अक्सर हम अपने निकट समबंधियों से हमें समझने की उम्मीद लगा लेते हैं। सद्गुरु बता रहे हैं कि जितना करीबी रिश्ता होगा, उसकी आत्मीयता का आनंद उठाने के लिए उतनी ही ज्यादा कोशिश लगेगी। जानते हैं रिश्तों के बारे में...
आपको सभी को समझना होगा
आप इस संसार में रहते हैं - यहाँ विभिन्न प्रकार के जटिल आदान-प्रदान होते रहते हैं। जैसे-जैसे आपके कार्य का दायरा बढ़ता है, आपके आदान-प्रदान की जटिलताएं भी बढ़ती जाती हैं।
चाहे अन्तरंग रिश्ते हों, व्यावसायिक हों, राजनैतिक हों, वैश्विक हों या जो भी रिश्ते हों, क्या आप ऐसा व्यक्ति नहीं बनना चाहते जो यह निर्णय ले सके कि उसके जीवन में क्या होना चाहिये?
अगर आप एक छोटे से केबिन में एक व्यक्ति के साथ बैठ कर अपने कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं तो आपको थोड़ी सी समझ की ज़रूरत होती है; लेकिन अगर आप एक हज़ार लोगों के मैनेजर (प्रबन्धक) हैं, तो आपको हर व्यक्ति की एक विस्तृत समझ की ज़रूरत पड़ती है। अब मान लीजिये कि आप एक हज़ार लोगों के प्रबंधक हैं और आप चाहते हैं कि वे लोग आपको समझें, तो फिर आप कुछ नहीं कर पाऐंगे। आपको इन हज़ार लोगों की सीमाओं और क्षमताओं को समझने की ज़रूरत होगी और वह सब करना होगा जो आप कर सकते है; केवल तभी आपके अंदर परिस्थितियों को मनचाहे दिशा में मोडऩे की काबिलियत होगी। अगर आप इस प्रतीक्षा में है कि ये हज़ार लोग आपको समझ कर काम करेंगे, तो यह मात्र एक दिवा-स्वप्न है; यह कभी नहीं होने वाला।
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करीबी रिश्ते : इन्हें समझने में लगती है ज्यादा कोशिश
संबंध जितना ही आत्मीय होगा, आपको उसे समझने की उतनी ही अधिक कोशिश करनी होगा। कोई व्यक्ति आपका ज्यादा आत्मीय और प्रिय तभी होता है जब आप उसे बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। अगर वे आपको समझने लगते हैं तो वे रिश्ते की घनिष्ठता का आनंद उठाते हैं।
अगर आप अपनी समझ के दायरे को उनकी समझ के आगे ले जाते हैं तो उनकी समझ भी आपकी समझ का एक हिस्सा बन जाती हैं।
अगर आप उन्हें बेहतर ढंग से समझते हैं, तो आप घनिष्ठता का आनंद लेते हैं। देखिए, ऐसा नहीं है कि दूसरे व्यक्ति के पास समझदारी नाम की चीज़ ही नहीं है। आप अपनी समझ से ऐसी स्थितियाँ पैदा कर सकते हैं जहाँ दूसरा व्यक्ति आपको बेहतर ढंग से समझ सके। दूसरे व्यक्ति की सीमाओं, संभावनाओं, आवश्यकताओं और योग्यताओं को समझे बिना यदि आप आशा करते हैं कि वह आपको समझे और हर समय आपकी सुने, तो बस कलह ही होगा। उसका होना तय है। दुर्भाग्यवश संसार के निकटतम रिश्तों में होने वाला कलह, दुश्मनों के बीच होने वाला कलह से ज्यादा है।
रिश्ते को अपनी इच्छानुसार रचना
अपने रिश्तों में अब तक आप इससे कई गुना ज्यादा युध्द लड़ चुके हैं और शायद अभी भी लडऩे जा रहे हैं। क्या ऐसा नहीं है? इसका कारण यह है कि आपकी और उनकी समझ की रेखा अलग है। अगर आप इस नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल) का उल्लंघन करते हैं, तो वे पागल हो जाते हैं।
आपको अपनी समझ के दायरे को इतना व्यापक बनाना होगा कि आप लोगों के पागलपन के परे जा कर भी देख सकें।
अगर वे इसे पार करते हैं तो आप पागल हो जाते हैं। अगर आप अपनी समझ के दायरे को उनकी समझ के आगे ले जाते हैं तो उनकी समझ भी आपकी समझ का एक हिस्सा बन जाती हैं। आप उनकी सीमाओं और क्षमताओं को समाहित करने योग्य हो जाते हैं। हरेक व्यक्ति में कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक बातें होती हैं। अगर आप इन सबको अपनी समझ में
शामिल कर लेते हैं तो आप रिश्ते को अपनी इच्छानुसार बना सकतें हैं। अगर आप उसे उनकी समझ पर छोड़ देते हैं तो वह आकस्मिक हो जाता है, संयोग पर आधारित हो जाता है। अगर वे बहुत उदार निकले तो आपके लिये सब कुछ सुंदर होगा, अन्यथा रिश्ता टूट जाएगा।
अपने जीवन की दिशा खुद तय करें
मैं बस यही पूछ रहा हूँ - जीवन में क्या होना चाहिये, इसका निर्णय आप लेना चाहेंगे या नहीं? चाहे अन्तरंग रिश्ते हों, व्यावसायिक हों, राजनैतिक हों, वैश्विक हों या जो भी रिश्ते हों, क्या आप ऐसा व्यक्ति नहीं बनना चाहते जो यह निर्णय ले सके कि उसके जीवन में क्या होना चाहिये?
जैसे अभी आप हैं, आप जिस तरह के रिश्ते बनाते हैं, उसी के द्वारा आपके जीवन की गुणवता तय होती है।
अगर आप यह चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप अपनी समझ में हर व्यक्ति और हर बात को शामिल कर लें। आपको अपनी समझ के दायरे को इतना व्यापक बनाना होगा कि आप लोगों के पागलपन के परे जा कर भी देख सकें। आपके इर्द-गिर्द बहुत अद्भुत लोग हैं, लेकिन कभी-कभी वे चन्द लम्हों के लिये थोड़ा सनकी जैसा व्यवहार करते हैं।
जीवन एक सीधी रेखा नहीं होता
अगर आप उनकी सनक को नहीं समझेंगे तो आप निश्चित रूप से उन्हें खो देंगे। जब आप उन्हें समझेंगे तभी आप यह जानेंगे कि उन्हें कैसे संभाला जाए। जिंदगी हमेशा एक सरल रेखा नहीं होती - इसे चलाते रहने के लिये आपको बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं। अगर आप अपनी समझ छोड़ दें तो आपकी योग्यता खो जाएगी। चाहे यह व्यक्तिगत रिश्तों का प्रश्न हो या व्यावसायिक प्रबंधन का, दोनों जगह आपको समझ की आवश्यकता होती है; अन्यथा आपके रिश्ते सफल नहीं हो पाऐंगे।
जैसे अभी आप हैं, आप जिस तरह के रिश्ते बनाते हैं, उसी के द्वारा आपके जीवन की गुणवता तय होती है। बेहतर होगा कि आप अपने आस-पास के लोगों को समझने की पूरी कोशिश करें।