बारिश की फुहारें और लाल धरती
बारिश की फुहारें और लाल धरती
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु अपने बारिश के अनुभव हमसे साझा कर रहे हैं, और साथ ही बारिश में भीगने के आध्यात्मिक महत्व को भी बता रहे हैं...
एक चीज मेरी कभी समझ में नहीं आई। जैसे ही बारिश होती है, सब लोग इससे बचने के लिए ऐसे भागते हैं कि मानो वे नमक या चीनी के बने हैं, जो भीगते ही गल जाएंगे। अगर मैं भी किसी कार्यकम या सार्वजनिक आयोजन में हूं तो मैं भी थोड़ा बहुत भागता हूं, लेकिन इसकी वजह होती है कि मैं किसी खास तरीके से नहीं जा सकता। लेकिन इसके अलावा मुझे कभी समझ में नहीं आया कि लोग बरसात से बचना क्यों चाहते हैं।
गर्मी में पड़ने वाली बारिश की पहली बौछार मेरे लिए किसी उल्लास या परमानंद से कम नहीं होती थी। मेरे उपर जैसे ही बारिश की पहली फुहार पड़ी, मैं खिल उठता था। उसके बाद जीवन में हुए कुछ अनुभवों ने जब मेरा जीवन बदल दिया तो बारिश का अहसास मेरे लिए और गहरा हो गया। पहले मैं इसका आनंद लिया करता था। यह मुझे कुछ खास तरीकों से आनंदमय बनाया करती थी। लेकिन बाद में बारिश में भीगना मेरे लिए बहुत ही बड़ा अनुभव हो गया। मेरे घर में एक आंगन भी है, और बारिश में मैं वहाँ जाकर खड़ा हो जाता हूँ।
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हमारे शरीर का 72 फीसदी से ज्यादा हिस्सा जल है। दरसअल, हमारा शरीर अपने आप में एक पानी की बोतल हैं। यह आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण जल इकाई है। अगर आप अपने अस्तित्व के इस पहलू का अनुभव कर लेंगे तो बारिश आपके लिए एक जबरदस्त मौका होगा। इस समय में आप प्रकृति के साथ बड़े पैमाने पर खुद को जोड़ पांएगे, क्योंकि यह आपको प्रकृति से सीधा जोड़ती है। बारिश आपके लिए एक जुड़ाव की तरह है, क्योंकि यह आप ही हैं जो बारिश के रूप में खुद अपने उपर बरस रहे हैं। कोई और चीज नहीं है यह। मेरे लिए बारिश एक बेहद ताकतवर आध्यात्मिक अनुभव है, और यह हमेशा रहा है।
जब ईशा होम स्कूल शुरू हुआ तो उस समय काफी आंधी तूफान था - क्योंकि, स्कूल मानसून में शुरू होता है। ऐसे में शिक्षकों ने एक दिन पूछा कि बच्चों को बारिश से कैसे बचाया जाए। मैंने उनसे कहा, ‘आप उन्हें बारिश में बाहर ले जाएं और उन्हें भीगने दें। उन्हें बारिश का आनंद व अनुभव बारिश की तरह लेने दीजिए।’ अगर आप गौर करेंगे तो आप पाएंगे, कि जब आप बारिश में भीगे हुए होते हैं तो आपमें और आसपास की चीजों में ज्यादा फर्क नहीं रहता। जब आप सूखे होते हैं तो आपको इसका अहसास नहीं होता। लेकिन गीले होने पर आपको इसका अहसास होता है। इसलिए ज्यादातर मंदिरों में व्यवस्था होती थी कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले आपको किसी कुंड या सरोवर में डुबकी लेनी होती थी। अफसोस की बात है कि आज ज्यादातर सरोवर या कुंड खत्म हो गए। मंदिरों में प्रवेश से पहले आपको इनमें डुबकी लेनी होती थी, ताकि आपमें उस दिव्य शक्ति या ईश्वर से जुड़ने और उसे ग्रहण करने की क्षमता बेहतर हो सके। मंदिरों में तीर्थकुंड होने के पीछे यही भाव रहता था। हालांकि उस जल को एक अलग तरीके से प्रतिष्ठत व उर्जावान बनाया जाता था, लेकिन अंततः होता तो यह भी पानी ही है।
ध्यानलिंग मंदिर भी एक प्रतिष्ठित स्थान है, लेकिन आपको इसे महसूस करने के लिए सूक्ष्म संवेदी होना पड़ेगा, क्योंकि यह अपने आप में सिर्फ हवा है।
इस बारिश का ज्यादा से ज्यादा आनंद उठाएं। इसमें भीगकर सृष्टि के जादुई तत्व से जुड़ने की कोशिश करें। अपने भौतिक अस्तित्व की सीमाओं से निकलकर जिंदगी को जानें और उसका आनंद लें। यहां आपके पास एक अवसर है, जहां आप इस शरीर के बंधनों और बाध्यताओं को तोड़कर उससे परे जा सकते हैं। सृष्टि के आलिंगन में होने और सृष्टि के स्रोत के साथ आत्मीय अंतरंगता में रहने का आनंद उठाएं।
बारिश के साथ एकाकार होने पर जो परमानंद की बूंदे आप पर बरस रही हैं, उनका आनंद लीजिए।
आपको यह कभी नहीं कहना चाहिए कि ‘बारिश बारिश वापस जाओ’।