क्या सकारात्मक सोच-विचार से भी डिप्रेशन हो सकता है?
सकारात्मक सोच का कॉन्सेप्ट आजकल बहुत लोकप्रिय है, पर क्या अपना जीवन चलाने का ये सही तरीका है? यहाँ सद्गुरु समझा रहे हैं कि, होता ऐसे है कि आप चाहे नकारात्मकता को अनदेखा कर दें, पर वो आपको अनदेखा नहीं कर सकती!
सकारात्मक सोच क्या है?
सद्गुरु: संसार में, बहुत सारे लोग 'सकारात्मक सोच' के बारे में हमेशा बात करते हैं। आप जब सकारात्मक सोच के बारे में बात कर रहे हैं तो एक तरह से आप वास्तविकता से बचने की कोशिश कर रहे हैं। आप जीवन के सिर्फ एक पहलू को देखना चाहते हैं और दूसरे पहलू को पूरी तरह से छोड़ रहे हैं। आप उस दूसरे पहलू को अनदेखा कर सकते हैं पर वो आपको अनदेखा नहीं करेगा। आप अगर संसार की नकारात्मक चीज़ों के बारे में नहीं सोचते तो आप बस मूर्खों के स्वर्ग में रह रहे हैं, और जीवन आपको इसकी सज़ा देगा। अभी, मान लीजिये कि आकाश में काले बादल छा जाएँ। आप उन्हें अनदेखा कर सकते हैं पर वे आपको अनदेखा नहीं करेंगे। जब बरसात होनी है तो होगी ही। जब आप भीगेंगे तब भीगेंगे ही।आप इसे अनदेखा कर सकते हैं और सोच सकते हैं कि सब कुछ सही हो जाएगा - इसकी कुछ मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सार्थकता हो सकती है पर अस्तित्व में इसकी कोई सार्थकता नहीं है। ये सिर्फ एक आश्वासन होगा। वास्तविकता को छोड़ कर अवास्तविकता की ओर जा कर आप अपने आपको कुछ आश्वासन दे सकते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आपको यकीन है कि आप वास्तविकता को नहीं संभाल सकते। इसीलिये आप सकारात्मक सोच की तरफ झुक जाते हैं। आप नकारात्मकता को छोड़ना चाहते हैं और बस सकारात्मक सोचना चाहते हैं, या, दूसरे शब्दों में, आप नकारात्मकता को टालने की कोशिश करते हैं।
आप जिस किसी भी चीज़ को टालने की कोशिश करते हैं वो आपकी चेतना का आधार बन जाती है। आप जिस किसी भी चीज़ को टालने की कोशिश करेंगे वो और मजबूत हो जाएगी। जो भी जीवन के एक पहलू को खत्म कर के दूसरे पहलू के साथ रहने की कोशिश करते हैं, वो अपने लिये सिर्फ दुख ही लाते हैं।
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दोहरा स्वभाव
सारा अस्तित्व दो ध्रुवों के बीच घटित हो रहा है। आप जिसे सकारात्मक और नकारात्मक कहते हैं, वो है - पुरुषत्व और स्त्रीत्व, प्रकाश और अंधकार, दिन और रात। इनके बिना जीवन कैसे घटित होगा? ये कहना वैसे ही है जैसे आपको मृत्यु नहीं चाहिये - आप सिर्फ जीवन चाहते हैं - ऐसा कुछ नहीं है। जीवन इसीलिये है क्योंकि मृत्यु है। प्रकाश इसीलिये है क्योंकि अंधकार है। बात बस ये है कि आपको नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिये। हम दोनों को रहने दें और ये सुनिश्चित करें कि ये दोनों ही किसी भी तरह हमारे लिये उपयोगी हों, हमें कुछ दे सकें।
अगर आप जीवन को वैसे ही देखते हैं जैसा वो है, तो ये हमेशा ही एक समान मात्रा में सकारात्मक और नकारात्मक है। ये जैसा है वैसा ही अगर आप इसे देखें, तो आप पर न तो नकारात्मकता और न ही सकारात्मकता हावी हो पायेगी। चूंकि वे दोनों समान मात्रा में हैं इसीलिये सब कुछ वैसे ही हो रहा है, जैसे वो हो रहा है। इन दोनों का ही अच्छा प्रयोग कर के आपको वो बनाना चाहिये जो आप बना सकते हैं। प्रकाश का बल्ब इसीलिये जलता है क्योंकि बिजली में दोनों ही हैं - सकारात्मक और नकारात्मक! चूंकि हमें सकारात्मक परिणाम मिल रहा है तो हम नकारात्मक के बारे में चिंता नहीं करते। अगर कहीं पर कोई पुरुष और स्त्री हैं और उनमें से आनंद प्रकट हो रहा है तो हम चिंता नहीं करते कि वहाँ स्त्री है या पुरुष। पर, मान लीजिये कि वे दोनों कोई बहुत नकारात्मक परिणाम दे रहे हों तो हमें लगेगा कि ये दोनों समस्या हैं। सकारात्मक या नकारात्मक होना वास्तव में समस्या नहीं है, उनमें से अंतिम परिणाम क्या आता है बस यही सवाल है।
आपको सकारात्मक या नकारात्मक का प्रतिरोध नहीं करना है। आपको उन दोनों में से बस एक सकारात्मक परिणाम लाना है। और ये आपकी योग्यता का सवाल है। अगर हमें इस जीवन के बारे में चिंता है तो ये बहुत महत्वपूर्ण होगा कि हम जहाँ भी हैं, उसके बारे में सत्यवादी रहें। तभी हम कोई यात्रा कर सकते हैं। सकारात्मक सोच ने लोगों के लिये बहुत सी संभावनाओं को खत्म कर दिया है। एक सकारात्मक विचारक ने एक कविता लिखी है..
एक छोटी चिड़िया,
आकाश में उड़ रही थी।
उसने मेरी आँख में,
बीट कर दी।।
पर मैं न तो चिंता कर सकता हूँ,
न रो सकता हूँ।
क्योंकि मैं एक
सकारात्मक विचारक हूँ।
ईश्वर को धन्यवाद है और मेरी
आशा है कि भैंसे उड़ न सकें।।
जीवन जैसा है, अगर आप उसे वैसे ही देखने को तैयार नहीं हैं तो उसके बारे में कोई कदम उठाने का कोई तरीका नहीं है। आप सिर्फ अपने मन में कुछ मजेदार चीज़ें कर सकते हैं, जो कुछ देर तक आपका मनोरंजन करेंगी पर आपको कहीं ले नहीं जा पायेंगी।
प्रश्न : पर सद्गुरु, हर जगह सकारात्मक सोच के बारे में कहा जाता है, सिखाया जाता है और ये भी कि कैसे इससे आपका जीवन बदल सकता है? क्या सकारात्मक सोच आपको आपके कर्मों से मुक्ति दिला सकती है, या कम से कम क्या ये आपको नये कर्म बंधन बनाने से बचा सकती है?
सद्गुरु: इन लोगों ने अपने जीवन की गहराई खो दी है। इसका कारण यही है कि वे अपना ध्यान सिर्फ उस पर केंद्रित रखते हैं जो उनके लिये सुविधाजनक है और जिसे वे सकारात्मक कहते हैं। इससे वे बेकार हो गये हैं। उन्हें हर चीज़ बहुत जल्दी चाहिये, जल्दी, जल्दी! किसी भी चीज़ के लिये कोई समर्पित भाव उनमें नहीं है। मान लीजिये, अगर कोई वैज्ञानिक होना चाहता है तो उसे कई सालों तक पढ़ना पड़ेगा। हो सकता है कि वो अपनी पत्नी और बच्चों तक को भूल जाये। वो सबकुछ भूल जाता है और अपने आपको पूरी तरह समर्पित कर देता है। तभी, भौतिकता में भी, उसके लिये कोई बात खुलती है।
ऐसा स्थिर फोकस आज के आधुनिक संसार में, ज्यादातर, देखने को नहीं मिलता क्योंकि आजकल जो बात बहुत सिखायी जाती है, वो है, "चिंता मत करो। खुश रहो। हर चीज़ बढ़िया है। बस मजे करो"! इस तरह की खुशी जरूर ही खत्म हो जायेगी और लोगों को मानसिक बीमारियाँ हो जायेंगी। पश्चिम में, मैं जो एक खास तौर से लोकप्रिय बात सुनता हूँ, और जो अब भारत में भी तेजी से बढ़ रही है, वो है, "खुश रहो, इसी पल में जियो"। क्या आप मुझे कहीं और जी कर बता सकते हैं? कृपया ऐसा कर के दिखाईये तो ज़रा! कुछ भी हो, आप इसी पल में हैं। आप और कहाँ हो सकते हैं? सभी लोग ये बात करते हैं क्योंकि इस विषय पर ऐसे लोगों के द्वारा बहुत सारी किताबें लिखी गयी हैं और बहुत सारे कार्यक्रम किये गये हैं जिन्हें इस बारे में न कोई अनुभव है न समझ।
कर्मों का स्प्रिंग
अगर आप उन लोगों को देखें जो हमेशा 'खुश रहिये' कहते रहते हैं, तो उनकी जीवन शैली के आधार पर, वे कुछ ही सालों में हताश, डिप्रेस्ड हो जाते हैं। निश्चित रूप से ये आपको बहुत गहराई तक चोट पहुँचायेगा क्योंकि आपकी उर्जायें आपके कर्म बंधनों की संरचना के अनुसार अलग अलग संभावनाओं के लिये बँटी हुई रहती हैं। आपके दर्द, दुख, आनंद, प्यार वगैरह सब के लिये कुछ न कुछ है। इसे ‘प्रारब्ध कर्म’ कहते हैं। ये सिर्फ आपके मन में ही नहीं है। कर्म डेटा की तरह है। आपकी ऊर्जा इस डेटा के अनुसार काम कर रही है। प्रारब्ध एक कुंडली बनी हुई स्प्रिंग की तरह है। इसको अपनी अभिव्यक्ति पानी ही है। अगर ये चीजें अभिव्यक्त नहीं होतीं, अगर आप इन्हें दबाते हैं तो वे बिल्कुल अलग रूप में जड़ पकड़ लेंगी।
ये बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप किसी चीज़ को वैसे ही देखें जैसी वो है। आप किसी चीज़ से इंकार न करें। अगर दुख आता है तो दुख। उदासी आती है तो उदासी। आनंद आता है तो आनंद। उल्लास होता है तो उल्लास। जब आप ये करते हैं, तो आप किसी चीज़ से इंकार नहीं कर रहे या किसी चीज़ को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे। ऐसे में हर चीज़ हो रही है, पर आप उससे मुक्त हैं।
सकारात्मक सोच के खतरे
मन का स्वभाव ऐसा ही है कि अगर आप कहते हैं, "मैं ये नहीं चाहता", तो आपके मन में सिर्फ वही बात होगी। जब आप कहते हैं, "मैं कोई नकारात्मक चीज़ नहीं चाहता", तो सिर्फ वही बात होगी। आप सकारात्मक या नकारात्मक के बारे में बोल ही क्यों रहे हैं? आप चीजों को इस तरह से क्यों देखना चाहते हैं? आप हर परिस्थिति को वैसे क्यों नहीं देखते जैसी वो है? उसे वैसे ही क्यों नहीं स्वीकारते जैसी वो है? और, उस परिस्थिति में जो सबसे अच्छा है, वो क्यों नहीं करते? कोई परिस्थिति सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती। किसी तरह के रवैये या किसी खास दार्शनिकता को बढ़ाने की कोशिश न करें। आप यहाँ बिना किसी खास रवैये के, बिना किसी खास दार्शनिकता के, सिर्फ जागरूक हो कर क्यों नहीं रह सकते? केवल जागरूक हो कर।
हर परिस्थिति को एक अलग प्रकार से संभालने की ज़रूरत होती है। अगर आप बस सकारात्मक सोच का रवैया अपनाते हैं तो ये एक प्रकार की परिस्थिति में अच्छा काम कर सकता है पर किसी दूसरी तरह की परिस्थिति में आप कुछ बेवकूफी ही करेंगे क्योंकि आपके विचार किसी पूर्वग्रह के असर में हैं कि आपको बस एक खास तरह से होना चाहिये। आप अगर गलत जगहों पर सकारात्मक सोच अपनाते रहेंगे तो आपके साथ और भी खराब हो सकता है। सकारात्मक होने की कोई ज़रूरत नहीं है और नकारात्मक होने की भी कोई ज़रूरत नहीं है। बस जागरूक रहें। अगर आप जागरूक हैं तो आप किसी परिस्थिति को वैसे ही समझेंगे, जैसी वो है। जब आप किसी परिस्थिति को वैसे ही समझेंगे जैसी वो है तो आप अपनी बुद्धि और योग्यता के सबसे अच्छे स्तर पर काम करेंगे। ये ऐसी ही सीधी, सरल बात है।