सद्‌गुरु: : स्मार्ट होना और बुद्धिमान होना, ये दो अलग अलग बातें हैं। 25 साल पहले, किसी के बारे में बात करते हुए, हम उसे बुद्धिमान कहते थे। लेकिन आजकल, अलग शब्दों का प्रयोग होता है। आजकल कोई परवाह नहीं करता कि आप बुद्धिमान हैं या नहीं। उनको एक ही फ़िक्र होती है कि क्या आप स्मार्ट हैं? अगर आप स्मार्ट हैं तो आप दुनिया में अपना काम निकाल सकते हैं - आज की अर्थव्यवस्था में आप पार लग जायेंगे

अगर यहाँ आप हैं और मैं हूँ तो मेरा आप से ज्यादा स्मार्ट होना अच्छा हो सकता है लेकिन यदि यहाँ पर सिर्फ मैं और मैं ही हूँ तो मेरा अपने आप से ज्यादा स्मार्ट होना बेवकूफी ही है।

लेकिन बुद्धि का स्वभाव अलग है। बुद्धि हमेशा आपको कोई दौड़ जीतने के लिये तैयार नहीं करती। वास्तव में आप दूसरे से धीमें हो सकते हैं क्योंकि उन लोगों की अपेक्षा आप कहीं ज्यादा चीज़ें देख सकते हैं। जो लोग स्मार्ट हैं और सिर्फ इस कोशिश में हैं कि अपने जीवन का कोई छोटा उद्देश्य पूरा कर लें, हो सकता है वे वहाँ ज्यादा तेज़ी से पहुँच जाएँ - और हो सकता है लोग उनके लिये तालियां भी बजायें। लेकिन आपकी बुद्धि इतनी सारी चीज़ें ग्रहण कर रही होगी, कि वो आपको एक कदम भी उठाने नहीं देगी।

अगर आप स्मार्ट हैं तो इसका मतलब ये होगा कि आपने अपने लाभ के लिये परिस्थितियों को किसी तरह संगठित कर लिया है। अलग अलग तरह के लोगों को इस आधार पर स्मार्ट समझा जाता है कि आप किस तरह के समाज में हैं, समय कैसा है, परिस्थिति कैसी है और आप किस तरह के लोगों के बीच में हैं! आज, वे लोग जो कुछ संकोच मे होते हैं, वे आम तौर पर बेवकूफ माने जाते हैं। बिना किसी संकोच वाले लोग स्मार्ट कहलाते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि कुछ ख़ास परिस्थितियों का लाभ कैसे लिया जाये!

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एक स्मार्ट कुत्ता

मैं आप को एक कहानी सुनाता हूँ। एक बार एक बहुत स्मार्ट कुत्ता था। वो इतना स्मार्ट था कि आसपास के सभी गाँवों के कुत्तों से बेहतर बन गया। एक दिन वो थोड़ा ज्यादा साहसी हो गया। अगर आप ने ध्यान दिया हो तो गाँव के कुत्ते कभी जंगल के अंदर तक नहीं जाते। ज़्यादा से ज़्यादा वे जंगल के किनारे तक एकाध खरगोश को पकड़ने के लिये चले जाते हैं, पर कभी जंगल में अंदर, दूर तक नहीं जाते क्योंकि वे जानते हैं कि वहां बड़े जानवर हैं, जिनके लिये वे आसानी से भोजन बन जायेंगे।

लेकिन ये कुछ ज्यादा ही स्मार्ट कुत्ता है। तो ये जंगल में बहुत गहरे, अंदर तक चला गया, जहाँ उसे एक बाघ ने देखा। बाघ ने उसके जैसे जीव को पहले कभी नहीं देखा था। उसने सोचा, "ऐसा लगता है, आज की दोपहर के लिये ये बढ़िया नाश्ता होगा"। वो गुर्राया और कुत्ते के पास आने लगा। लेकिन ये कुत्ता बहुत स्मार्ट है। वो भागना चाहता था लेकिन वो जानता था कि अगर वो भागा तो बाघ उसे जल्दी ही पकड़ कर अपने लिये कुरकुरा नाश्ता बना लेगा। उसने पास ही एक हड्डियों का ढेर देखा तो उसके चारों ओर चक्कर लगाते हुए कहने लगा, "वाह भगवान, ये बाघ मेरे लिये बहुत अच्छा भोजन हैं"। यह सुन कर बाघ हिचकिचाया और पीछे हट गया, "अरे, ये कोई ऐसा जीव है जो बाघ को भोजन बना लेता है, और ये इतनी हड्डियों का ढेर लगा है"। वो मुड़ा और वापस जाने लगा। ये देख कर स्मार्ट कुत्ता धीरे से वापस खिसक गया।

पास के पेड़ पर बैठा एक बंदर ये सब देख रहा था और परिस्थिति में दखल देने से वो अपने आप को रोक नहीं सका। वो बाघ से बोला, "अरे, वो तुम्हें बेवकूफ बना कर चला भी गया। वो बस एक कुत्ता है। मैं गाँवों में गया हूँ। उसके पास तुम्हारे एक पंजे जितनी भी ताकत नहीं है"। बाघ को बहुत बुरा लगा, " क्या, उसने मुझे बेवकूफ बनाया ? आओ, हम उसे पकड़ें"। तो बंदर कूद कर बाघ की पीठ पर बैठ गया और वे कुत्ते की ओर दौड़ने लगे।

कुत्ते ने देखा, बंदर बाघ की पीठ पर सवारी कर रहा है और वे उसकी ओर आ रहे हैं। वो समझ गया, क्या हुआ होगा, लेकिन कुत्ता स्मार्ट था। उसने जोर से जम्हाई ली और बोला, "कहाँ है वो बदमाश बंदर ? लगभग एक घंटा हो गया जब मैंने उसे किसी दूसरे बाघ को पकड़ कर लाने के लिये कहा था। कहाँ है वो ?"

क्योंकि सृष्टि को समझना एक बात होती है, पर सृष्टि के मूलतत्व को समझना बिलकुल ही अलग चीज़ है, इसमें आप का स्मार्ट होना बिलकुल भी काम नहीं करेगा

आप इस तरह दुनिया को सम्भाल सकते हैं। लेकिन बात जब आप के आंतरिक स्वभाव की आती है तो ये आप को कहीं नहीं ले जायेगा, क्योंकि सृष्टि को समझना एक बात होती है, पर सृष्टि के मूलतत्व को समझना बिलकुल ही अलग चीज़ है, इसमें आप का स्मार्ट होना बिलकुल भी काम नहीं करेगा। स्मार्ट होना तभी काम करता है, जब आप होते हैं और कोई दूसरा होता है। जब सिर्फ आप और आप ही होते हैं, तो आप अपने आप को जितना ज्यादा स्मार्ट समझते हैं, उतने ही ज्यादा बेवकूफ बनेंगे।

यह समझना कि आप कितने ज्यादा बेवकूफ हैं ?

आत्मज्ञान प्राप्त करना किसी तरह की उपलब्धि नहीं है। आत्मज्ञान का अर्थ है कि आप अपने अज्ञान को भेद कर बाहर आ गये हैं। यह एक एहसास है - इसका मतलब यह है कि आप को समझ आ गया कि आप कितने बड़े बेवकूफ हैं। वो जो हमेशा से था, आप उसे आज ही देख पाए हैं। यह समझने के लिये बहुत बुद्धिमानी की जरुरत है कि आप कितने बेवकूफ हैं। अधिकतर लोग यह देख नहीं पाते, समझ नहीं पाते। आप इसको तभी देख सकते हैं अगर आप में स्मार्ट और कुछ विशेष होने की, दूसरों से कुछ बेहतर होने की, तीव्र इच्छा बिलकुल ही समाप्त हो जाये। तभी अपने अज्ञान से बाहर आने की बुद्धिमानी आप में जागेगी। अगर आप आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश करेंगे तो आप का अज्ञान बस अलग अलग रूप लेता रहेगा। ये अज्ञान के एक स्तर से दूसरे स्तर पर जाने की एक अंतहीन यात्रा ही होगी।

मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि स्मार्ट होना कुछ गलत है। आप अपने आप को दूसरों से बेहतर काम करने के लिये प्रशिक्षित कर सकते हैं। लेकिन उसका उपयोग और क्षेत्र बहुत सीमित है। आप इसको अंदर की ओर ले जाकर स्मार्ट होने की कोशिश नहीं कर सकते क्योंकि वो एकमात्र इंसान जिसे आप बेवकूफ बना रहे हैं वो आप खुद ही हैं। अगर यहाँ आप हैं और मैं हूँ तो मेरा आप से ज्यादा स्मार्ट होना अच्छा हो सकता है, लेकिन अगर यहाँ पर सिर्फ मैं और मैं ही हूँ तो मेरा अपने आप से ज्यादा स्मार्ट होना बेवकूफी ही है।