हठ योग : योगासन का विज्ञान
आसनों का अभ्यास योग का एक मुख्य अंग है। आसनों के बारे में ऐसा क्या ख़ास है जो वे हमें अपनी परम प्रकृति तक ले जाने में मदद कर सकते हैं?
आसनों का अभ्यास योग का एक मुख्य अंग है। आसनों के बारे में ऐसा क्या ख़ास है जो वे हमें अपनी परम प्रकृति तक ले जाने में मदद कर सकते हैं?
जब आप अपनी चेतना में हर चीज को एक महसूस करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप योग में स्थित हैं। अपने भीतर उस मेल या एकत्व को प्राप्त करने के कई तरीके हैं। आप शरीर के साथ काम करते हैं, फिर आप सांस की ओर बढ़ते हैं, फिर मन और फिर अपने अंतर्मन की ओर।
आप अभी जो हैं, आपका शरीर उसी का एक बड़ा हिस्सा है। अपने विकास की प्रक्रिया को तेज करने के लिए शरीर का इस्तेमाल करने के विज्ञान को ही हठ योग कहा जाता है। शरीर का भी अपना रवैया, अपना अहं, अपनी प्रकृति होती है। मान लीजिए कि आपने फैसला किया, ‘कल से मैं सुबह पांच बजे उठकर टहलने जाऊंगा।’ आप अलार्म लगाते हैं। अलार्म बजता है। आप उठना चाहते हैं मगर आपका शरीर कहता है, ‘चुपचाप सो जाओ।’ उसका एक अपना तरीका है। हठ योग शरीर के साथ काम करके, उसको अनुशासित करने, शुद्ध करने और ऊर्जा व संभावनाओं के ऊच्च स्तरों के लिए तैयार करने का एक तरीका है।
हठ योग: ह “सूर्य” और ठ “चंद्र” का प्रतीक
पतंजलि योग के तीसरे अंग यानि आसन का इस तरह वर्णन करते हैं, ‘स्थिरम्, सुखम् आसनम्’ - आसन का मतलब है कि आप आरामदेह स्थिति में और स्थिर हैं।
आसनों के विज्ञान को हठ योग कहा जाता है। ‘ह’ का मतलब है सूर्य, ‘ठ’ का मतलब है चंद्रमा। योग की पहली प्रक्रिया आपके अंदर मौजूद पुरुषत्व और स्त्रैण के बीच संतुलन लाने की प्रक्रिया है। वरना चेतनता को बढ़ाया नहीं जा सकेगा। हठ योग कोई व्यायाम नहीं है। शरीर की क्रियाप्रणाली को समझना, एक खास माहौल पैदा करना और फिर अपनी ऊर्जा को एक खास दिशा में ले जाने के लिए शारीरिक मुद्राओं का इस्तेमाल करना ही हठ योग या योगासन हैं। ‘आसन’ का अर्थ है ‘मुद्रा’।
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शरीर कोई बाधा न बने, इसका ध्यान रखने में मेहनत और समय खर्च करना बहुत जरुरी है। एक कष्टमय और बाध्यकारी शरीर बहुत बड़ी बाधा और विवशता बन सकता है। मामूली विवशताएं, चाहे वह काम-वासना हो या मल-मूत्र त्याग की इच्छा हो, ये इतनी मजबूती से आप को वश में कर सकती हैं कि वे आपको उसके परे नहीं देखने देंगी। स्थूल शरीर एक बड़ी चीज बन जाता है। शरीर सिर्फ आपका एक हिस्सा है, आपको पूरी तरह शरीर नहीं होना चाहिए। आसन शरीर को उसकी असली जगह पर ले जाता है।
शिव को अर्धनारीश्वर इसीलिए कहा जाता है - उनका आधा हिस्सा स्त्री है और दूसरा आधा पुरुष। वह एक पुरुष हैं और खुद पुरुषत्व के प्रतीक हैं। साथ ही, वह स्त्री भी हैं क्योंकि इस संतुलन को लाए बिना, अपने अंदर इन दोनों आयामों को विकसित किए बिना, हम परम तक नहीं पहुंच सकते, इंसान अपनी पूर्ण संभावना तक विकसित नहीं हो सकता। यही वजह है कि आप योग के जिस पहले आयाम का अभ्यास करते हैं, वह हठ योग है। इसका मतलब है कि सूर्य और चंद्रमा का योग पुरुषत्व और स्त्रैण के बीच संतुलन ला रहा है। यह पहला कदम है, जिसे उठाना जरूरी है।
मानव प्रणाली की गहन और व्यापक खोज-बीन के बाद, योगिक प्रणाली ने 84 आसनों को योगासन के रूप में मान्यता दी। इन 84 मुद्राओं की मदद से आप अपने शरीर और मन को अपने परम कल्याण की एक बड़ी संभावना के रूप में रूपांतरित कर सकते हैं।
सूर्य नमस्कार : सौर चक्र के साथ तालमेल
सूर्य नमस्कार का मकसद मुख्य रूप से अपने भीतर एक ऐसे आयाम का निर्माण करना है, जहां आपके शारीरिक चक्र सूर्य के चक्रों के साथ तालमेल में हों। सूर्य का एक चक्र बारह साल, तीन महीनों का होता है। यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि सोच-समझकर सूर्य नमस्कार में बारह मुद्राएं या बारह आसन बनाए गए हैं। अगर आपकी प्रणाली या आपका शरीर एक खास तरह के स्पंदन में है और उसकी ग्रहणशीलता अच्छी है, तो कुदरती तौर पर आपके चक्र, सौर चक्र के तालमेल में होंगे।
सूर्य क्रिया
सूर्य-क्रिया आपकी प्रणाली में सहजता लाने की दिशा में एक असाधारण प्रक्रिया है। आपके सिस्टम में चिकनाहट या आपके भीतर सहजता तब तक नहीं आएगी, जब तक सबसे बड़ी प्रणाली सौरमंडल के साथ आप तालमेल नहीं बिठा लेते। आप जो हैं, उसी का विस्तृत रूप है यह सौरमंडल।
सूर्य-क्रिया की यह प्रक्रिया आपके चक्रों को बड़ा करती है, इस तरह से कि आपकी ऊर्जा-प्रणाली के चक्र इतने बड़े हो जाएं कि वे बिल्कुल सौर चक्रों के बराबर हो जाएं। एक सौर चक्र को पूरा होने में बारह साल, तीन महीने और कुछ दिन का वक्त लगता है। आपकी प्रणाली, आपकी ऊर्जा-प्रणाली को भी ठीक इतना ही वक्त लगना चाहिए। जब आप उतना ही समय लेंगे, अगर आपके चक्र पूरी तरह सूर्य के साथ तालमेल में होंगे, तब आप महसूस करेंगे कि आपका सिस्टम बिना किसी तरह की रगड़ या घर्षण के चल रहा है। इस अवस्था को लाने के लिए कई प्रणालियां हैं। सूर्य-क्रिया उसी दिशा में एक शक्तिशाली प्रक्रिया है।
सूर्य-क्रिया की दीक्षा-प्रक्रिया बहुत सरल होती है। यह सरल इसलिए है, क्योंकि अगर आपने अपने शरीर या प्रणाली में एक खास स्तर की ज्यामिति हासिल कर ली है, तो फि र आपको बस अपनी बनाई गई नई ज्यामिति की ही जरूरत होगी। नई ज्यामिति से मेरा मतलब है कि शरीर में मौजूद एक सौ चौदह चक्रों में से अगर आपके शरीर में इक्कीस चक्र सक्रिय हो जाते हैं, तब भी आप भरपूर जिंदगी जी सकते हैं। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से आप एक पूरी जिंदगी जी सकेंगे। यह दीक्षा मुख्य रूप से आपके सिस्टम में ऊर्जा डालने के लिए है। ज्यादातर लोगों के अंदर इतने चक्र भी खुले और सक्रिय नहीं होते। जिस इंसान में ये इक्कीस चक्र पूरी तरह लचीले, सक्रिय और जीवंत हैं, वह अपने भीतर एक बहुत सक्रिय, स्फूर्तिवान और संपूर्ण जीवन जी सकेगा।
अंगमर्दन
‘अंगमर्दन’ का मतलब अपने हाथ-पैरों या शरीर के अंगों पर नियंत्रण होना है। अंगमर्दन में आप मांसपेशियों का लचीलापन बढ़ाने के लिए अपने शारीरिक भार और बल का इस्तेमाल करते हैं। यह सिर्फ पच्चीस मिनट की प्रक्रिया होती है, जो आजकल हम सिखाते हैं। यह सेहत और खुशहाली पर बहुत चमत्कारी असर करता है। यह एक अद्भुत प्रक्रिया है और अपने आप में संपूर्ण है।
उप-योग
उपयोग योग की एक प्रणाली है, जिसका रूझान आध्यात्मिकता की ओर बहुत अधिक नहीं है। यह खास तौर से इंसान के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा के स्तर पर काम करती है। यह इसलिए है ताकि इन्सान एक अधिक संपूर्ण भौतिक जिन्दगी जी सके। उपयोग का एक पहलू जोड़ों में चिकनाई लाना और ऊर्जा बिंदुओं को सक्रिय करना है ताकि बाकी की प्रणाली काम करने लगे।