रोग और योग - रीढ़ की समस्या, एलर्जी, कैंसर, मासिक धर्म और गर्भावस्था
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि कैसे योग से मोटापा, दमा, बवासीर और मधुमेह आदि रोगों को ठीक किया जा सकता है। इस बार जानें कि कुछ अन्य रोग जैसे रीढ़ से जुडी समस्याएं, नाक की एलर्जी, कैंसर और मासिक धर्म और गर्भावस्था में योग कैसे लाभ पहुंचा सकता है...
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि कैसे योग से मोटापा, दमा, बवासीर और मधुमेह आदि रोगों को ठीक किया जा सकता है। इस बार जानें कि कुछ अन्य रोग जैसे रीढ़ से जुडी समस्याएं, नाक की एलर्जी, कैंसर और मासिक धर्म और गर्भावस्था में योग कैसे लाभ पहुंचा सकता है...
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रीढ़ की समस्याएं और इलाज
अगर आप भरपेट खाते हैं और लेट जाते हैं तो कई अंगों पर दबाव पड़ता है और इसीलिए लगातार ऐसा करना कोई अच्छी बात नहीं है। कभी कभार आप भरपेट खाने के बाद सो गए तो चलेगा, लेकिन रोज भरपेट भोजन कर लेने के बाद बिस्तर पर जाना ठीक नहीं है। आपको खाना खाने के बाद भरपूर समय देना चाहिए। कम से कम डेढ़ घंटे से लेकर साढ़े तीन घंटे तक का वक्त तो बेहद आवश्यक है।
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मासिक धर्म संबंधी विकार और इलाज
आसन, हठ योग और प्राणायाम के लगातार अभ्यास से मासिक धर्म को नियमित किया जा सकता है, क्योंकि कई महिलाओं में शारीरिक फिटनेस के अभाव में माहवारी पूरी नहीं हो पाती।
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नाक की अलर्जी
रामबाण है कपालभाति
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इसके लिए आपको बस एक या दो महीने तक लगातार कपालभाति का अभ्यास करना है, आपका साइनस पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अगर आप इसे सही तरीके से करते हैं, तो कपालभाति से सर्दी-जुकाम से संबंधित हर रोग में आराम मिलेगा।
जिन लोगों को अलर्जी की समस्या है, उन्हें लगातार कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए और इसकी अवधि को जितना हो सके, उतना बढ़ाना चाहिए। तीन से चार महीने का अभ्यास आपको अलर्जी से मुक्ति दिला सकता है।
अगर कपालभाति का भरपूर अभ्यास किया जाए तो अतिरिक्त बलगम यानी कफ भी खत्म हो जाएगा। शुरू में आप 50 बार करें। इसके बाद धीरे-धीरे रोजाना 10 से 15 बार इसे बढ़ाते जाएं। चाहें तो इसकी संख्या एक हजार तक भी बढ़ा सकते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो 500, 1000 या 1500 कपालभाति भी करते हैं। अभ्यास करते रहने से एक ऐसा वक्त भी आएगा, जब कोई ज्यादा बलगम नहीं बनेगा और आपका नासिका छिद्र हमेशा साफ रहेगा।
कुछ घरेलू उपाय
जिन लोगों को सर्दी के रोग हैं और हर सुबह उन्हें अपनी नाक बंद मिलती है, उन्हें नीम, काली मिर्च, शहद और हल्दी का सेवन करना चाहिए।
10 से 12 काली मिर्च कूट लें। इन्हें दो चम्मच शहद में रात भर भिगोकर रखें। सुबह उठकर इसे खा लें और काली मिर्च को चबा लें। शहद में हल्दी मिला ली जाए तो वह भी अच्छा है।
अगर आप सभी डेरी पदार्थों से बचकर रहते हैं तो अपने आप ही बलगम कम होता जाएगा।
स्तन कैंसर और कैंसर
उपवास
अपने सिस्टम में कैंसर-कोशिकाओं की संख्या को घटाने के सबसे आसान तरीकों में से एक है - उपवास। दरअसल, इन कोशिकाओं को सामान्य कोशिकाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा भोजन की आवश्यकता होती है। इन्हें करीब तीस फीसदी ज्यादा भोजन चाहिए। अगर किसी दिन आप भोजन से परहेज करेंगे, तो अपने आप ही इन कोशिकाओं के स्तर में कमी आनी शुरू हो जाएगी।
शक्ति चलन क्रिया
कुछ खास तरह की साधना भी है जिसका अभ्यास करके आप अपने शरीर के भीतर हॉर्मोंस के स्राव को काबू में रख सकते हैं। हम ‘शक्ति चलन क्रिया’ और कुछ आसन सिखाते हैं, जिनसे पूरे सिस्टम को ठीक और संतुलित किया जा सकता है।
कैंसर से पीडि़त मरीजों की योग-अभ्यास ने कितनी मदद की है, इसका कोई सबूत या आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन यह जरूर देखने में आया है कि ऐसे मरीजों को इन अभ्यासों से काफी फायदा हुआ है। कैंसर के वैसे मरीजों ने कीमोथेरेपी के प्रति जिस तरह की प्रतिक्रिया दी, उससे उनका इलाज करने वाले डॉक्टर भी हैरान रह गए। कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जब कीमोथेरपी के बाद मरीजों ने योगाभ्यास किया और बड़ी तेजी से ठीक हुए। उनका कैंसर योग-अभ्यास की वजह से ठीक हुआ, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि मेडिकल इलाज के साथ-साथ योग-अभ्यास करने से मरीज को निश्चय ही फायदा हो सकता है।
गर्भावस्था को आसान बनाता है योग
हालांकि गर्भवती महिलाओं को योग के सभी तरह के अभ्यास करने की सलाह नहीं दी जाती, फिर भी कुछ खास तरह के योगाभ्यास उनके लिए बहुत अहम है। योग उनकी गर्भावस्था, बच्चे को जन्म देेने की प्रक्रिया और मातृत्व, इन सबके अनुभव को बहुत सुंदर बना सकता है।
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के बारे में जागरूक करने के लिए और उन्हें यह सिखाने के लिए कि इस अवस्था के आनंद को महसूस करने की खातिर अपने शरीर, मन और भावनाओं को कैसे आरामदायक बनाएं, ‘ईशा-ताईमई’ कार्यक्रम खास तौर पर तैयार किया गया है। इस कार्यक्रम में बताया जाता है कैसे एक सेहतमंद बच्चे को जन्म दिया जाए और बच्चे का ध्यान रखने का सबसे अच्छा तरीका क्या है।
अवसाद और उदासी को दूर भगाएं
योग में अवसाद को शरीर, मन और ऊर्जा के स्तर पर संभाला और संचालित किया जाता है। अगर जरूरत के हिसाब से तन, मन और ऊर्जा के बीच संतुलन बन जाता है तो जीवन में आनंदमय होना बहुत स्वाभाविक है। एक आनंदपूर्ण व्यक्ति में कभी अवसाद आ ही नहीं सकता।