था कि घर छोड़ना और फिर से जंगल जाना मुश्किल होगा क्योंकि वहाँ कुछ ज़रूरी सामाजिक काम थे। मूलन की पत्नी ये देख कर बहुत दुखी हुई कि उसके पति उसमें और घर की परिस्थितियों में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। तो उनके वापस आने में देर हो गयी। बाद में, जब वे रात में जंगल वापस आये तो ये देख कर बहुत परेशान हुए कि पेड़ के खोखर में पड़े हुए उनके मृत शरीर को किसी यात्री ने देख लिया था, और इस जमीन की ये संस्कृति है कि अगर आपको कोई मृत शरीर ऐसे ही पड़ा हुआ दिखता है तो सही ढंग से उसका अंतिम संस्कार कर देना चाहिये, तो उन यात्रियों ने उस शरीर का अग्नि संस्कार कर दिया था।
अब वे मूलन के शरीर में फंस गये। वे गाँव वापस गये पर अब उन्होंने देखा कि वे मूलन की ज़िंदगी में किसी भी तरह से शामिल नहीं हो सकते थे। पत्नी, पशु, समाज, ये सब वो चीजें नहीं थीं जिनके लिये सुन्दरनाथ अपने जीवन में काम कर रहे थे। तो, वे आँखें बंद कर के बैठ गये। साल में सिर्फ एक बार, वे महाशिवरात्रि के दिन अपनी आँखें खोलते थे। जब भी वे अपनी आँखें खोलते तो अंतर्दृष्टि और बुद्धिमता, ज्ञान की कोई बढ़िया नयी बात लोगों को बताते थे। ये उन लोगों के लिये उनके उपहार थे जो तब उनकी सेवा करते थे जब वे आँख बंद कर के बैठे रहते थे।
भारत के तंत्र वैज्ञानिक
इस खतरे की वजह से ही यौगिक संस्कृति के तंत्र वैज्ञानिकों ने दूसरी तरह के तरीके विकसित किये। वे खुद दूसरे शरीरों में नहीं जाते पर कुछ प्राणियों से, एक खास तरीके से काम कराते हैं। वे साधारण रूप से मुर्गे/चूजे का उपयोग करते हैं। ये मुर्गा युवा और गतिशील होना चाहिये। वे उस मुर्गे के जीवन को मुक्त कर देते हैं और उस जीवन से अपने लिये कुछ काम कराते हैं।
इन चीजों को करने के लिये उन्होंने ज्यादा कृत्रिम, बनावटी तरीके विकसित किये। तंत्र विज्ञान के बहुत से पहलू हैं। अगर हम कुछ खास क्रियायें करना चाहें तो ये क्रियायें की जा सकती हैं। पर, हम यहाँ वे चीजें नहीं करते क्योंकि ये सब करने में फायदा क्या है? बस होगा यही कि आप अज्ञानता के और ज्यादा गंभीर स्तरों पर पहुँच जायेंगे। अगर आप शरीर बदल सकते हैं तो जीवन की प्रक्रियाओं में आप अभी जितने उलझे हुए हैं, उससे कहीं ज्यादा उलझ जायेंगे। इसकी शक्ति कई तरह से आपका नाश कर देती है।