नाग का विष : क्यों पिया था सद्गुरु ने?
योग साधना के लिए बनाए गए आदि योगी आलयम् हॉल की प्राण प्रतिष्ठा के समय सद्गुरु ने नाग या किंग कोबरा के विष और दूध का मिश्रण आदि योगी लिंग को अर्पित किया था। अर्पित करने से पहले सद्गुरु ने कुछ विष खुद भी पिया था। एक प्रतिभागी के प्रश्न के उत्तर में सद्गुरु हमें इसका कारण बता रहे हैं।
योग साधना के लिए बनाए गए आदि योगी आलयम् हॉल की प्राण प्रतिष्ठा के समय सद्गुरु ने नाग या किंग कोबरा के विष और दूध का मिश्रण आदि योगी लिंग को अर्पित किया था। अर्पित करने से पहले सद्गुरु ने कुछ विष खुद भी पिया था। एक प्रतिभागी के प्रश्न के उत्तर में सद्गुरु हमें इसका कारण बता रहे हैं।
प्रश्न : सद्गुरु, मैं जानना चाहती हूं कि आदि योगी आलयम की प्राण प्रतिष्ठा के समय आपने दूध के साथ नाग का विष क्यों पिया था?
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सद्गुरु: आपको समझना चाहिए कि यह विष था, जहर नहीं। विष तभी आप पर असर करता है, जब वह आपके रक्त में मिल जाए। यह जरुरी नहीं है कि केवल पेट में पहुंचने से यह नुकसान करे। अक्सर यह शरीर में किसी छोटे छिद्र, चीरे, अल्सर या किसी छोटे घाव के माध्यम से रक्त में प्रवेश कर सकता है। मेरे साथ बस ये हुआ कि मेरी पलकें थोड़ी बोझिल हो गईं, वैसे मैं ठीक था। मुझे जो कुछ उनको अर्पण करना था, मैं खुद ग्रहण किए बिना उन्हें भेंट कैसे कर सकता था? वैसे भी काफी समय पहले विष ने मुझे बहुत लाभ पहुंचाया था। उसने मेरा जीवन ले लिया था, मगर जीवन से कहीं ज्यादा कीमती चीज मुझे दे गया था (इस बात का संबंध सद्गुरु के साथ तीन जन्मों पहले घटी घटना से है, जिसका वर्णन ‘मैं फिर वापस आऊँगा : दास्तान तीन जन्मों की’ में आपने पढ़ा होगा)। तो विष ने उस समय मेरे खिलाफ नहीं, मेरे हित में काम किया और यह हरदम मेरे लिए हितकारी रहा है।
इसके कई पहलू हैं। छोटी खुराक में विष बहुत नशीला होता है। वैसे तो किसी भी चीज की अधिकता आपकी जान ले सकती है। यहां तक कि बहुत अधिक ऑक्सीजन से भी आपकी मौत हो सकती है। अधिक मात्रा में भोजन करने से भी आपकी मृत्यु हो सकती है।
ठोस पारे की विशेषताएं
ठोस किया गया पारा सिर्फ तीन पदार्थ अपने अंदर ले सकता है। आप इसे खुद देख सकते हैं ‐ वह सोना, चांदी और सिर्फ नाग का विष अपने अंदर ले सकता है। अगर आप उसे कोई और विष देंगे, तो वह नहीं लेगा।
सांप, खास तौर पर नाग बहुत अनोखा जीव है। शिव के सिर के ऊपर एक आभूषण की तरह उठा हुआ फन एक तरह का प्रतीक है। शिव को आम तौर पर त्रिनेत्र भी कहा जाता है। इसका मतलब है, जिसकी तीसरी आंख हो। इसका अर्थ मुख्य रूप से यह है कि वे बोध के चरम पर पहुंच चुके हैं। सांप को प्रतीक रूप में इसलिए इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि वे किसी सांप जितने बोधशील या अनुभव करने में सक्षम हैं।
सांप की ग्रहणशीलता
सांप इतना ग्रहणशील कैसे होता है? वेल्लिंगिरी पहाडिय़ों का कोई सांप आध्यात्मिक विज्ञान के बारे में आप सब से कहीं ज्यादा जानता है। आप धरती पर कोई भी आध्यात्मिक किताब पढ़ लें, उस ज्ञान से कहीं ज्यादा वह जानता है।
मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं। एक खास पहलू का मैंने जिक्र नहीं किया। कुछ योगियों ने अलग-अलग रूप में विष का प्रयोग किया है। जो लोग सर्प को काबू में करना नहीं जानते, जो किसी सांप या नाग को संभालना नहीं जानते, वे बिच्छू का विष इस्तेमाल करते हैं। वे बिच्छू का दंश अपने शरीर पर लेते हैं। वह आपके शरीर के एक हिस्से को एक तरह से निष्क्रिय कर देता है और दूसरे हिस्से में रोमांचकारी जीवंतता भर देता है। नाग का विष मेरे लिए एक खास तरह से लाभदायक भी है। अभी मैं एक लंबे समय तक इसी जगह स्थिर हो कर बैठा रह सकता हूं। क्योंकि मेरा एक हिस्सा हल्की नींद की स्थिति में है और दूसरा हिस्सा जीवंतता के एक खास स्तर पर।