क्या जीवन जीने के लिए कोई नियम पुस्तिका है?
दुबई में गल्फ न्यूज़ को दिये गये एक इंटरव्यू में सद्गुरु मनुष्य के अनुभवों पर बात कर रहे हैं और ये भी बता रहे हैं कि वो कैसे इनको अपने नियंत्रण में रख सकता है।
प्रश्न: इनर इंजीनियरिंग पर किताब की क्या ज़रूरत है? लोगों को लगातार बताते रहने की क्या ज़रूरत है कि उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिये?
सद्गुरु: क्या ये सच नहीं है कि अपने दाँतों को रोज ब्रश करने जैसा आसान काम भी आपको आपकी माँ या आपके पिता ने सिखाया था? अगर उन्होंने ये नहीं भी सिखाया होता तो भी कुछ लोग बाद में ये अपने आप जान जाते पर अधिकतर लोग ऐसा नहीं कर पाते। जब बात जीवन के ज्यादा गहरे आयामों की हो तो कुछ लोग शायद अपने आप उनका पता लगा लेंगे पर अधिकतर लोग ऐसा नहीं कर पायेंगे।
हमारे जीवन के सभी बाहरी पहलुओं को हम वैज्ञानिक ढंग से, सभी तरह की तकनीकें इस्तेमाल करते हुए संभालते हैं। तो ये महत्वपूर्ण है कि हम अपनी आंतरिक खुशहाली को भी वैज्ञानिक ढंग से, खुशहाली की तकनीकें इस्तेमाल करते हुए संभालें।
बहुत लंबे समय तक लोग ऐसा सोचते थे कि हमारी आंतरिक खुशहाली को हम विश्वास के ज़रिये, दार्शनिक बातों से, विचारधाराओं से, और या अंधविश्वासों के सहारे संभाल सकते हैं। पर अब समय आ गया है कि हम अपने आंतरिक रूप को भी, वैज्ञानिक ढंग से तकनीकें इस्तेमाल करते हुए संभालें।
इनर इंजीनियरिंग कई स्तरों पर उपलब्ध है, कार्यक्रमों में, ऑन लाईन, और अब एक किताब के रूप में भी।
प्रश्न: बदलाव के मुख्य साधन क्या हैं?
सद्गुरु: जब हम बदलाव के साधनों की बात करते हैं तो इनके लिये बहुत से तरीके हैं। सभी मानवीय अनुभव, चाहे वो शांति हो, चाहे शांतचित्तता, अशांति, दबाव, चिंता, दुख, आनंद, सुख, उल्लास, या पीड़ा हो - मानवीय अनुभव चाहे जो भी हों, उनका एक रासायनिक आधार होता है।
तो इनको संभालने का एक तरीका ये है कि आप बाहर से रसायनों को अंदर डालें। ये आजकल बहुत बड़े स्तर पर चल रहा है। कोई स्वस्थ होने के लिये रसायन लेता है, शांति के लिये अलग तरह के रसायन हैं, आनंद के लिये किसी और तरह के रसायन हैं।
पर हम भूल जाते हैं कि इस धरती पर सबसे ज्यादा जटिल रासायनिक कारखाना मनुष्य का शरीर ही है। अगर हम इसको सही ढंग से संभालते हैं और अगर आप अपने ही रासायनिक कारखाने के सीईओ बन जाते हैं तो आप इस कारखाने को आनंदमय रख सकते हैं।
जब आप अपने आप में आनंदमय होते हैं तो आपको पीड़ा का डर नहीं लगेगा। जब आपको पीड़ा का कोई डर नहीं होगा तभी आप अपने जीवन की पूरी गहराई, और उसके सभी आयामों की खोज कर सकेंगे, नहीं तो आप एक बहुत ही नपा-तुला जीवन जियेंगे।
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प्रश्न: आपकी किताब में यह बताया गया है कि बदलाव के सबसे प्रभावशाली साधनों में से एक है योग। तो, दुनिया में चारों ओर जो दर्जनों तरह की योग प्रक्रियायें सिखायी जाती हैं, उनसे ईशा योग किस तरह से अलग है?
सद्गुरु: दुनिया के पश्चिमी भागों में लोग योग को सिर्फ शारीरिक व्यायाम समझते हैं जो पूरी तरह से एक गलतफहमी है। योग शब्द का मतलब है मिलन यानि एकीकरण। इसका मतलब है कि एक तरह से आपने अपनी व्यक्तित्व की सीमाओं को मिटा दिया है। अभी तो सिर्फ साँस लेने और छोड़ने का काम होने से आप जीवित हैं। जैसे ही आप अपने और बाहरी दुनिया के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा बनाते हैं, तो आप यहाँ से गायब हो जाते हैं।
ये सिर्फ साँस लेने और छोड़ने के बारे में नहीं है। आपके शरीर का हर परमाणु लगातार सारे ब्रह्मांड के साथ बातचीत कर रहा है। इसी तरह से जीवन चल रहा है। जब आप इसका अनुभव करते हैं तो हम कहते हैं कि आप योग में हैं। अगर मनुष्य हर चीज़ का स्वयं में समावेश करने के लिये तैयार हो, तो उन्हें ये नहीं सिखाना पड़ेगा कि उन्हें उन सब की रक्षा करनी चाहिये।
जब आप एक केला खाते हैं तो आपके शरीर के साथ मिल कर ये 'आप' बन जाता है। ये सिर्फ शारीरिक स्तर पर ही नहीं होता, अनुभव के स्तर पर भी आप सारे ब्रह्मांड का स्वयं के रूप में अनुभव कर सकते हैं। तब, आप पूरी तरह से एक समावेशी अवस्था में होते हैं।
हम सब में यह बुद्धि है जो एक केले को या रोटी के एक टुकड़े को एक मनुष्य बना सकती है। इस बुद्धि की एक बूंद तक भी अगर आप पहुँच बना लेते हैं तो आपका जीवन जादू भरा हो जायेगा। चाहे ये स्वास्थ्य की बात हो या शांति की या आनंद की या परमानंद की, आप उसके स्रोत होंगे। अभी भी आप उसके स्रोत ही हैं पर ये जानने के लिये आप किसी बाहरी प्रेरणा या प्रोत्साहन की राह देख रहे हैं। अभी आपको बाहरी मदद की ज़रूरत पड़ती है। इस अनुभव को आप खुद ही पा सकें, हम आपको ऐसी अवस्था में ला सकते हैं।
प्रश्न: कोई व्यक्ति अपने चारों ओर इकट्ठा किए हुए धन-दौलत, यश, पद और दूसरी खुशियों के बिना अपना स्वयं का अनुभव कैसे पा सकता है?
सद्गुरु: हमारे पास जो कुछ है वो सिर्फ हमारे इस्तेमाल करने के लिये है, अपने सिर पर चढ़ा कर घूमने के लिये नहीं। अगर आप इनका इस्तेमाल करते हैं तो कोई समस्या नहीं है, पर अगर आप इनके साथ अपनी पहचान बना लेते हैं तो फिर समस्या हो जाती है, और फिर ये आपको चोट पहुँचाती है। अगर आपको सिर से पैर तक एक अच्छे गोंद से रंग दिया जाये तो आप जिस भी चीज़ को छुएंगे, वो आपसे चिपक जायेगी और दो दिनों में ही आप कचरे का एक पहाड़ बन जायेंगे। लोगों के साथ यही हुआ है। इस गोंद को धोने का, आपको साफ करने का एक तरीका इनर इंजीनियरिंग है। आपके पास जो चीजें हैं, उनका इस्तेमाल कीजिये पर उन्हें अपने सिर पर ले कर मत घूमिये।
प्रश्न: एक साधारण आदमी अपने सांसारिक जीवन और अपनी आध्यात्मिकता में संतुलन कैसे बनाये और फिर भी अपने पेशे में सफल कैसे हो? क्या इसके लिये कोई सूत्र है?
सद्गुरु: हम ऐसा क्यों सोचते हैं कि आध्यात्मिक होना और अपने पेशे में सफल होना एक दूसरे से विरोधी बाते हैं? ये इस गलतफहमी के कारण होता है कि आध्यात्मिकता एक तरह की अक्षमता है।
आध्यात्मिकता तो एक अद्भुत ताकत देने वाली चीज़ है। सफलता का क्षेत्र आप चुन सकते हैं। हो सकता है कि आप किसी दूसरे जैसे सफल न हों पर आप एक अलग तरीके से सफल हो सकते हैं। किसी चीज़ के उपयोग के बारे में आप जितना जानेंगे, उसे ज्यादा अच्छी तरह से इस्तेमाल कर सकेंगे। इसी तरह, आप अपने बारे में जितना ज्यादा जानेंगे, उतने ही ज्यादा आप प्रभावशाली हो सकेंगे। ये कोई अतिमानव होने की बात नहीं है, ये समझने का विषय है कि मनुष्य होना ही अपने आप में एक महान बात है।
प्रश्न: आप कहते हैं कि मनुष्य का शरीर एक जटिल रचना है और हम इसका इस्तेमाल यूज़र मैन्यूअल यानि 'उपयोग करने के लिये निर्देश' की किताब को देखे बिना करते हैं। तो ये 'उपयोग करने के लिये निर्देश' की किताब क्या है?
सद्गुरु: ये हमारे अंदर ही है। ऐसी लाखों बातें हैं, और अगर उनमें से आप केवल एक दर्जन बातें भी सही ढंग से सीख लें तो आपका जीवन नाटकीय ढंग से बदल जायेगा। ये एक भाषा सीखने जैसा है। जब आप इसे सीख लेंगे तो आप अपनी 'उपयोग करने के लिये निर्देश' की किताब पढ़ना भी सीख जायेंगे और अपने जीवन को एक अच्छी तरह से चला सकेंगे।
प्रश्न: मनुष्य को पर्यावरण के साथ रहना और उसका दुरुपयोग न करना कैसे सिखाया जाये, जिससे एक सह-अस्तित्व तैयार हो?
Sadhguru: सद्गुरु: हम हमेशा से दुनिया को शांतिपूर्ण बनाने का प्रयास कर रहे हैं पर एक ही समस्या है कि खुद मनुष्य शांतिपूर्ण नहीं है। अगर आप ख़ुद शांतिपूर्ण नहीं हैं तो एक शांतिपूर्ण दुनिया का सपना कैसे देख सकते हैं?
और उसकी संभावना ही कहाँ है जब लोग शांति का सही मतलब भी नहीं जानते? वे सोचते हैं कि दुनिया की शांति का मतलब कुछ नारे लगाना और फिर घर जा कर अच्छी तरह से सो जाना है।
एक भीड़ को शांतिपूर्ण बनाने का काम नहीं किया जा सकता। और व्यक्तिगत बदलाव लाने के लिये लगातार प्रयास जरूरी है। ये प्रतिबद्धता जीवन भर के लिये है, पर वैसी प्रतिबद्धता अब तक दिखी नहीं है।
जैसे हम बच्चे को अक्षर ज्ञान कराते हैं, अगर हम उसको अपने अंदर शांतिपूर्ण रहना भी छोटी उम्र से ही सिखायें तो ये संसार एक प्यारी जगह बन सकता है। ये एक बहुत बड़ा काम है, और अब तक हमने इस काम के लिए भौतिक या मानवीय संरचना में सही निवेश नहीं किया है।
प्रश्न: संयुक्त अरब गणराज्य( यूएई ) ने एक 'खुशी मंत्रालय' बनाया है और नागरिकों के लिये खुशी पर बहुत जोर दिया जा रहा है। क्या ये आप की खुशी की धारणा से मेल खाता है?
सद्गुरु: खुशी कोई विचार या धारणा नहीं है। ये एक मानवीय अनुभव है। ये एक अद्भुत बात है कि कोई राष्ट्र या राज्य अपने नागरिकों की खुशी के लिये ऐसी प्रतिबद्धता दिखाये। वे कितने सफल होंगे ये बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है, पर उन्होंने ऐसा करने का सोचा, ये बहुत अद्भुत बात है।
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