विकलांग बच्चे क्या दुखी होते हैं?
किसी अपंग या भिन्न क्षमता वाले बच्चे को देखकर लोगों के मन में हमेशा यह भाव उठता है कि कितना कष्ट है उसे! लेकिन क्या वाकई उसे कष्ट है? अगर है तो क्यों है? 7 अप्रैल - विश्व स्वास्थ्य दिवस के दिन पढ़ें इन गंभीर सवालों के जवाब ...
प्रश्न:सदगुरु, ऐसा क्यों होता है कि कुछ बच्चे अक्षमता या अपंगता के साथ पैदा होते हैं और उन्हें बहुत कष्ट झेलना पड़ता है?
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सदगुरु: कष्ट उन्हें नहीं झेलना पड़ता, सिर्फ उनके माता-पिता को झेलना पड़ता है। वे बस भिन्न क्षमता के साथ पैदा होते हैं। आपको लगता है कि वे विकृत हैं – यह पूरी तरह आपकी सोच है। आप सिर्फ इसलिए ऐसी राय बना रहे हैं क्योंकि वे औरों की तरह नहीं हैं। चाहे आप उन्हें विकलांग कहें, या आजकल सामाजिक रूप से स्वीकृत शब्दों में भिन्न क्षमता वाले बच्चे कहें, आप उन्हें कोई भी नाम दें, वे बस दूसरों से भिन्न हैं। हो सकता है कि बाकी बच्चे जो काम कर सकते हैं, वे काम ये बच्चे न कर सकें, मगर ये दुखी नहीं हैं। आप अपनी तुलना करने की आदत से उन्हें दुखी करते हैं। वरना अपने आप में वे बिल्कुल ठीक होते हैं। माता-पिता इसलिए दुखी होते हैं क्योंकि वे किसी और के बच्चों को देखकर रोना रोते हैं, ‘मेरा बच्चा वैसा नहीं है, मेरा बच्चा फर्स्ट नहीं आ पाएगा।’ यह बस एक सामाजिक बेवकूफी है।
अगर आप इसे नहीं सह सकते, तो आपके अंदर इतना साहस होना चाहिए कि आप सब कुछ प्रकृति पर छोड़ दें। आपने ‘सर्वावइल ऑफ द फिटेस्ट’ का सिद्धांत तो सुना ही होगा। अगर आप उसे प्रकृति पर छोड़ देंगे, तो जो सबसे योग्य होगा, वह बचा रहेगा। क्या आपके पास ऐसा करने का साहस है? नहीं है। अगर वे मर गए, तो आप रोएंगे, अगर वे जीवित रहते हैं, तब भी आप रोते हैं। यह क्या है? अगर उनमें सब कुछ ठीक है मगर फिर भी वे आपकी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते, आपकी उम्मीदों के मुताबिक जीवन नहीं बिताते – तब भी आप रोते हैं। तो फिर समस्या क्या है, किसी भी हालत में आप रोएंगे ही। थोड़ा-बहुत हंसना सीखिए। जीवन बहुत अलग-अलग रूपों में घटित होता है।
कोई भी इंसान किसी विकलांगता के कारण दुखी नहीं होता। कोई रोग या विकलांगता मूलत: कष्ट का कारण नहीं होता। वह एक खास शारीरिक स्थिति पैदा करता है। कष्ट सिर्फ आप पैदा करते हैं। कोई और नहीं, सिर्फ आप, क्योंकि आप नहीं जानते कि आप क्या कर रहे हैं। आपकी बुनियादी क्षमताएं – आपका मन और शरीर – आपके काबू में नहीं हैं। इसलिए आप कष्ट का कारण बन रहे हैं।
स्थितियां घटित होती रहती हैं, कुछ आपके मन मुताबिक होती हैं, कुछ नहीं होतीं। कुछ परिस्थितियों पर आपका बस होता है, कुछ को आप नहीं संभाल पाते। जीवन ऐसे ही घटित होता है। मगर दुख या कष्ट आप पैदा करते हैं, परिस्थितियां नहीं। हर वह स्थिति, जिसे आप संभाल नहीं सकते, उसमें अगर आप खुद को दुखी करना चाहें, तो आपके पास बहुत मौके होते हैं।
वैसे भी भिन्न क्षमता वाले लोगों के बारे, जिनकी संख्या बहुत कम है, उनको मुद्दा बनाने की उतनी जरूरत नहीं है। उन सभी लोगों का क्या करें जिनके सभी अंग सलामत होते हुए भी वे दुखी होते हैं? आप अपने जीवन की ओर देखें कि आपके हाथ-पैर सलामत हैं, सब कुछ ठीक है, फिर भी 24 घंटों में कितने पल ऐसे होते हैं, जब आप वाकई आनंदित होते हैं? अगर आप होते भी हैं, तो ऐसे पल बहुत कम होते हैं, है न? यह जीने का एक दुर्भाग्यपूर्ण तरीका है।
अगर आप इस तरह देखें कि कुछ लोग दो हाथों के साथ पैदा होते हैं, कुछ एक के साथ, कुछ लोगों का दिमाग बड़ा होता है, कुछ का छोटा, यह सब प्रकृति का एक हिस्सा है। अगर हम उपलब्ध चीजों के साथ जितना कुछ कर सकते हैं, वह करें, तो विकलांगता में कोई कष्ट नहीं होगा। अगर आप अपने पूर्वाग्रह या पक्षपात की बजाय अपनी मानवता को काम करने दें, तो विकलांगता में कोई कष्ट नहीं होगा।