सद्‌गुरुनवरात्रि स्त्री शक्ति के तीन आयामों - दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का उत्सव है। देवी दुर्गा हमें शक्ति प्रदान करतीं हैं, लक्ष्मी धन-दौलत प्रदान करतीं हैं, और देवी सरस्वती हमें ज्ञान प्रदान करतीं हैं।  कैसे पा सकते हैं हम इन देवियों की कृपा?


सद्‌गुरु : स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे पुराना रूप है। सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप, अरेबिया और अफ्रीका के बड़े हिस्सों में स्त्री शक्ति की पूजा होती थी। दुर्भाग्यवश, पश्चिम में कथित मूर्तिपूजा और एक से ज्यादा देवों की पूजा के सभी नामोनिशान मिटाने के लिए देवी मंदिरों को मिट्टी में मिला दिया गया।

आधुनिक शिक्षा का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह है कि हम अपनी तर्कशक्ति पर खरा न उतरने वाली हर चीज को नष्ट कर देना चाहते हैं।
दुनिया के बाकी हिस्सों में भी यही हाल हुआ। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है, जिसने स्त्री शक्ति की पूजा को जारी रखा है। इसी संस्कृति ने हमें अपनी जरूरतों के मुताबिक अपनी देवियां खुद गढ़ने की आजादी भी दी। प्राण प्रतिष्ठा के विज्ञान ने हर गांव को अपनी विशिष्ट स्थानीय जरूरतों के अनुसार अपना मंदिर बनाने में समर्थ बनाया। दक्षिण भारत के हर गांव में आपको आज भी अम्मन (अम्मा) या देवी के मंदिर मिलेंगे।

लुप्त होती स्त्री शक्ति का संकट

आजकल पुरुष शक्ति समाज में सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि हमने अपने जीवन में गुजर-बसर की प्रक्रिया को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। सौंदर्य या नृत्य-संगीत, प्रेम, दिव्यता या ध्यान की बजाय अर्थशास्त्र हमारे जीवन की प्रेरक शक्ति बन गया है।

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नवरात्रि मनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है – इसे उत्सव की भावना के साथ मनाया जाना चाहिए। जीवन का रहस्य यही है – गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह शामिल होना।
जब अर्थशास्त्र हावी हो जाता है और जीवन के गूढ़ तथा सूक्ष्म पहलुओं को अनदेखा कर दिया जाता है, तो पौरुष कुदरती तौर पर प्रभावी हो जाता है। ऐसी दुनिया में स्त्री शक्ति की अधीनता स्वाभाविक है। इससे भी बड़ा संकट यह है कि बहुत सी स्त्रियों को लगता है कि उन्हें पुरुषों की तरह बनना चाहिए क्योंकि वे पौरुष को शक्ति का प्रतीक मानती हैं। अगर स्त्री शक्ति नष्ट हो गई, तो जीवन की सभी सुंदर, सौम्य, सहज और पोषणकारी प्रवृत्तियां लुप्त हो जाएंगी। जीवन की अग्नि हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी। यह बहुत बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा।

आधुनिक शिक्षा का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा यह है कि हम अपनी तर्कशक्ति पर खरा न उतरने वाली हर चीज को नष्ट कर देना चाहते हैं। पुरुष-प्रधान हो जाने के कारण इस देश में भी देवी पूजा बड़े पैमाने पर गोपनीय तरीके से की जाती है। अधिकांश देवी मंदिरों में मुख्य पूजा बस कुछ ही पुजारियों द्वारा की जाती है। मगर इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता।

नवरात्रि का उत्सव

नवरात्रि का उत्सव ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-शक्ति यानी स्त्रैण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे धरती, सूर्य और चंद्रमा या तमस (जड़ता), रजस (सक्रियता, जोश) और सत्व (परे जाना, ज्ञान, शुद्धता) के प्रतीक हैं।

यह सिर्फ प्रतीकात्मक ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी सत्य है। इंसान के रूप में में हम धरती से निकलते हैं और सक्रिय होते हैं। कुछ समय बाद, हम फिर से जड़ता की स्थिति में चले जाते हैं।
जो लोग शक्ति या ताकत चाहते हैं, वे धरती मां या दुर्गा या काली जैसे स्त्रैण रूपों की आराधना करते हैं। धन-दौलत, जोश या भौतिक सौगातों की इच्छा रखने वाले लोग लक्ष्मी या सूर्य की आराधना करते हैं। ज्ञान, विलीन होने या नश्वर शरीर की सीमाओं से परे जाने की इच्छा रखने वाले लोग सरस्वती या चंद्रमा की पूजा करते हैं।

नवरात्रि के नौ दिनों को इन्हीं मूल गुणों के आधार पर बांटा गया है। पहले तीन दिन दुर्गा, अगले तीन दिन लक्ष्मी और आखिरी तीन दिन सरस्वती को समर्पित हैं। विजयदशमी का दसवां दिन जीवन के इन तीनों पहलुओं पर जीत को दर्शाता है।

यह सिर्फ प्रतीकात्मक ही नहीं है, बल्कि ऊर्जा के स्तर पर भी सत्य है। इंसान के रूप में में हम धरती से निकलते हैं और सक्रिय होते हैं। कुछ समय बाद, हम फिर से जड़ता की स्थिति में चले जाते हैं। सिर्फ व्यक्ति के रूप में हमारे साथ ऐसा नहीं होता, बल्कि तारामंडलों और पूरे ब्रह्मांड के साथ ऐसा हो रहा है। ब्रह्मांड जड़ता की स्थिति से निकल कर सक्रिय होता है और फिर जड़ता की अवस्था में चला जाता है। बस हमारे अंदर इस चक्र को तोड़ने की क्षमता है। इंसान के जीवन और खुशहाली के लिए देवी के पहले दो आयामों की जरूरत होती है। तीसरा परे जाने की इच्छा है। अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन तक नहीं पहुंच सकते।

नवरात्रि मनाने का सबसे अच्छा तरीका

नवरात्रि मनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है – इसे उत्सव की भावना के साथ मनाया जाना चाहिए। जीवन का रहस्य यही है – गंभीर न होते हुए भी पूरी तरह शामिल होना।

अगर आपको सरस्वती को अपने भीतर उतारना है, तो आपको प्रयास करना होगा। वरना आप उन तक नहीं पहुंच सकते।
पारंपरिक रूप से देवी पूजा करने वाली संस्कृतियां जानती थीं कि अस्तित्व में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे कभी समझा नहीं जा सकता। आप उसका आनंद उठा सकते हैं, उसकी सुंदरता का उत्सव मना सकते हैं, मगर कभी उसे समझ नहीं सकते। जीवन एक रहस्य है और हमेशा रहेगा। नवरात्रि का उत्सव इसी मूलभूत ज्ञान पर आधारित है।

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