पेड़ और पशु की कमी से रेगिस्तान बन रही है हमारी ज़मीन
भारत तकनीक और उद्यम के कुछ क्षेत्रों में बड़ी छलांग भर रहा है, मगर घटते जल संसाधन और मिट्टी के रूप में एक बड़ी आपदा हमारे ऊपर मंडरा रही है। आखिर क्या है उपाय?
आज देश ने बहुत सी वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की हैं और बड़े-बड़े उद्यम स्थापित हुए हैं। लेकिन इन उपलब्धियों में से एक यह भी है कि हमारे किसान बिना किसी तकनीक या इन्फ्रास्ट्रक्चर के अब भी सवा अरब से भी अधिक लोगों का पेट भरने में सक्षम हैं।
बदकिस्मती से जो किसान हमारे लिए भोजन पैदा करता है, उसके अपने बच्चे भी हैं जो भूख से मर रहे हैं और वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है। इसे देखकर मेरा सिर शर्म से झुक जाता है। इसकी कई वजहें हैं मगर सबसे बड़ी समस्याओं में एक है, जल संसाधनों और मिट्टी का नुकसान। हम देश की पूरी आबादी का भरण-पोषण इसलिए कर पा रहे थे क्योंकि हमारी मिट्टी बहुत उपजाऊ थी। हम साल के बारह महीने जो चाहते थे, वह उगा सकते थे। मगर अब यह मिट्टी तेजी से खत्म होती जा रही है।
देश रेगिस्तान बन रहा है
आप कोई भी फसल उगाते हैं, मान लीजिए दस टन गन्ना, तो मुख्य रूप से आपने दस टन मिट्टी खत्म कर दी है।
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दूसरा पहलू यह है कि हमारी नदियां इस हद से घट रही हैं कि लाखों सालों से जल का बारहमासी स्रोत रही नदियां एक ही पीढ़ी में मौसमी बन रही हैं। कावेरी पहले ही साल के लगभग तीन महीने समुद्र तक नहीं पहुंचती और इस घटती हुई नदी को लेकर दो राज्य आपस में लड़ रहे हैं। कृष्णा लगभग चार से पांच महीने समुद्र तक नहीं पहुंचती। ऐसा देश में हर जगह हो रहा है। हम बाकी सभी अनिश्चतताओं को झेल सकते हैं, लेकिन अगर हमारे पास पानी और अपनी आबादी के लिए भोजन उगाने की क्षमता नहीं बची तो एक भारी विपत्ति हमारे सामने होगी।
पेड़ और पशुओं के गोबर से समाधान संभव होगा
इसका सबसे आसान हल यह है कि हर नदी के दोनों किनारों पर कम से कम एक किलोमीटर तक हम पेड़ लगाएं।
नदी अभियान के समापन पर नीति की सिफारिश पेश करेंगे
इसे संभव बनाने के लिए हम सरकार के लिए एक नीति सिफारिश तैयार कर रहे हैं। साथ ही हम 3 सितंबर से 2 अक्टूबर तक नदी अभियान आयोजित कर रहे हैं जिसमें मैं खुद कन्याकुमारी से हिमालय तक गाड़ी चलाऊंगा ताकि देश में यह जागरूकता फैलाई जा सके कि हमारी नदियां मर रही हैं। मैं गाड़ी चलाते हुए 16 राज्यों से गुजरूंगा, जहां बड़े समारोह आयोजित किए जाएंगे। कई मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों ने इसमें शामिल होने की सहमति दी है। दिल्ली में हम सरकार को नीति की सिफारिश पेश करेंगे।
मैं आप सभी से विनती करता हूं कि आप किसी भी रूप में इसमें भागीदारी करें। आप सभी से मेरा मतलब है, जो भी इंसान पानी पीता है। हमारी नदियां बहती रहें, यह धरती उपजाऊ और खुशहाल बनी रहे, यही भावी पीढ़ियों को हमारा सबसे अच्छा उपहार होगा।