योग करते समय पानी क्यों नहीं पीना चाहिए?
सद्गुरु बता रहे हैं कि हठ योग के दौरान शरीर का तापमान सही क्यों होना चाहिए और योग करते समय पानी क्यों नहीं पीना चाहिए।
सद्गुरु बता रहे हैं कि हठ योग के दौरान शरीर का तापमान सही क्यों होना चाहिए और योग करते समय पानी क्यों नहीं पीना चाहिए। आइये जानते हैं...
प्रश्न:
नमस्कारम सद्गुरु। आपने बताया कि योग अभ्यास के दौरान हमें पानी नहीं पीना चाहिए या शौचालय नहीं जाना चाहिए – ऐसा क्यों?
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सद्गुरु:
जब आप योग का अभ्यास करते हैं, तो आप धीरे-धीरे शरीर में उष्णता का स्तर बढ़ाते हैं। अगर आप ठंडा पानी पीते हैं, तो उष्णता तेजी से गिरती है जिससे शरीर में दूसरी प्रतिक्रियाएं होती हैं। इससे आपको एलर्जी, अत्यधिक कफ और बाकी समस्याएं हो सकती हैं।
जैसे-जैसे आप अभ्यास करते हैं और आपका योग तीव्र होने लगता है, तो पसीना धीरे-धीरे आपके सिर के ऊपर से निकलना चाहिए, पूरे शरीर से नहीं। बाकी शरीर से मौसम के अनुसार पसीना आना चाहिए, मगर मुख्य रूप से आपके सिर से पसीना निकलना चाहिए। इसका मतलब है कि आप अपनी ऊर्जा को सही दिशा में ले जा रहे हैं और आसनों से कुदरती तौर पर ऐसा होता है। अंतत: आप किसी और चीज का स्रोत बनना चाहते हैं, इसलिए पहले व्यर्थ पानी के साथ अभ्यास करें। अगर आप लगातार अपनी उष्णता पर मेहनत करते हैं, तो वह कुदरती रूप से व्यर्थ जल को ऊपर की ओर ले जाता है। अगर आपका शरीर ज्यादा गर्म हो जाता है, तो थोड़ी देर शवासन करके उसे धीमा करें। मगर कभी भी ठंडे पानी से गरमी को कम करने की कोशिश न करें। आपको शौचालय जाने की बजाय पसीना बहाना चाहिए क्योंकि जब व्यर्थ जल पसीने के रूप में बाहर आता है, तो शरीर की शुद्धि अधिक होती है।
अभ्यास के दौरान, अगर आप पसीने से तरबतर हैं, तो आम तौर पर आपके कपड़े उसे सोख लेंगे। लेकिन अगर आप खाली बदन हैं, तो हमेशा पसीने को वापस शरीर में मल दें क्योंकि पसीने में एक खास प्राण तत्व होता है, जिसे हमें खोना नहीं चाहिए। जब हम पसीने को वापस शरीर में मल देते हैं, तो वह शरीर में एक खास आभामंडल और मजबूती लाता है। यह आपकी अपनी ऊर्जा का एक खोल होता है, जिसे कवच भी कहते हैं। हम उसे व्यर्थ बहाना नहीं चाहते। योग का मतलब शरीर को उसके अधिकतम लाभ तक इस्तेमाल करना है। अगर आप नियमित रूप से आसन करते हैं और अपने पसीने को वापस शरीर में मल देते हैं, तो आप एक खास उष्णता और प्राणशक्ति तीव्रता उत्पन्न करते हैं। ऐसा नहीं है कि आप गरम या सर्द मौसम, भूख, प्यास आदि से पूरी तरह मुक्त होंगे, मगर ये आपको उतना परेशान नहीं करेंगे।
इसका मकसद है कि आप अपनी शारीरिक बाध्यताओं से परे जाकर विकसित हों। चाहे बात खाने-पीने, शौचालय जाने या किसी भी चीज की हो, एक खास बाध्यता का स्तर व्यक्ति-व्यक्ति में भिन्न होता है मगर स्थूल शरीर में बाध्यताओं की कोई कमी नहीं है।