राष्ट्र की असली संपत्ति उसकी मिट्टी है
भारत की मिट्टी बहुत ही तेजी से खराब हो रही है। इससे पोषण दर में कमी आ रही है और जल संकट बढ़ता जा रहा है। तो यही समय है कुछ करने का!
भारत ने बहुत सी सफलतायें अर्जित की हैं -- हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिक मंगल ग्रह और चंद्रमा पर रॉकेट भेज रहे हैं। बड़े स्तर पर कारोबार विकास एवं इंजीनियरिंग के कमाल हुए हैं। इन सब के बीच, सबसे अधिक आश्चर्यजनक, अतुल्य बात जो हुई है वह ये है कि हमारे किसान बिना किसी तकनीक के, बस सिर्फ अपनी पारंपरिक जानकारी के बल पर, 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को खिला रहे हैं। देश के लिये ये सबसे बड़ी उपलब्धि है।
हमारे किसान बिना किसी तकनीक के, बस सिर्फ अपनी पारंपरिक जानकारी के बल पर, 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को खिला रहे हैं। देश के लिये ये सबसे बड़ी उपलब्धि है।
Soil in the Cauvery basin is disappearing fast, and this is pushing our farmers over the edge. This video looks at the dire situation, and how we can reverse this. #FREEINDIAFromWaterCrisis #CauveryCalling
— Isha Foundation (@ishafoundation) August 9, 2019
Plant trees at https://t.co/Qml0YbeQqH pic.twitter.com/ZpwwyWp4mV
लेकिन दुर्भाग्यवश हमने अपने किसानों को इतना लाचार बना दिया है कि वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे खेती के काम में लगें। तो एक तरफ मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है और दूसरी तरफ किसानों की अगली पीढ़ी खेती में नहीं लग रही। इसका अर्थ ये है हम निश्चित रूप से अगले 25 वर्षों में एक बड़े खाद्यान्न संकट का सामना करने वाले हैं।
जब पानी और भोजन नहीं मिलेगा एक विशाल संकट खड़ा हो जायेगा जो देश को कई प्रकार से नष्ट कर देगा। उन ग्रामीण क्षेत्रों से, जहाँ पानी बिल्कुल समाप्त होने जा रहा है, लोग बड़ी संख्या में शहरी इलाकों में आ जायेंगे और ये कोई बहुत दूर की बात नहीं है। फिर किसी भी व्यवस्था, संरचना के अभाव में, वे गलियों में, रास्तों पर बैठ जायेंगे। लेकिन कब तक ? जब उन्हें खाना और पानी नहीं मिलेगा तो वे लोगों के घरों में घुसेंगे। मैं कोई निराशावादी या बुरी भविष्यवाणी करने वाला व्यक्ति नहीं हूँ पर यदि हम कोई प्रभावी काम अभी से शुरू नहीं करते तो अगले 8 - 10 वर्षों में ही आप ऐसी परिस्थितियाँ देखेंगे।
फलदायी, उपजाऊ मिट्टी : सबसे मूल्यवान उपहार
हमारे इस उष्ण कटिबंधीय देश में, हमारे लिये पानी का एक ही स्रोत है और वह है मानसूनी वर्षा। हमारे यहाँ मानसून 45 - 60 दिन तक रहता है और साठ दिनों में आया हुआ बारिश का पानी हमें 365 दिनों के लिये रखना होता है जिससे नदियों में, झीलों में और जलकूपो में पानी बना रहे। और हरियाली एवं पर्याप्त वृक्षों के बिना हम ये काम किसी भी तरह से नहीं कर सकते।
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मिट्टी में पानी तब ही रहेगा जब मिट्टी में बहुत सारे अच्छे, समृद्ध जैविक तत्व उपस्थित हों। पेड़ों के पत्ते और पशुओं का मल इस जैविक तत्व का स्रोत है। जहाँ पर पेड़ न हों, पशुओं का मल ज़मीन में ना जाए, वहाँ मिट्टी पानी को रोक नहीं पाती, वो बह जाता है।
आप को ये समझना चाहिये कि राष्ट्र की सच्ची संपत्ति क्या है? ये है - पेड़ों की पत्तियाँ और पशुओं का मल, जो मिट्टी को उपजाऊ, फलदायी बनाते हैं। हम अपनी अगली पीढ़ी को जो सबसे मूल्यवान वस्तु दे सकते हैं वह कारोबार, सोना या पैसा नहीं है, वह है समृद्ध, उपजाऊ मिट्टी। मिट्टी को समृद्ध बनाये रखे बिना पर्याप्त पानी मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
जब सारी दुनिया ये प्रयास कर रही है कि लोग माँसाहार छोड़ कर शाकाहारी जीवन के रास्ते अपनायें तो हम, जो मुख्यतः एक शाकाहारी देश हैं, माँस की ओर इसलिये बढ़ रहे हैं क्योंकि हमारे शाकाहारी खाद्य पदार्थों में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं हैं।
अगर आप भारत में एक घन मीटर मिट्टी लें तो इसमें पाये जाने वाले जैविक तत्वों की प्रजातियाँ, विश्व में सबसे अधिक हैं। तो हालाँकि आज मिट्टी खराब हो रही है लेकिन फिर भी अगर आप इसको थोड़ी सी भी सहायता कर दें तो इसके पास शक्ति का ऐसा विशाल भंडार है जो पुनः मिट्टी को समृद्ध कर देगा। खेती की पुरानी परंपरा के कारण, इस मिट्टी में जीवन के इतने सारे रूप समाए हैं। हमारी ये ज़मीन इतनी उपजाऊ है कि हम इसी ज़मीन पर पिछले 12000 वर्षों से खेती करते चले आ रहे हैं। लेकिन पिछले 40 से 50 वर्षों में हमने इसे रेगिस्तान बना दिया है, बस इसलिए, क्योंकि हमने अपनी वन संपत्ति, अपने पेड़ों को काट दिया है।
मिट्टी कैसे स्वास्थ्य पर असर डालती है ?
भारत की मिट्टी की दशा इतनी खराब हो गयी है कि हम जो अन्न, सब्ज़ियाँ, फल उगा रहे हैं उनके पोषक तत्व विनाशकारी ढंग से कम होते चले जा रहे हैं। विशेष रूप से भारतीय सब्ज़ियों में तो पिछले 25 सालों में पोषक तत्वों में 30% गिरावट आयी है। विश्व में हर तरफ डॉक्टर लोगों को मांसाहारी भोजन से शाकाहारी भोजन की तरफ मुड़ने को कह रहे हैं पर भारत में, डॉक्टर हमें माँस खाने की सलाह दे रहे हैं। क्यों ? जब सारी दुनिया ये प्रयास कर रही है कि लोग माँसाहार छोड़ कर शाकाहारी जीवन के रास्ते अपनायें तो हम, जो मुख्यतः एक शाकाहारी देश हैं, माँस की ओर इसलिये बढ़ रहे हैं क्योंकि हमारे शाकाहारी खाद्य पदार्थों में पर्याप्त पोषक तत्व नहीं हैं।
और ये बस इसलिये है क्योंकि हमने अपनी मिट्टी की परवाह नहीं की है, उसे संभाला नहीं है। मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व इतने नाटकीय ढंग से कम हो गये हैं कि हमारे 3 वर्ष से कम उम्र के लगभग 70% बच्चे कुपोषित हैं, उनमें स्वस्थ रक्त की कमी है।
अगर आप जंगल में जायें और वहाँ की मिट्टी की जाँच करें तो वह जीवन से भरपूर, बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली मिलेगी। मिट्टी ऐसी ही होनी चाहिये। अगर मिट्टी की शक्ति कम हो जाती है तो हमारे शरीर भी कमजोर पड़ जायेंगे - सिर्फ पोषण की दृष्टि से ही नहीं पर अत्यंत मूल रूप से। इसका अर्थ ये है कि हम जो अगली पीढ़ी पैदा करेंगे वो हमसे कम शक्तिवाली होगी। ये तो मानवता के प्रति अपराध है। हमारी अगली पीढ़ी हमसे बेहतर होनी चाहिये। अगर वो हमसे कम है, तो इसका अर्थ यही है कि हमने मूल रूप से कुछ बहुत गलत किया है। ये भारत में बहुत बड़े रूप में हो रहा है क्योंकि हमारे देश की मिट्टी अपनी शक्ति खो रही है।
अब समय है काम करने का
1960 के पहले भारत में कई बार अकाल पड़े थे। उनमें से कुछ में, सिर्फ गर्मी के दो ही महीनों में, 30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। अब यदि हमारी नदियाँ सूखती जायेंगी और मिट्टी खराब होती जायेगी तो हम लोग फिर से ऐसी ही परिस्थितियाँ देखेंगे। अगर हम अब, इसी समय, सही काम नहीं करेंगे तो इस भूमि पर भविष्य में लोग रह नहीं पायेंगे।
मैंने इसीलिये 'कावेरी पुकारे' कार्यक्रम शुरू किया है। हम अपने किसानों को 83,000 वर्ग किमी क्षेत्र वाले कावेरी घाटी में 242 करोड़ पेड़ लगाने में मदद कर रहे हैं। इससे घाटी के एक तिहाई भाग में पेड़ लग जाएंगे और कावेरी घाटी में 90 खरब (9 लाख करोड़) लीटर पानी बढ़ेगा। अभी नदी में जितना पानी बह रहा है, ये उससे 40% अधिक होगा।
यह तभी हो सकता है जब किसान वृक्ष आधारित खेती को अपनायें। हमने छोटे स्तर पर प्रयोग कर के यह दिखाया है कि वृक्ष आधारित कृषि को अपनाने वाले 69,760 किसानों की आय पाँच से सात सालों में 300 से 800% बढ़ी है। जब हम इस मॉडल को कावेरी घाटी में बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक लागू कर देंगे तब फिर अन्य नदियों के क्षेत्रों में भी यह किया जा सकेगा।
अब यही समय है जब हमें वास्तविक काम करना है। हम आज की खराब परिस्थिति को पूर्ण रूप से बदल सकते हैं अगर अगले 10 से 25 वर्षों तक हम इस दिशा में लगातार अच्छे प्रयत्न करें।
संपादकीय टिप्पणी:कावेरी पुकारे अभियान, किसानों को 242 करोड़ पेड़ लगाने और कावेरी को बचाने में मदद करेगा। इससे घाटी की पानी को रोकने की क्षमता बढ़ जाएगी, और किसानों की आमदनी पांच गुना हो जाएगी। Visit:CauveryCalling.Org or call 80009 80009. #CauveryCalling