Sadhguruबद्रीनाथ हिमालय पर स्थित एक तीर्थ स्थान है। इससे जुड़ी एक रोचक कथा बताती है कि कैसे शिव अपना घर गंवा बैठे और यहां आकर रहने लगे। आखिर हुआ क्या था?

बद्रीनाथ के बारे में एक कथा है। यह हिमालय में 10,000 की ऊंचाई पर स्थित एक शानदार जगह है, जहां शिव और पार्वती रहते थे। एक दिन, शिव और पार्वती टहलने गए। जब वे वापस लौटे, तो उनके घर के दरवाजे पर एक नन्हा शिशु रो रहा था। बच्चे को चीख-चीख कर रोते देख, पार्वती की ममता जाग उठी और वह बच्चे को उठाने लगीं। शिव ने उन्हें रोका और बोले, ‘उस बच्चे को मत छुओ।’ पार्वती बोलीं, ‘आप कितने निर्दयी हैं। आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’

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शिव बोले, ‘यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। यह अपने आप हमारे दरवाजे पर कैसे आ गया? आस-पास कोई नहीं दिख रहा, बर्फ में इसके माता-पिता के पैरों के कोई निशान भी नहीं हैं। यह कोई बच्चा नहीं है।’ मगर पार्वती बोलीं, ‘मैं कुछ नहीं जानती। मेरे अंदर की मां इस बच्चे को इस तरह नहीं छोड़ सकती।’ और वह बच्चे को घर के अंदर ले गईं। बच्चा बहुत सहज हो गया और पार्वती की गोद में बैठकर प्रसन्नतापूर्वक शिव को देखने लगा। शिव इसका नतीजा जानते थे, मगर वह बोले, ‘ठीक है, देखते हैं, क्या होता है।’

 शिव बोले, ‘यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। यह अपने आप हमारे दरवाजे पर कैसे आ गया? आस-पास कोई नहीं दिख रहा, बर्फ में इसके माता-पिता के पैरों के कोई निशान भी नहीं हैं। यह कोई बच्चा नहीं है।’ मगर पार्वती बोलीं, ‘मैं कुछ नहीं जानती। मेरे अंदर की मां इस बच्चे को इस तरह नहीं छोड़ सकती।’ 

पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और उसे दूध पिलाया। फिर वह उसे छोड़कर शिव के साथ नजदीकी गरम पानी के झरने में स्नान करने चली गईं। जब वे लोग वापस लौटे, तो उन्होंने पाया कि घर अंदर से बंद था। पार्वती आश्चर्यचकित रह गईं, ‘दरवाजा किसने बंद किया?’ शिव बोले, ‘देखो, मैंने कहा था कि इस बच्चे को मत उठाओ। तुम उस बच्चे को घर में ले कर आई और अब उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया है।’

पार्वती बोलीं, ‘अब हम क्या करेंगे?’

शिव के पास दो रास्ते थे - पहला, अपने सामने हर चीज को जला डालना। दूसरा, कोई और रास्ता ढूंढकर चले जाना। वह बोले, ‘चलो, हम कहीं और चलते हैं। यह तुम्हारा प्यारा बालक है, इसलिए मैं उसे स्पर्श नहीं कर सकता।’

इस तरह शिव अपना ही घर गंवा बैठे, और शिव-पार्वती एक तरह से अवैध प्रवासी बन गए। वे रहने के लिए भटकते हुए सही जगह ढूंढने लगे और आखिरकार केदारनाथ में जाकर बस गए। आप पूछ सकते हैं, कि क्या उन्हें पता नहीं था। आपको बहुत चीजें पता होती हैं, मगर फिर भी आप उन्हें होने देते हैं।