योगासन खाली पेट ही क्यों?
यह तो शायद आप सब जानते होंगे कि योगासन या हठ योग करते समय खाली पेट रहने की सलाह दी जाती है। लेकिन इसका कारण क्या है ? बता रहे हैं सद्गुरु-
यह तो शायद आप सब जानते होंगे कि योगासन या हठ योग करते समय खाली पेट रहने की सलाह दी जाती है। लेकिन इसका कारण क्या है ? बता रहे हैं सद्गुरु-
योगासन के लिए सिर्फ खाली पेट रहना ही जरूरी नहीं है – पेट साफ भी होना चाहिए।
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योगासन और आयुर्वेद
पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में, चाहे वह आयुर्वेद हो या सिद्धचिकित्सा पद्धति, आपको कोई भी समस्या हो, सबसे पहले वे आपका पेट साफ करते हैं। अगर आप स्वस्थ होना चाहते हैं, तो आपका पेट साफ होना बहुत जरूरी है। कुछ खास तरह का भोजन करने वाले लोगों का और उन लोगों का जिनको बीच-बीच में खाने की आदत होती है, का पेट कभी साफ नहीं रह सकता। खासकर दुग्ध उत्पाद और मांसाहारी भोजन मलाशय में ज्यादा समय तक रहते हैं।
अगर आप अपनी ऊर्जा को बढ़ाना चाहते हैं, तो जो भी चीज असल में आपके शरीर का हिस्सा नहीं है, उसे आपके शरीर से बाहर होना चाहिए। योगाभ्यास कोई कसरत नहीं है – वह तो आपके शरीर को नया रूप देने का तरीका है। एक तरह से आप अपने शरीर को नए सांचे में, जैसा आप उसे बनाना चाहते हैं, ढालते हुए उसे नया रूप देने की कोशिश करते हैं। इसे करने के लिए आपके शरीर के भीतर कुछ भी नहीं होना चाहिए। अगर आप कुछ ले सकते हैं तो बस पानी ले सकते हैं।
योग का अभ्यास करने का मतलब है, स्रष्टा के साथ भागीदारी करना। आप यह पूरी तरह खुद नहीं कर सकते, मगर आप स्रष्टा के लिए जरूरी माहौल तैयार कर सकते हैं। आप सृष्टि के स्रोत को अपना सहर्ष भागीदार बनाना चाहते हैं। जब आप पैदा हुए, तो आपके बस में कुछ नहीं था। आपके माता-पिता और आपके पूर्वजों ने तय किया कि आपका शरीर कैसा होगा और कैसे काम करेगा। इसी कारण इस संस्कृति में ज्ञानी जनों को ‘द्विज’ यानी दो बार जन्मा हुआ कहा जाता था। पहली बार जब अपनी मां के गर्भ से आप जन्मे थे, उस समय आपका कोई बस नहीं था। मगर अब आप धीरे-धीरे खुद को फिर से खोज रहे हैं, फिर से खुद की रचना कर रहे हैं, वैसा, जैसा आप खुद को बनाना चाहते हैं।
अगर आपने अपनी नाक की प्लास्टिक सर्जरी करवा ली या अपने शरीर के किसी अंग में कुछ इंप्लांट करा लिया, तो आपकी जिंदगी नहीं बदलेगी।
अगर आप गंभीरता से सृष्टि की ओर देखें, तो आपको हर चीज में असाधारण बुद्धि दिखाई देगी। आप एक मामूली पत्ते को भी ध्यान से देखें, तो आपको पता चलेगा कि इसे बनाने में किस तरह की प्रतिभा लगी है और उसके कितने कार्य हैं। एक पत्ता, पौधे की ऊर्जा का स्रोत होता है। आज के वैज्ञानिकों का सपना एक पत्ते को ऊर्जा के अक्षय स्रोत के रूप में पैदा करना है, जो आपके घर को बिजली दे सके और यहां तक कि आपके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था भी करे। वैज्ञानिक सालों से इस आधुनिक तकनीक पर काम कर रहे हैं। वे एक पत्ता बनाने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, क्योंकि एक पत्ता एक ही समय पर अद्भुत तरीके से बहुत सी चीजें कर सकता है। एक परमाणु तक की रचना में भी असाधारण बुद्धि लगी है, हम तो उसे समझने में भी सक्षम नहीं हैं।
बुद्धि स्रष्टा की प्रकृति है। आपको लगता होगा कि आपको प्यार, पैसा, संपत्ति जैसी चीजों की जरूरत है लेकिन नहीं, आपको बस थोड़ी और समझ की जरूरत है, चाहे आपका बौद्धिक स्तर कुछ भी हो। कितनी बार आपने अपने आस-पास के लोगों को देखकर सोचा होगा, ‘काश, इनके पास थोड़ी सी बुद्धि होती।’ अगर सिर्फ आपका ज्ञान नहीं बल्कि आपकी बुद्धि दोगुनी हो जाए, तो आप सब कुछ और आसानी से सीख सकेंगे। जो चीज आप वैसे पचास सालों में सीखते, उसे पांच साल में सीख सकते हैं।
सृष्टि के स्रोत के साथ भागीदारी का मतलब है कि आपके अंदर इतनी बुद्धि आ जाएगी, जितने की आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। इसे संभव बनाने के लिए, अड़चनों को दूर करने की जरूरत है। यह शरीर सृष्टि के स्रोत की रचना है। आपने उसमें जो भोजन डाला है, वह शरीर का हिस्सा नहीं है और जो मल आपने उत्पन्न किया है, वह भी शरीर का हिस्सा नहीं है।
गुनगुना पानी और शहद ही दो ऐसे पदार्थ हैं, जिन्हें आप अपने पेट में जाने दे सकते हैं, और कुछ भी नहीं। आपके पास सिर्फ शरीर होना चाहिए, कोई अड़चन नहीं। वरना, स्रष्टा का आपसे संपर्क नहीं हो पाएगा। सृजन का स्रोत, जो बुद्धि आपके अंदर सक्रिय है, वह किसी भी दूसरी चीज को एक बाहरी पदार्थ मानती है और वह आपके आसन में हिस्सा नहीं लेगी। स्रष्टा या सृष्टि के स्रोत को आपके आसन में सक्रिय होना चाहिए और हिस्सा लेना चाहिए – तभी कोई आसन योगासन बन सकता है। वरना, वह बस एक मुद्रा बन कर रह जाएगा।