सद्‌गुरुअगर शिव अपना तीसरा नेत्र नहीं खोलते, तो शायद उनका इतना महत्व न होता, जो उन्हें आज दिया जाता है। तो क्या हम भी अपना तीसरा नेत्र खोल सकते हैं? अगर हां, तो कैसे?

शिव का सबसे अहम पहलू यही है कि उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला। उन्होंने और भी बहुत कुछ किया - वे नाचे, उन्होंने ध्यान किया और दो बार विवाह भी किया। यह सब ठीक था पर हम उन्हें इसलिए याद करते हैं क्योंकि उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खेला। हजारों सालों बाद भी हम उनके आगे सिर झुकाते हैं क्योंकि जानने का कोई और विकल्प नहीं है। जानना यानी मुक्त होना। जब तक आप अपने बोध को वर्तमान सीमाओं से परे नहीं ले जाते, तब तक जानने का कोई और उपाय नहीं है।

शिव का महत्व इसलिए है क्योंकि वे उस बोध को पाने में सफल रहे जिसे दूसरे लोग नहीं पा सके।

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लोग कहते हैं कि जब शिव ने तीसरा नेत्र खोला तो उसमें से आग निकली। यह आग इस बात की प्रतीक थी, कि जो कुछ भी उनके भीतर छिपा था, उन्होंने वह सब जला दिया।
मानव जाति के जिस चीज को देख नहीं पाई, उसे वे सहजता से देख पाए। तीसरे नेत्र का यही मतलब है। लोग कहते हैं कि जब शिव ने तीसरा नेत्र खोला तो उसमें से आग निकली। यह आग इस बात की प्रतीक थी, कि जो कुछ भी उनके भीतर छिपा था, उन्होंने वह सब जला दिया। उन्होंने अपने भीतर से वह सब जला दिया जिसे जलाया जा सकता था। और फिर, उनके हर पोर से पसीने और रक्त की जगह भस्म फूटने लगी। यह इस बात का प्रतीक था कि उन्होंने अपने भीतर से अज्ञान के एक-एक कण को जला दिया - वह सब, जिसे सच माना जाता था। जब एक बार यह हो गया, तो उनके लिए तीसरा नेत्र खोल पाना मुश्किल नहीं रहा।

दो उपाय तीसरे नेत्र को खोलने के

तीसरे नेत्र को खोलने के दो उपाय हैं। एक उपाय है, आपके भीतर एक खालीपन हो जो दरवाजे को भीतर अपनी ओर खींच ले और दरवाजा कुदरती तौर पर खुल जाए। वह दरवाजा खाली जगह होने की वजह से भीतर की तरफ खुल गया है। शिव ने न केवल अपने विचार, भाव, रिश्ते, अपनी चीजों को जलाया है, बल्कि अपने वजूद को भी जला दिया है। अब पूरी तरह से खालीपन है। तो दरवाजा भीतर गिरेगा और खुल जाएगा।

तीसरा नेत्र खोलने का एक और उपाय यह है कि आप सब कुछ अपने भीतर रखें। अपने भाव या विचार को प्रकट करने का आपके पास कोई रास्ता नहीं हो। आप एक शब्द भी नहीं बोलें। आप देखेंगे कि अगर आप चार दिन चुप रहें तो पाँचवें दिन आपका गाने का मन करेगा। गाना नहीं आएगा तो भी गला फाड़ कर चिल्लाना चाहेंगे क्योंकि आप अपने भीतर को खाली करना चाहते हैं। पर अगर आपने कुछ भी बाहर नहीं जाने दिया तो इतना दबाव होगा कि आपके भीतर एक दरवाजा खुल जाएगा। यह एक और उपाय है।

मध्यम मार्ग पर चलने से बचें

हालांकि अगर आप डिप्लोमेट हैं, अगर आप मध्यम मार्ग में यकीन रखते हैं, तो इसका मतलब है कि आप कहीं नहीं जाना चाहते।

एक भी भाव या सोच को प्रकट नहीं करना, एक शब्द नहीं कहना, मन में उठ रहे मत या विचार को नहीं कहना। यह आपका विस्फोट कर सकता है पर अगर आपने हर चीज़ को संभाले रखा तो तीसरा नेत्र खुल जाएगा।
मध्यम मार्ग को मानने वाले अपने जीवन में कहीं नहीं जाना चाहते। यह और कुछ नहीं, बस आपके जीवन का आरामदायक दायरा है। इसका मतलब है कि आप हमेशा कुछ करने से बचना चाहते हैं - यही मध्यम मार्ग है। यह आपको कहीं भी, किसी भी दिशा में नहीं ले जाता और कुछ समय बाद इसे सोचना भी बेकार हो जाता है।

मानलीजिए कि आप सड़क पर चल रहे हैं और अचानक एक बड़ी चट्टान सामने आ गई। इससे पार जाने के दो ही रास्ते हैं। एक दिशा में बाघ बैठा है। दूसरी दिशा में आग जल रही है। अगर आप मध्यम मार्ग अपनाते हैं और चट्टान पर चढ़ते हैं तो केवल व्यायाम ही होगा। आप कहीं नहीं जा सकेंगे।

तो या तो आप बिल्कुल खाली हो जाएं, खालीपन की ताकत इसे खोलेगी, या अपने भीतर दबाव बनाएं, तो वह दबाव इसे खोलेगा - ये दो उपाय हैं। पहला उपाय बेहतर विकल्प है। अगर आप दबाव बना कर दरवाजा खोलेंगे तो यह कल बंद भी हो सकता है। कोई दूसरा भीतर झाँक सकता है और आप भाग सकते हैं। यह अपने-आप में दुखदायी होगा - एक भी भाव या सोच को प्रकट नहीं करना, एक शब्द नहीं कहना, मन में उठ रहे मत या विचार को नहीं कहना। यह आपका विस्फोट कर सकता है पर अगर आपने हर चीज़ को संभाले रखा तो तीसरा नेत्र खुल जाएगा।

हालांकि अगर आप डिप्लोमेट हैं, अगर आप मध्यम मार्ग में यकीन रखते हैं, तो इसका मतलब है कि आप कहीं नहीं जाना चाहते। मध्यम मार्ग को मानने वाले अपने जीवन में कहीं नहीं जाना चाहते। यह और कुछ नहीं, बस आपके जीवन का आरामदायक दायरा है।