हमारे पास पैसा रहना बुरा है या अच्छा?
यहाँ सद्गुरु समझा रहे हैं कि पैसे का महत्व कब होता है और कब नहीं। और, बात जब पैसे का प्रबंधन करने की हो तो उसका सबसे अच्छा उपयोग हम कैसे कर सकते हैं?
सद्गुरु: कुछ समय पहले, कोई मेरे पास एक आदमी को ले कर आया था। वो आदमी एकदम हताश, टूटा हुआ दिख रहा था और आत्महत्या करना चाहता था। क्यों? क्योंकि लगभग 5 साल पहले, उसकी संपत्ति की कीमत 3000 करोड़ रुपये थी। फिर वो शेयर बाजार में दाँव खेलने लग गया, पर वहाँ कुछ गड़बड़ हो गयी और उसकी संपत्ति घट गयी। जब वो मेरे पास आया तो उसकी संपत्ति की कीमत 250 करोड़ रुपये ही रह गयी थी। तो वो आत्महत्या करना चाहता था। भारत में अधिकतर लोगों को इतना पैसा दिखायें और पूछें, "आप ये पैसा लेना पसंद करेंगे या स्वर्ग जाना", तो वे पैसा ही लेना चाहेंगे। पर ये आदमी परेशान था। अगर आप पैसा अपनी जेब में रखते हैं तो ये अच्छा है, पर अगर ये आपके सिर में घुस जाता है तो ये एक बड़ा दुख बन जाता है क्योंकि वो इसकी जगह नहीं है।
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दुनिया में हमें केवल संपत्ति नहीं बनानी है, बल्कि खुशहाली बनानी है। धन-दौलत मनुष्य की खुशहाली के कई साधनों में केवल एक साधन है, लेकिन मात्र यही सब कुछ नहीं है। संपत्ति का मतलब अपने लिये बाहर की स्थिति को सुखद बनाना है। पर अभी तो लोग इसके पीछे ऐसे पड़े हैं जैसे कि ये कोई धर्म हो। पैसा बस एक साधन है; ये अपने आप में मंज़िल नहीं है। हम बिना किसी कारण के इसे बहुत बड़ा बना रहे हैं। क्या ये खराब है? क्या ये अच्छा है? इन दोनों में से ये कुछ भी नहीं है। ये बस एक साधन है जो हमने बनाया है।
हमें यह समझना चाहिये कि कोई भी पैसा नहीं चाहता है। ये थोड़ा बेतुका लग सकता है पर मैं कह रहा हूँ कि वो पैसा नहीं है जिसे लोग चाहते हैं। बात बस ये है कि जिसे वो बेहतर जीवन समझते हैं, उसे पाने के लिये पैसा ही एक साधन है।
सभी चाहते हैं कि उनका जीवन सुखद रहे। जब हम सुखद रहने की बात करते हैं तो ये 5 तरीकों से हो सकता है। अगर आपका शरीर सुखद अवस्था में है, तो हम इसे सुख कहते हैं। जब आपका मन सुखद हो जाता है तो हम इसे शांति कहते हैं, और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाये तो हम इसे हर्ष कहते हैं। अगर आपकी भावनाएँ सुखद होती हैं तो हम इसे प्रेम कहते हैं, और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जाती हैं तो हम इसे करुणा कहते हैं। जब आपकी जीवन - उर्जायें सुखद हो जाती हैं तो हम इसे आनंद कहते हैं और अगर ये बहुत ज्यादा सुखद हो जायें तो हम इसे परमानंद कहते हैं। अगर आपके आसपास सब सुखद हो तो हम इसे सफलता कहते हैं। आपको यही सब चाहिये, है कि नहीं? "नहीं, मैं स्वर्ग जाना चाहता हूँ"। पर, आप स्वर्ग क्यों जाना चाहते हैं? क्योंकि सभी विज्ञापन यही कहते हैं कि वो बहुत सुखद जगह है। तो आपको बस सुखद अवस्था चाहिये, खुशी चाहिये और अभी आपका यही विश्वास है कि इस दुनिया में, पैसे से आप इसे खरीद सकते हैं। और कुछ हद तक ये सही भी है।
पर, पैसा सिर्फ बाहरी अवस्था को सुखद बना सकता है, ये आपके अंदर की अवस्था को सुखद नहीं बना सकता। अगर आपके पास बहुत पैसा है तो आप एक पाँच सितारा होटल में रह सकते हैं पर अगर आपका शरीर या मन, आपकी भावनायें या उर्जायें सुखद नहीं है तो क्या आप उस पाँच सितारा होटल का आनंद ले पायेंगे? नहीं! अगर ये चारों सुखद हैं तो एक पेड़ के नीचे भी आप खुश रहेंगे। तो क्या इसका ये मतलब है कि आपके पास पैसा नहीं होना चाहिये। नहीं, ऐसा नहीं है। लेकिन, आपको अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देना चाहिये। कि पहले क्या आना चाहिये? अगर आपके अंदर ये चारों बहुत सुखद हैं और आपके पास पैसा भी है, तो आप बाहर की अवस्था को भी सुखद बना लेंगे। तो, पैसे के मामले में कुछ भी गलत नहीं है। ये बस एक साधन है। बात बस ये है कि अगर पैसा आपकी जेब में न रह कर आपके सिर में घुस जाता है, तो मुसीबत तो आयेगी ही।
संपादक की टिप्पणी :जीवन को रूपांतरित करें - सद्गुरु के साथ इनर इंजीनियरिंग जीवन को खुशहाल बनाने की एक तकनीक है। यह योग विज्ञान पर आधारित है। इस चुनौती भरे समय में आधे मूल्य पर उपलब्ध अगर आप मेडिकल पेशेवर या पुलिस ऑफिसर हैं, तो निःशुल्क रजिस्टर करें. क्लिक करें ;