कृष्ण जन्माष्टमी : भाग एक
श्रावण के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है, इससे पहले की कृष्ण जन्म हो आइये जानते हैं उनके जन्म की पूर्व कथा। कृष्ण का पूरा जीवन जितना दिलचस्प घटनाओं और चमत्कारों से भरा है, उनके जन्म की कहानी भी उतनी ही अद्भुत है।
भाद्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है, इससे पहले की कृष्ण जन्म हो आइये जानते हैं उनके जन्म की पूर्व कथा। कृष्ण का पूरा जीवन जितना दिलचस्प घटनाओं और चमत्कारों से भरा है, उनके जन्म की कहानी भी उतनी ही अद्भुत है। लीजिए आप भी उनकी लीला का आनंद:
इससे पहले कि हम कृष्ण की लीला और उनके तौर तरीको को जानें, उनकी शिक्षाओं और गीता के बारे में जानकारी हासिल करें, हमें उनके जीवन की पृष्ठभूमि और उन ऐतिहासिक परिस्थितियों के बारे में जानना चाहिए, जिनमें उन्होंने अपनी जिंदगी गुजारी। जितने भी कम समय के लिए आप मेरे साथ रहे हों, मैंने लगातार आपको इस बात के लिए प्रेरित किया है कि आप हर बात पर संशय करें, हर चीज पर सवाल करें, लेकिन अब आपको इस बात को भूल जाना होगा। अगर आप संशय करते रहे तो आप भक्ति मार्ग और उसके जुनून को नहीं जान पाएंगे। आपको एक भावुक प्रेमी जैसा बनना पड़ेगा। एक ऐसी स्थिति अपने भीतर पैदा करनी होगी कि तार्किक शक्ति कम हो जाए और अंदर रहे तो बस एक पागल दिल। आपको एक बड़े उत्सव की तरह होना पड़ेगा।
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एक इंसान की तरह कृष्ण ने अपने जीवन में एक मकसद तय किया था। एक बहुत सक्रीय जीवन जी रहे इंसान की कमियों के साथ साथ उन्में ईश्वरीय तत्व भी मौजूद था। जाहिर है ये सभी बातें एक साथ देखने पर बेहद जटिल मालूम पड़ती हैं। उन्हें महज एक रूप में देखना ठीकनहीं होगा। अगर आप उनके जीवन के महज एक पहलू को ही देखने की कोशिश करेंगे तो कृष्णका एक विस्तृत रूप ही उभरकर सामने आएगा। वह इतने बहुआयामी हैं कि जब तक आप उनके हर पहलू को थोड़ा-थोड़ा नहीं छू लेते, तब तक उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय नहीं होगा।
उनके इर्द गिर्द बहुत सी चीजें हुईं। कुछ बहुत ही तर्कसंगत थीं, प्यारी थीं, आनंददायकथीं, तो कुछ बहुत निष्ठुर और ज़रूर थीं और कुछ बेहद चमत्कारिकभी। लेकिन एक चीज जो उनके आसपास नहीं दिखती, वह है नीरसता। पागलपन नजर आता है, प्रेम दिखता है, पराक्रम दिखता है, चालाकी दिखती है, आनंद दिखता है, चमत्कार दिखता है, लेकिन नीरसता नजर नहीं आती। ऐसे में नीरसता को यहां भी मत आने दीजिए।
कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ था। आप में से कई लोग मथुरा जा भी चुके होंगे। यादव समाज के सर्वेसर्वा उस वक़्त उग्रसेन हुआ करते थे। समाज में उनका बहुत महत्वपूर्ण स्थान था और उन्हें लोग राजा की तरह सम्मान देते थे। समाज के इस मुखिया को उस वक़्त राजा की बजाय राजान्यास कहा जाता था। उग्रसेन बूढ़े हो रहे थे। उधर उनका बेहद महत्वाकांक्षी बेटा कंस अपने पिता के मरने का इंतजार भी नहीं कर पा रहा था। जब आप राजा हों और आपका बेटा बेहद महत्वाकांक्षी हो तो या तो आपको जल्दी ही मर जाना चाहिए या फिर वनवास पर चले जाना चाहिए। अगर आप इनमें से एक भी काम नहीं करते हैं तो आपके बेटे की महत्वाकांक्षाएं कुंठा का रूप ले लेंगी।
बस कुछ ऐसा ही हुआ उग्रसेन के साथ। कंस उग्रसेन कीकार्यशैली से काफी कुंठित हो गया। उसे लगता कि उसके पिता के काम करने के तरीके पुराने हैं। वैसे ऐसा हमेशा होता है। नई पीढ़ी हमेशा यह सोचती है कि पुरानी पीढ़ी के लोगों की सोच बहुत पुरानी है। खैर, कंसकी महत्वाकांक्षाओं ने उसे इंतजार नहीं करने दिया और जल्द ही एकदिन ऐसा आया, जब उसने अपने पिता को जेल में डाल दिया और खुद राजा बन बैठा। वह पूरब के एक बेहद क्रूर राजा जरासंध के नञ्चशे कदम पर चलने लगा। दरअसल, पूरी दुनिया को जीतना और उस पर अपना शासन स्थापित करना जरासंध का स्वप्न था। बेहद बर्बर सेना के जरिए उसकी ताकत दिनोंदिन तेज गति से बढ़ती जा रही थी। कंस ने भी उन्हीं तौर तरीकों को अपना लिया, क्योंकि उस वक्त ताकतवर बनने का बस यही रास्ता था।
कंस की बहन देवकी की शादी वासुदेव से हुई, जो यादव समाज के ही एक मुखिया थे। दरअसल, यादवों के बीच उस वक्त कई उप समाज थे। कंस का संबंध वृषनिस उप समाज से था तो वासुदेव शूर से संबंधित थे। दरअसल, यह कहानी थोड़ी उलझी हुई है, जिसमें कहानी के भीतर कहानी है और हर कहानी कुछ कहती है। अगर आप पूरे मामले को ध्यान से नहीं समझेंगे तो कई चीजें ऐसी रह जाएंगी जो आपको समझ नहीं आएंगी। खैर, शूरों के सरदार वासुदेव की कंस की बहन देवकी से शादी हो गई। शादी के बाद कंस अपनी बहन को रथ में बिठाकर विदा करने जा रहा था। तभी आकाशवाणी हुई, 'हे कंस, अपनी जिस बहन को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है, उसका आठवां पुत्र तेरा काल होगा।‘ यह सुनकर कंस आग-बबूला हो उठा। उसने अपनी तलवार निकाली और देवकी का वध करने के लिए झपटा। वासुदेव ने तुरंत उसे रोका और प्रार्थना करने लगे, 'देवकी तुम्हारी बहन है। तुम उसकी जान कैसे ले सकते हो?कृपा करके उसकी जिंदगी बक्श दो।‘कंस बोला – ‘लेकिन देवकी का आठवां पुत्र मेरा अंत कर देगा और मैं नहीं चाहता किऐ सा कुछ भी हो।‘वासुदेव ने कंस के सामने एक प्रस्ताव रखा, 'मैं तुमसे वादा करता हूं कि हमारा जो भी बच्चा होगा, मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूंगा। तुम उसे मार देना। लेकिन अभी मेरी पत्नी की जान न लो।'
कंस ने देवकी को छोड़ तो दिया, लेकिन वह अपने जीवन और सुरक्षा को लेकर इस कदर चिंतित हो उठा कि उसने वासुदेव और देवकी को जेल में डाल दिया, ताकि उन पर कड़ी नजर रखी जा सके। वासुदेव और देवकी के यहां पहले बच्चे का जन्म हुआ। सुरक्षाकर्मियों ने कंस इसकी सूचना दे दी। कंस तुरंत वहां आया। कंस को देखकर वासुदेव और देवकी रोने लगे और कहा कि’ तुम्हारा दुश्मन तो हमारा आठवां बच्चा है। इसे तो छोड़ दो, लेकिन कंस ने कहा कि मैं कोई कसर बाकी नहीं छोडऩा चाहता। उसने बच्चे को उठाया और पैर पकडक़र उसे जमीन में दे मारा। यह क्रम जारी रहा। जब भी बच्चे का जन्म होता, वासुदेव और देवकीकंस से उसे न मारने की गुजारिश करते, लेकिन कंस ने एक को भी नहीं छोड़ा। इस तरह छह नवजात बच्चों को मार दिया गया।