कृष्ण ने नरकासुर नाम के अत्यंत क्रूर राजा को दिवाली से पहले आने वाली चतुर्दशी के दिन मार दिया था। असल में यह नरकासुर की ही इच्छा थी की यह चतुर्दशी उसकी बुराइयों के अंत होने की वजह से एक उत्सव की रूप में मनाई जाए

दीवाली को नरक चतुदर्शी के रूप में भी मनाया जाता है। दरअसल, नरक ने प्राथर्ना की थी कि उसकी मृत्यु का उत्सव मनाया जाए। बहुत से लोगों को मुत्यु के पलों में ही अपनी सीमाओं का अहसास होता है। अगर उन्हें पहले ही इनका अहसास हो जाए तो जीवन बेहतर हो सकता है। लेकिन ज्यादातर लोग अपने आखिरी पलों का इंतजार करते हैं। नरक भी उनमें से एक था। अपनी मृत्यु के पलों में अचानक उसे अहसास हुआ कि उसने अपना जीवन कैसे बरबाद कर दिया और अब तक अपनी जिंदगी के साथ क्या कर रहा था। उसने कृष्ण से प्रार्थना की, ‘आप आज सिर्फ मुझे ही नहीं मार रहे, बल्कि मैंने अब तक जो भी बुराइंया या गलत काम किए हैं, उन्हें भी खत्म कर रहे हैं। इस मौके पर उत्सव होना चाहिए।’ इसलिए आपको नरक की बुराइयों के खत्म होने का उत्सव नहीं मनाना चाहिए, बल्कि आपको अपने भीतर की तमाम बुराइयों के खत्म होने का उत्सव मनाना चाहिए। तभी सच्ची दीवाली होगी। वर्ना तो यह ढेर सारे खर्चे, तेल जलाने और पटाखे फोड़ने का मौका बन कर रह जाएगा।

नरक एक बहुत अच्छे परिवार से था। कहा जाता है कि वह भगवान विष्णु का पुत्र था। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने जब जंगली शूकर यानी वराह अवतार लिया, तब नरक उनके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। इसलिए उसमें कुछ खास तरह की प्रवृत्तियां थीं। सबसे बड़ी बात कि नरक की दोस्ती मुरा से हो गई, जो बाद में उसका सेनापति बना। दोनों ने साथ मिल कर कई युद्ध लड़े और हजारों को मारा। कृष्ण ने पहले मुरा को मारा।

नरक को तो कृष्ण ने बता दिया था कि मैं तुम्हें मारने वाला हूं, लेकिन आपको जरूरी नहीं कि कोई बताए। यह बस अपने आप हो जाएगा।
दरसअल, दोनों अगर एक साथ रहते तो नरक से निपटना मुश्किल था। मुरा को मारने के बाद ही कृष्ण का नाम मुरारि हुआ। कहा जाता है कि मुरा के पास कुछ ऐसी जादुई शक्तियां थीं, जिनकी वजह से कोई भी व्यक्ति उसके सामने युद्ध में नहीं ठहर सकता था। एक बार मुरा खत्म हो गया तो नरक से निपटना आसान था।

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कृष्ण ने नरक को इसलिए मारा, क्योंकि वह जानते थे कि अगर उसे जीने दिया जाए तो वह उसी तरह रहेगा। लेकिन अगर उसे मृत्यु के समीप लाया जाए तो उसे अपनी गलतियों का अहसास हो सकता है। मृत्यु के नजदीक पहुँच कर उसे अचानक अहसास हुआ कि उसने अपने जीवन में बहुत सारे बुरे काम और पाप जमा कर लिए हैं। इसलिए उसने कृष्ण से कहा, ‘आप मुझे नहीं मार रहे, बल्कि आप मुझसे मेरे बुरे कर्म दूर कर रहे हैं। आप मेरे साथ यह अच्छा काम कर रहे हैं। यह बात हर इंसान को पता चलनी चाहिए। ताकि वो सब लोग मेरे पापों के अंत का उत्सव मना सकें। क्योंकि यह मेरे लिए एक नई रोशनी ले कर आया है और यह हरेक के लिए एक नई रोशनी लेकर आए। ’ इस तरह से यह प्रकाश पर्व बन गया। पूरा देश इस दिन रोशनी से जगमगाता है। जिसमें आपको अपना सारी नकारात्मकता और बुराइयां जला देनी होती हैं। बेहतर होगा कि इसे अभी किया जाए। नरक को तो कृष्ण ने बता दिया था कि मैं तुम्हें मारने वाला हूं, लेकिन आपको जरूरी नहीं कि कोई बताए। यह बस अपने आप हो जाएगा।

ऐसा ही मामला अमेरिका के टेनेसी में हुआ। एक महिला एक बंदूक की दुकान पर गई। टेनेसी में यह बेहद आम बात है कि लोग वहां बीच बीच में बंदूक खरीदते रहते हैं। वह महिला दुकानदार के पास जाकर बोली, ‘मुझे अपने पति के लिए एक रिवाल्वर और कुछ गोलियां चाहिए।’ दुकानदार ने उससे पूछा, ‘आपके पति कौन सी ब्रांड पसंद करेंगे।’ महिला ने जवाब दिया, ‘मैंने उन्हें नहीं बताया है कि मैं उन्हें शूट करने जा रही हूं।’

जब जिदंगी का अंत पास होगा, तो जरुरी नहीं कि आपको बताया जाएगा। इसलिए दीवाली एक याद दिलाती है कि आप किसी और के द्वारा मारे जाने की बजाय, अगर आप चाहें तो एक सजग मृत्यु पा सकते हैं और सजग जन्म ले सकते हैं।

भगवान विष्णु ने जब जंगली शूकर यानी वराह अवतार लिया, तब नरक उनके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। इसलिए उसमें कुछ खास तरह की प्रवृत्तियां थीं।
हम यह नहीं जानते कि कोई आदमी, औरत, बैक्टीरिया, वाइरस या हमारे शरीर की अपनी ही कोई कोशिका हमारी मौत का कारण बनेगी। कोई न कोई तो हमें मारेगा। ऐसे में हरेक के लिए नरक द्वारा याद दिलाई जाने वाली चेतावनी याद रखना बेहतर होगा, ‘मैं जीवन में कुछ बेहतर कर सकता था, लेकिन मैंने गलत काम ही किए और ऐसा बन गया।’

हममें से हरेक एक जैसी ही मिट्टी और चीजों से बना है, लेकिन हरेक एक दूसरे से कितना अलग है। सवाल है कि आप अपने जीवन में रोज क्या संचित कर रहे हैं। आप अपने भीतर जहर रच और भर रहे हैं या अपने जीवन में रोज उस दिव्यता की महक उतार रहे हैं। यह विकल्प आपके सामने है। नरक के एक अच्छा जन्म पाने और फिर बुराई में डूबने की यह कथा महत्वपूर्ण है। मृत्यु के वक्त नरक ने महसूस किया कि उनके और कृष्ण के बीच में सिर्फ यही फर्क है कि उन्होंने अपने जीवन के साथ क्या किया? कृष्ण ने अपने जीवन को भगवान सरीखा बना लिया, जबकि नरक ने अपने आप को एक राक्षस में बदल डाला। हममें से हरेक के पास यह विकल्प होता है। अगर हमारे पास यह विकल्प नहीं होता तो भला उन लोगों का क्या महत्व रहता, जिन्होंने अपने आप को एक चमकता हुआ सितारा बना दिया। ऐसा नहीं था कि वे लोग खुशकिस्मत थे या वो लोग पैदा ही उस तरीके से हुए थे। इंसान को एक खास तरह का बनने के लिए अपने आप को ढेर सारा गूंथने और तोड़ने-मरोड़ने की जरूरत होती है।

आप या तो जिंदगी के चाबुक का इंतजार कीजिए या फिर आप खुद अपने आप को ही चाबुक से हांक कर अपने जीवन को दिशा दीजिए, पसंद आपकी है। नरक ने कृष्ण को चुना कि वह आकर उन्हें हांकें। जबकि कृष्ण ने खुद को हांक कर अपने व्यक्तित्व व जीवन का निर्माण किया। दोनों में यही सबसे बड़ा फर्क है। इसीलिए एक की पूजा होती है और दूसरे को राक्षस माना जाता है। या तो आप खुद को ठोक पीट कर अपना आकार निखार लें अथवा जिंदगी आपको ठोक पीट कर निखार देगी - या फिर आपको बेढंगा कर देगी। दीवाली इसी की याद दिलाती है। आइए हम सब खुद को आलोकित करें।

Love & Grace