शिव - कल्पना हैं या हकीकत?
इस देश में बहुत से पौराणिक पात्रों के लेकर अक्सर यह सवाल किए जाते हैं कि वे काल्पनिक कथा के पात्र हैं या फिर ऐतिहासिक पात्र? क्या शिव सचमुच धरती पर हैं? जानते हैं कल्पना और हकीकत के मेल के बारे में
शिव - पौराणिक पात्र या सत्य ?
एक बार एक बच्चे ने मुझसे पूछा, ‘यह जीवन हकीकत है या सपना?’ मैंने कहा, ‘जीवन एक सपना है पर यह सपना हकीकत है।’ इस उपमहाद्वीप ने पूरी दुनिया को यह सुंदर योग्यता दी है कि कैसे जीवन को एक साथ हकीकत और सपने के तौर पर देखा जा सकता है। इस जगह पलने वाला हर इंसान ‘माया’ को जानता है। वह जानता है कि हम जिस संसार में रहते हैं, यह जितना असली है, उतना ही नकली भी है। यह नजरिया यहां की पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। इस महाद्वीप की पौराणिक कथाएं निरी काल्पनिक नहीं रही हैं, न यह कोई विशुद्ध तथ्य रहा है। यह न तो कोई सजावटी कल्पना थी और न ही कोई आंकड़ा। यह कोई ‘इसका’ या ‘उसका’ प्रश्न भी नहीं था - यह हमेशा से दोनों ही था। यह अनंत काल तक का भी था और तत्काल भी। कल्पना और अंतर्दृष्टि का अद्भुत मेल, सत्य का एक गहरा स्तर। उसी ने इसे इतिहास से कहीं अधिक गहन बना दिया। जब मैं शिव, योग के स्रोत, आदियोगी की बात करता हूँ, तो अक्सर मुझसे पूछा जाता है कि मैं उन्हें कल्पना या इतिहास, धारणा या वास्तविकता, अतीत या वर्तमान में से; क्या मानता हूँ। मैं कहता हूँ, ‘दोनों। वे धुएँ की ऐसा रेखा हैं जो कोई भी रूप ले सकती है। पर उस धूएं के पीछे लगातार जलने वाली एक आग है। वह एक पौराणिक पात्र हैं, और उसके साथ ही वे इस धरती पर भी चलते हैं। अगर आप पूरी तरह से तीव्र व फोकस्ड हैं, तो आप धुंआ पैदा करने वाली आग को जानते हैं। धुआं हमें कई तरह के रूप दिखा सकता है। आग हमें गर्मी दे सकती है। पर अगर आप इसे सही मायने में जानना चाहते हैं तो आपको राख होने के लिए तैयार होना होगा। शिव की भस्म में लिपटी छवि वही दर्शाती है। उन्होंने ‘मैं और मेरा’ के बोध को जला कर भस्म कर दिया है। शिव का अर्थ है, ‘जो नहीं है।’ सारी सीमाओं को जला कर राख करके ही असीम हुआ जा सकता है।
अग्नि के दो रूप – चेतना और अंतिम संस्कार की अग्नि
अगर आप तथ्य और तर्क के जाल में उलझे, तो यह तर्क आपको जीवन का जादू नहीं देखने देगा। अगर आपने ध्यान दिया तो आपको हर जगह जादू दिखेगा; एक बीज का पौधा होना; एक फूल का फल हो जाना और दो कोशिकाओं के मिलने से आपका होना - यह सब अद्भुत जादू ही तो है। संकीर्ण तर्कों में बंधे लोग इसे नहीं जान पाते। बेशक, तर्क हमें खड़े होने का आधार देता है। पर वह जिस आधार पर टिका है, वह उस सृष्टि का जादुई स्रोत है। हम जिस धरती पर खड़े हैं वह उस अनंत स्थान में तैर रही है जो सृष्टि की कोख है। आधार पर टिकने के बाद भी आकाश को छूना ही आध्यात्मिक प्रगति का सार है। भारत केवल भूगोल का हिस्सा नहीं, यह एक जीवंत स्पंदन है। यह उन लोगों की धरती है, जो तर्क के जटिलतम रूप को समझने और समझाने के बावजूद कभी उसमें उलझे नहीं। वे तर्क को उस बिंदु तक ले गए जो अस्तित्व के रहस्यवादी और जादुई आयामों तक जाने की राह बन गया। आदियोगी इन दो विपरीत दिखने वाले आयामों के उच्चतम प्रतिनिधि हैं। वे इन दोनों आयामों में बिना किसी परशानी के रहते हैं। यह हमारा चुनाव होगा कि तर्क को सराहें, उससे चकित हों या इसे अस्तित्व से परे जाने के लिए पंखों की तरह इस्तेमाल करें। आप भी तर्कों के पंखों पर उड़ सकते हैं पर हर किसी को वापस अग्नि के पास आना ही होता है। चाहे वह श्मशान की अग्नि हो या फिर जीती-जाती चेतना की अग्नि।
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