कैसे लगाएं अंदाजा अपने आध्यात्मिक विकास का
कैसे पता लगा सकते हैं हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति का? क्या हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम कितनी आध्यात्मिक प्रगति कर रहे हैं? आइये जानते हैं...
साधना करने वालों के मन में अक्सर ये विचार उठता है कि उन्होंने कितनी आध्यात्मिक प्रगति कर ली है। कैसे पता लगा सकते हैं हम अपने प्रगति के बारे में?
प्रश्न: सद्गुरु, हमें कैसे पता चलेगा कि हमने अब कितनी आध्यात्मिक प्रगति कर ली है? हम यह कैसे जान सकते हैं कि हम आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ रहे हैं या नहीं?
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आध्यात्मिक राह पर शुरु में हमें यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं, क्योंकि आपकी तार्किक बुद्धि और उसके नतीजे आपको काफी दिग्भ्रमित करते रहेंगे। शुरू में जब सुबह आप अपनी क्रिया करने बैठेंगे तो आपके पैर आपसे कहेंगे कि आप पीछे की ओर जा रहे हैं। इसी तरह से हो सकता है कि शायद आपका परिवार भी आपसे कहे कि इस मूर्खतापूर्ण काम को बंद कर दो।
बुद्ध भी अपना मूल्यांकन करते थे
यहां तक कि अपने भीतर चरम तक पहुंचा इंसान भी खुद का मूल्यांकन करने के लिए कुछ वक्त लेता है। हो सकता है कि वो यह मूल्यांकन सामान्य तरीके से न करे, लेकिन कई और तरीकों से करता है। गौतम बुद्ध के जीवन में ऐसी ही एक खास घटना घटी। एक दिन बहुत सारे लोग उनके पास आए और सभी ने झुककर उन्हें प्रणाम किया, लेकिन एक आदमी आया और उसने बुद्ध के चेहरे पर थूक दिया। यह देखकर गौतम बुद्ध का एक खास शिष्य आनंद, जो बुद्ध की बेहद भक्ति और आराधना करता था, बुरी तरह से नाराज हो उठा। उसने बुद्ध से कहा, ‘आप मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं इस आदमी को सबक सिखा सकूं। आपके चेहरे पर थूकने की उसकी हिम्मत कैसे हुई?’ गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य को ऐसा करने से मना कर दिया और उस आदमी को धन्यवाद दिया। बुद्ध ने उस आदमी से कहा, ‘मेरे चेहरे पर थूकने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, क्योंकि तुम्हारे इस व्यवहार ने मुझे यह देखने का मौका दिया कि क्या मैं अभी भी क्रोध कर सकता हूं या नहीं? लेकिन मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई कि मेरे भीतर अब क्रोध बचा ही नहीं है, भले ही कोई मेरे चेहरे पर थूक भी क्यों न दे। यह बहुत अच्छा हुआ। तुमने मुझे अपना आकलन करने में मदद की, साथ ही तुमने आनंद को भी अपना मूल्यांकन करने का मौका दिया। इसके लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। तुमने हम दोनों को यह महसूस कराने में मदद की कि हम फिलहाल वास्तव में कहां खड़े हैं।’
इसलिए खुद को थोड़ा समय दीजिए, और बिना किसी अनुभव की अपेक्षा किए एक खास समय तक पूरी ईमानदारी के साथ अपनी क्रिया कीजिए। इस दौरान किसी चमत्कार के घटित होने की उम्मीद मत कीजिए। जीवन में सबसे बड़ा चमत्कार तो जीवन खुद ही है।
आध्यात्मिक विकास की अवधि 12 साल होती थी
आमतौर पर भारतीय परंपरा में किसी भी आध्यात्मिक प्रक्रिया को शुरू करने के लिए जिस समर्पण व प्रतिबद्धता की उम्मीद की जाती थी, वह बारह साल की होती थी। आप बारह साल तक बिना किसी उम्मीद के किसी मंत्र का जाप करते हैं, फिर देखते हैं कि आपके साथ क्या हो रहा है। यहां तक कि आज भी भारत में कई पंथ या संप्रदाय इस मार्ग का अनुसरण करते हैं। इसमें एक गुरु अपने शिष्य को एक मंत्र देता है और शिष्य बारह सालों तक उसका अभ्यास करता है और उसके बाद वह अपनी प्रगति के मूल्यांकन के लिए वापस आता है। लेकिन आज लोगों में धैर्य बिल्कुल नहीं हैं। यहां तक कि अगर हम सिर्फ बारह दिनों की प्रतिबद्धता भी मांगें तो लोगों को उसमें भी कई समस्याएं हैं। इसमें भी लोगों की शिकायत होती है कि यह अवधि बहुत लंबी है।
इस चीज को समझाने के गौतम बुद्ध के अपने तरीके थे। अगर उनके पास कोई आता था तो दो साल तक तो वह उसे कोई शिक्षा नहीं देते थे, कुछ नहीं सिखाते या बताते थे और न ही कोई आध्यात्मिकता की बात करते थे। दो साल तक वे उस व्यक्ति को यूं ही मंडराने या भटकने देते थे। अगर आप दो साल तक इंतजार कर सकते थे तो आप में एक खास तरह का गुण आ जाता था और आपके साथ कुछ हो सकता था। और जब वह आपको दीक्षित करते थे तो तब आपके साथ एक बहुत बड़ी चीज घटित होती थी। लेकिन आज लोगों के लिए इंतजार करना अपने आप में एक तरह का संघर्ष हो चुका है, क्योंकि आधुनिक मन बेहद अधीर हो चुका है। फि र भी मैं यही कहूंगा कि किसी तरह की जल्दबाजी मत दिखाइए। सिर्फ अपने अभ्यास व साधना पर टिके रहें और फि र कुछ अंतराल पर अपना आकलन करें और देखें।