आध्यात्म जगत में अवधूत नाम कई बार सुनने को मिलता है। क्या भीतरी स्थिति होती है अवधूत की? क्या वे समाज में रह सकते हैं?

सद्‌गुरुयोग का लक्ष्य आपके अंदर उन आयामों को स्थापित करना है, जो आपके वर्तमान अस्तित्व से बिलकुल अलग हैं। आपका वर्तमान अस्तित्व सिर्फ वही चीज़ें हैं, जिन चीज़ों से आपकी पहचान है। मगर आपकी सीमित पहचानों से परे आपके भीतर एक स्थान बनाना योग है। शुरू में, वह एक छोटे से कण से शुरू होता है। अगर आप उसके लिए स्थान बनाना शुरू करें, अगर आप अपने फालतू विचारों को हटाना शुरू कर दें, तो यह स्थान अपने आप बड़ा होने लगता है।

मेरे लिए लोगों को ऐसी अवस्था में लाना बहुत सरल और आसान होगा। यह बहुत आनंदपूर्ण और अद्भुत स्थिति होती है, मगर आप उनकी देखभाल के लिए लोग कहां से लाएंगे?
एक दिन ऐसा आता है, जब वह हर चीज पर छा जाता है और आपकी बेकार की चीजें इधर-उधर बिखर जाती हैं। अगर आप चाहें, तो आप उसे उठाकर इस्तेमाल कर सकते हैं, वरना आप उससे अछूते रहते हैं। जब आप इस अवस्था में आ जाते हैं, तो हम कहते हैं कि आप वाकई ध्यान की अवस्था में चले गए हैं, आप समाधि में हैं। आप संतुलन की स्थिति में पहुंच जाते हैं, जहां कोई चीज आपको छू नहीं पाती।

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कौन होते हैं ये अवधूत?

सबसे मजेदार बात यह है कि आप इन फालतू विचारों के हथियारों के बिना इस दुनिया में रह भी नहीं सकते। आप इस दुनिया का खेल नहीं खेल सकते। आप किसी अवधूत जैसे बन जाएंगे। इन दिनों, हर कोई यह नाम अपना रहा है, ‘मैं अवधूत हूं, आप अवधूत हैं।’ वो एक अलग बात है। अवधूत ऐसा इंसान होता है, जो शिशु जैसी अवस्था में पहुंच जाता है, उसे कुछ भी पता नहीं होता। आपको उन्हें खिलाना पड़ता है, बिठाना पड़ता है, खड़ा करना पड़ता है। वे अपने आप में इतने आनंदित होते हैं, कि उन्हें अपने जीवन के किसी दूसरे पहलू को संभालना नहीं आता।

ऐसा इंसान अपने मन को पूरी तरह छोड़ देता है, वह फालतू विचारों से पूरी तरह मुक्त होता है। आपको एक शिशु की तरह उसकी देखभाल करनी पड़ती है, वरना वह दुनिया में नहीं रह सकता। हो सकता है कि ऐसी अवस्था हमेशा के लिए न हों, मगर कुछ खास अवधि तक ऐसी अवस्था रह सकती है। कुछ लोग सालों तक किसी अवधूत की तरह रहते हैं। यह बहुत आनंदपूर्ण और अद्भुत अवस्था होती है, मगर आपको किसी की जरूरत पड़ती है जो आपकी देखभाल कर सके, वरना आप उस तरह दुनिया में नहीं रह सकते।

मेरे लिए लोगों को ऐसी अवस्था में लाना बहुत सरल और आसान होगा। यह बहुत आनंदपूर्ण और अद्भुत स्थिति होती है, मगर आप उनकी देखभाल के लिए लोग कहां से लाएंगे? आज दुनिया में जैसे सामाजिक हालात हैं, इसे एक सकारात्मक विकास की तरह नहीं देखा जाएगा। लोगों को लगेगा कि ऐसा इंसान अपना दिमागी संतुलन खो बैठा है और उसे पागलखाने जाने के जरुरत है। वह तो बहुत आनंदित होगा मगर यह बात लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखती।

एक समय भारत में ऐसी अवस्था को बहुत अच्छा माना जाता था, अवधूतों की पूजा की जाती थी। दक्षिण भारत में बहुत असाधारण अवधूत हुए हैं, जिनके हम संपर्क में आए। वे बहुत अनोखे जीव थे, मगर बिना सहायता के उनका जीवन असंभव है।

कर्मों से मुक्त हो सकते हैं ऐसी स्थिति में

थोड़े समय के लिए ऐसी अवस्था में जाना लोगों के लिए अच्छा है क्योंकि यह आपके कर्म के ढांचे में सबसे निचली मंजिल को साफ करने जैसा है। यह ऐसा है, मानो आपके कर्म के ढांचे में 110 मंजिलें हों और इस अवस्था में, आप सबसे निचले तल की सफाई कर रहे हैं।

योगी कुछ अवधि तक ऐसी अवस्था में रहते हैं क्योंकि यह मुक्त होने का सबसे तेज तरीका है। मगर साथ ही अवधूत इस अवस्था में अपना शरीर नहीं छोड़ सकते।
ऐसा आप दूसरी किसी अवस्था में नहीं कर सकते क्योंकि उतनी गहराई में जाकर अपनी सफाई करने के लिए एक इंसान में काफी जागरूकता होनी चाहिए। मगर इस तरह की अवस्था में, इंसान बहुत आसानी से सबसे निचले ताल पर मौजूद कर्मों को साफ़ कर सकता है। वह कुछ नहीं करता, वह कुछ नहीं जानता, मगर उसके पास कोई कर्म, कोई बंधन नहीं होता, उसके लिए सब कुछ अपने आप साफ़ हो जाता है।

योगी कुछ अवधि तक ऐसी अवस्था में रहते हैं क्योंकि यह मुक्त होने का सबसे तेज तरीका है। मगर साथ ही अवधूत इस अवस्था में अपना शरीर नहीं छोड़ सकते। मानव चेतना इसी तरह से व्यवस्थित है। आप उस अवस्था में शरीर नहीं छोड़ सकते। जब आपको शरीर छोड़ना होगा, तो आपको जागरूक होना होगा। जागरूक अवस्था में आते ही आप एक बार फिर से कर्म जमा कर सकते हैं। हम ऐसे लोगों को जानते हैं, जो अवधूतों के रूप में रहे, लगभग पूरी तरह मुक्त थे, मगर आखिरी पलों में जब वे उस अवस्था से बाहर निकले, तो वे फिर से अपनी कर्म संरचना में वापस चले गए। वैसे ये मामूली कर्म थे, उनका जमा होना कोई बड़ी बात नहीं, मगर वे खुद को उससे मुक्त करना नहीं जानते थे।

तो फालतू विचारों के हथियारों के बिना आप इस दुनिया में नहीं रह सकते। ये फ़ालतू विचार आपके भीतर मौजूद द्वैत या दोहरे पक्षों से पैदा होते हैं। अगर आप सभी द्वैत से परे चले जाएं तो आप के अंदर एक स्थान की रचना हो जाती है, और सभी द्वैत उस स्थान के बाहर काम करते हैं। अगर आप चाहें तो आप दुनिया का खेल खेल सकते हैं, नहीं तो आप बिना इस खेल के भी ठीक रहते हैं। तब फ़ालतू विचार आपका हिस्सा नहीं होते, लेकिन आपके पास विचारों का कचरा मौजूद होता है। आप जब चाहें इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, पर आप इससे अलग होते हैं।