कुछ सौ साल पहले, लार्ड जॉन विलमॉट ने बच्चों की परवरिश के बारे में एक महत्वपूर्ण बात
कही थी - ‘शादी से पहले मेरे पास बच्चों के पालन-पोषण के बारे में छह सिद्धांत थे। अब
मेरे छह बच्चे हैं और सिद्धांत एक भी नहीं है।’ तो अच्छी परवरिश के लिए आपको क्या
करना चाहिए? अपना समय याद कीजिए, जब आप एक बच्चे थे – किस तरह के माता-पिता
आपके लिए सबसे अच्छे होते? याद कीजिए कि बच्चा होने का अनुभव कैसा था, फिर आपके
सामने सब कुछ साफ हो जाएगा।

दुर्भाग्य से लोगों को यह समझाया और यकीन दिलाया गया है कि बच्चों को ‘ठीक करना’
बेहद जरुरी है, मानों वे ‘बेठीक’ पैदा हुए हों! यह सही नहीं है। अगर आप बच्चों को देखें और
उनके मां-बाप को देखें तो आप पाएंगे कि कम से दस साल तक बच्चे तो अपने मां-बाप से
कहीं ज्यादा खुश हैं। तो फिर जीवन के बारे में सलाह देने का हक किसे होना चाहिए- जो

जीवन को आनंद से जीना जानता हो उसे या फिर जो खुद इस बात से परेशान हो कि अपने
बच्चों को कैसे संभाले? आप जो भी करते हैं, बच्चे वही सीखते हैं। अगर आप एक ऐसा
उदाहरण पेश कर सकें जो अनुकरण करने योग्य हो, तो फिर परवरिश के लिए आपको कुछ
खास करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।

  1. अपना मूल्यांकन करें

बच्चा पैदा करने का निर्णय लेने से पहले, आपको अपने हर पहलू का मूल्यांकन करना चाहिए
– आप किस तरह बैठते हैं, खड़े होते हैं, बोलते हैं और हालात के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं।
खुद से पूछिए, अगर आप पांच साल के बच्चे होते, तो क्या आप इस इंसान को पसंद करते
और उसकी इज्जत करते? आप एक और चीज कर सकते हैं कि अपना बच्चा पैदा करने से
पहले, दूसरे बच्चों के साथ पर्याप्त समय बिताकर देखें कि वे आपको और आप उन्हें पसंद
करते हैं या नहीं। इस तरह आपको बहुत सारी अक्लमंदी की बातें पता चल जाएंगी और
फर्टिलिटी क्लीनिक बंद हो जाएंगे।

  1. सही माहौल बनाएं

       

अगर आपके पास अपना बच्चा है, तो आपको बस इतना करना है कि घर में प्यार, मदद और
जोश का माहौल बनाएं। असलियत यह है कि आपके पास सिखाने के लिए कुछ नहीं है। आप
बच्चे से कुछ साल पहले ही दुनिया में आए हैं। आप जीवन के बारे में बच्चे से ज्यादा बस
यही जानते हैं कि दुनिया में गुजर-बसर करने के कुछ गुर क्या हैं, जो आप उसे सिखा सकते
हैं।

मगर आप जीवन के अधिक गहन आयाम के बारे में नहीं जानते। ये गुर बच्चों को इतनी
जल्दी सिखाने की जरूरत नहीं है। वे बाद में अपने आप सीख लेंगे। जब आपके जीवन में
एक बच्चा आता है, तो यह आपके लिए सीखने का समय होता है, सिखाने का नहीं। हो
सकता है कि बच्चों को खतरनाक चीजों, अच्छी चीजों का फर्क न पता हो। मगर उम्मीद है
कि आपके अंदर अपने आस-पास के जीवन के बारे में थोड़ी समझदारी होती है, जो बच्चों में
नहीं होती। अगर वे खतरे की तरफ बढ़ रहे हैं, तो अपनी समझ का इस्तेमाल कीजिए। वरना,
बच्चे आपके मुकाबले जीवन को अधिक आनंदपूर्वक जीते हैं। आपको उनसे ये चीजें सीखने
की जरूरत है।

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नियम नहीं, बच्चे को निष्ठा और ईमानदारी सिखाएं

उन्हें ऐसे नियम-कानून न सिखाएं, जो कभी आपके लिए कारगर नहीं हुए, या जिन पर आप
खुद कभी अमल नहीं कर पाए। हर समाज में कुछ नियम होते हैं। अगर हर कोई उनका
पालन करे, तो दुनिया बहुत अलग तरह की जगह होगी। स्पष्ट है कि कोई उनका पालन नहीं
करता मगर फिर भी इन नियमों का अस्तित्व है क्योंकि लोग अपने बच्चों को वह सिखाते
हैं।
अगर आप अपने बच्चों को खुद से बेहतर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें निष्ठा और
ईमानदारी सिखाइए क्योंकि वे जहां भी जाएंगे, यह उनके काम आएगी। अगर आप अपने
बच्चों को ऐसी चीजें सिखाने की कोशिश करते हैं, जिन पर आप खुद अमल नहीं करते, तो
निश्चित रूप से कुछ समय बाद उनको यह बात पता चल जाएगी। आपके शब्दों और
व्यवहार में कोई फर्क नहीं होना चाहिए। अगर आप प्यार और जोश का माहौल बनाएंगे, तो
बच्चे अपने आप फूलेंगे-फलेंगे।

  1. खिलौने छोड़िए, बच्चे को पेड़ पर चढ़ाइए

आपको बच्चे के शरीर का पोषण और मन को ज्वलंत बनाना चाहिए। जरूरी है कि उनके
अंदर शारीरिक सक्रियता और मानसिक जोश हो। इसका सबसे सरल तरीका है, उन्हें प्रकृति
के बीच ले जाना, जहां एक कीड़े से लेकर फूल तक, सब कुछ रोमांचकारी होता है। मगर
आजकल ज्यादातर माता-पिता कुछ चीजें खरीदकर उसे बच्चों के कमरे में डाल कर उसे बंद
कर देते हैं। इसे परवरिश नहीं कहते।

दुनिया में बीस से तीस फीसदी बच्चों के लिए खिलौनों पर सालाना अरबों डॉलर खर्च होते हैं,
जबकि बाकी सत्तर फीसदी को अपनी जिंदगी में एक भी खिलौना नहीं मिल पाता। इन
खिलौनों को खरीदने वाले बच्चे मानसिक और भावनात्मक स्तर पर सबसे ज्यादा दुखी होते
हैं। बाकी बच्चे पोषण और दूसरी मूलभूत जरूरतों की कमी के कारण कष्ट में हो सकते हैं,
मगर संपन्न लोग भीतरी उथल-पुथल से गुजरते रहते हैं।
इनकी बजाय अगर आप अपने बच्चों को बाहर ले जाएं, उन्हें पेड़ पर चढ़ने को कहें, उनके
साथ पैदल चलें, तैराकी करें या ऐसी कोई चीज करें, तो बच्चा शारीरिक और मानसिक तौर
पर सेहतमंद होगा।

  1. खुद को 20 वर्षीय परियोजना के लिए तैयार करें

बच्चे के पैदा होने के बाद यह एक 20 वर्षीय प्रोजेक्ट होता है - अगर वे जीवन में अच्छा
करते हैं। अगर वे अच्छा नहीं करते, तो यह एक जीवन भर चलने वाला प्रोजेक्ट है। अगर
आप इसके लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको बच्चा पैदा करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
दुर्भाग्यवश, ज्यादातर दंपति सोचते हैं कि उनकी शादी को बचाने के लिए एक बच्चा जरूरी
है।
बच्चा कोई व्यक्तिगत प्रोजेक्ट नहीं है। हम अगली पीढ़ी को दुनिया में ला रहे हैं। किसी न
किसी रूप में अगली पीढ़ी को हमसे कम से कम एक कदम आगे तो होना ही चाहिए। अगर
हम ऐसा नहीं करना चाहते, तो हमें बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए। अगर अगली पीढ़ी भी हमारे
जैसी हो, उससे अधिक कुछ भी नहीं, तो क्या लाभ?
सबसे बड़ी बात, मानव जाति विलुप्त होने के कगार पर नहीं है। हर किसी को बच्चे पैदा
करने की जरूरत नहीं है। ऐसा लगता है मानो हम संख्या में कीड़े-मकोड़ों की बराबरी करने
की कोशिश कर रहे हैं। अब समय है कि कई पहलुओं में हम अपनी रफ्तार कम करें।

बच्चों को बस प्रेम देने वाले आनंदित लोगों की जरूरत है

जो लोग बच्चे पैदा करने का निर्णय लेते हैं, उनके पास बच्चों के लिए समय होना चाहिए
क्योंकि यह अगली पीढ़ी को खुद से बेहतर बनाने का मसला है। सबसे पहले तो आपको खुद
को ठीक करना चाहिए। आप ऐसे इंसान बनें, कि बच्चे आपका सम्मान करें और आपके साथ
रहना चाहें। फिर समय भी कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। अगर वे वाकई आपको आदर्श
मानते हैं, तो पांच मिनट का संपर्क भी पांच दिन के बराबर हो सकता है।
बच्चे की जिम्मेदारी निभाने के लिए जरुरत है सहभागिता की। अगर आपके अंदर जरूरी
सहभागिता की भावना नहीं है और आपने बच्चा पैदा करने की गलती कर दी है, तो कृपया
बच्चा किसी और इंसान को सौंप दें, जो उसे प्यार और देखरेख दे सके, जो खुशमिजाज हो, जो
अपना जीवन बच्चे के लिए समर्पित कर सके। आप बच्चे के पालन-पोषण के लिए आर्थिक
सहायता दे सकते हैं। बच्चा इस बात की परवाह नहीं करता कि वे उसके असली माता-पिता
हैं या नहीं। जो प्यार करने वाला होगा, खुश रहने और खुश रखने वाला होगा, बच्चे उसी के
साथ रहना चाहेंगे।

  1. सकारात्मक और अनोखी दुनिया को बच्चे के सामने लाएं

       

आजकल तीन साल के बच्चे भी टेलीविजन या स्मार्टफोन से चिपके रहते हैं। आपको पता भी
नहीं होता कि इन पर दिखाई जा रही चीजों को वह किस तरह से ले रहा है और समझ रहा

है क्योंकि वहां जो कुछ दिखाया जाता है, उसे आप भी नहीं समझ पाते। कभी कोई खूबसूरत
दुनिया बनाने की बात कर रहा होता है, तो कोई उसे बम से उड़ाने की।
अगले पल कुछ और हो रहा होता है। हर अभिभावक को यह सोचना चाहिए कि वे अपने
बच्चों को क्या दिखाना चाहते हैं। वे जो कुछ देखेंगे, वही जीवन भर उनके साथ रहेगा, नैतिक
शिक्षा उनके काम नहीं आएगी। आप जीवन की सभी सकारात्मक, अनोखी चीजों से उनका
सामना करवाएं। सकारात्मक चीजों का मतलब सही और गलत से नहीं है, बस जीवन को उस
रूप में देखें, जैसा वह है।

बच्चे का प्रकृति से सम्पर्क अत्यंत महत्वपूर्ण है

हो सकता है कि यह आपको कुछ ज्यादा लगे, मगर मेरे ख्याल से अगर लोग बच्चे चाहते हैं
तो उन्हें साल में कम से कम दो महीने बच्चों के साथ किसी प्राकृतिक जगह पर रहने के
लिए तैयार रहना चाहिए। बजाय इसके कि वे शहर के दड़बों या अपार्टमेंट्स के छोटे-छोटे
घोंसलों में रहें। चाहे आपको कहीं टेंट में रहना पड़े, अगर आप अपने बच्चों को शारीरिक और
मानसिक तौर पर सेहतमंद और संतुलित बनाना चाहते हैं, तो उन्हें प्रकृति के बीच रहना
चाहिए। उनका शारीरिक और मानसिक विकास सबसे महत्वपूर्ण है।

  1. बच्चे को भावनात्मक सुरक्षा दें

       

आजकल बहुत ज्यादा लोग पागलपन की ओर बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए यूरोपीय देशों में,
जहां पिछले दो शताब्दियों में खूब आर्थिक खुशहाली रही है, वहां अड़तीस फीसदी आबादी
मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रही है। इसकी वजह यह है कि वे जिस माहौल में बड़े हुए,
उसमें उन्हें अच्छी देखभाल नहीं मिल पाई। उनके अंदर अपने माता-पिता को लेकर भी

भावनात्मक असुरक्षा थी। उन्हें हर वक्त इस बात की आशंका थी कि जाने कब उनकी मां या
पिता उन्हें छोड़कर चले जाएं।

अब वे वयस्क हैं, तो अपने जीवनसाथी को लेकर उनके अंदर भावनात्मक रूप से गंभीर
असुरक्षा की भावना है। आपका साथी पुरुष या स्त्री आपको कभी भी छोड़कर जा सकता है।
भावनात्मक सुरक्षा के बिना इंसान मनोवैज्ञानिक तौर पर असंतुलित हो जाते हैं। अगर आप
लोगों की एक पीढ़ी को उपयोगी बनाना चाहते हैं, तो उन्हें या तो चेतन होना होगा या उनके
अंदर भावनात्मक सुरक्षा होनी चाहिए वरना वे पागल हो जाएंगे। हमने इन सभी चीजों को
नष्ट कर दिया है और फिर हम हैरान होते हैं कि हमारी जिंदगी खुशहाल क्यों नहीं है, हमारे
बच्चे पागलपन क्यों कर रहे हैं, हमारे बच्चे किसी को मार क्यों रहे हैं या आत्महत्या क्यों
कर रहे हैं। इसकी वजह बचपन से भावनात्मक सुरक्षा का अभाव है।

भावनाएं आपके व्यक्तित्व का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं

ज्यादातर लोगों में, भावनाएं उनके व्यक्तित्व का कम से कम अस्सी फीसदी हिस्सा होती हैं।
भावनाएं इतनी शक्तिशाली होती हैं। अगर आप उनका लाभ नहीं उठाते, अगर आप अपने
जीवन में उन्हें एक सकारात्मक ताकत नहीं बनाते, तो वे आपका दम घोंट सकती हैं, आपको
तबाह कर सकती हैं। आजकल भावुक होने का मतलब नकारात्मक रूप में लिया जाता है।

जब हम कहते हैं कि फलां व्यक्ति बहुत भावुक हो गया, तो इससे हमारा मतलब होता है कि
वह थोड़ा पागल हो गया। हमें दुनिया में इस नजरिये को बदलना है। हम क्यों नहीं समझते
कि खुशी, आनंद, प्रेम, भक्ति और परमानंद भी भावनाएं ही हैं?
भावनात्मक सुरक्षा बहुत ही जरूरी है क्योंकि अब भी ज्यादातर इंसानों का सबसे बड़ा आयाम
भावनाएं होती हैं। अगर कोई इंसान वास्तव में चेतन हो जाता है, तो भावनाएं मायने नहीं
रखतीं। मगर तब तक, भावनाओं का बहुत महत्व होता है। इसलिए, अगर हम अपने बच्चों का
पालन-पोषण अच्छी तरह करना चाहते हैं, तो उनके आस-पास हर समय प्यार का माहौल
होना चाहिए, न सिर्फ घर में, बल्कि स्कूल में भी और सड़कों पर भी।

संपादकीय टिप्पणी : बचपन, परवरिश और शिक्षा पर सदगुरु की बुद्धिमानी से भरपूर बातें
आपको उनकी किताब 'इंस्पायर योर चाइल्ड इंस्पायर द वर्ल्ड' में मिलेंगीं।

यह लेख एक और रूप में 'फॉरेस्ट फ्लॉवर' में प्रकाशित हुआ था। अपने लिये, इसकी चाहे
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