आध्यात्मिक साधना में मन मित्र है या शत्रु?
जब भी हम साधना या ध्यान करने बैठते हैं तो सबसे बड़ी बाधा जो खड़ी करता है वह होता है - हमारा मन। तो क्या मन हमारा शत्रु है?
जब भी हम साधना या ध्यान करने बैठते हैं तो सबसे बड़ी बाधा जो खड़ी करता है वह होता है - हमारा मन। तो क्या मन हमारा शत्रु है?
प्रश्न : सद्गुरु, क्या हमारा मन हमेशा हमारे लिए बाधक होता है? यदि हां तो ऐसा क्यों है?
समस्या मन नहीं, इस्तेमाल करने की क्षमता की कमी है
सद्गुरु : आपने ‘आध्यात्मिकता’ नामक शब्द सुना है, तो वह भी अपने मन के कारण ही। अपने मन के कारण ही आप समझ पा रहे हैं कि मैं आपसे क्या बात कर रहा हूं। तो जो आपका मित्र है, आप उसे अपना शत्रु मत बनाइए।
दरअसल मन कोई समस्या नहीं है। समस्या यह है कि आपको इसे संभालना नहीं आता। इसलिए मन का दोष न देखें, यह देखें कि आप कितनी अक्षमता से इसके साथ पेश आ रहे हैं। अगर आप किसी चीज़ को समझे या जाने बिना, उससे पेश आने की कोशिश करते हैं, तो यह आपके लिए परेशानी का कारण ही बनेगी।
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किसी भी चीज़ को इस्तेमाल करने से पहले सीखना होगा
उदाहरण के तौर पर अगर चावल उगाने की अगर बात करें, तो आपको क्या लगता है कि यह एक बहुत बड़ी बात है? एक सीधा-सादा किसान भी धान उगा लेता है। लेकिन अगर मैं आपको सौ ग्राम चावल, भूमि और बाकी सब कुछ दे दूं और कहूं कि आप मुझे एक एकड़ ज़मीन में धान उगा कर दिखाइए, तो आप देखेंगे कि आपकी क्या हालत हो जाएगी।
एक रविवार के दिन, किसी चर्च के स्कूल में पादरी स्कूली छात्रों के सामने पहुंचे। आप जानते ही हैं, वे लोग बहुत ऊर्जावान लोग होते हैं। तो वे अपनी ही धुन में बात किए जा रहे थे। अचानक उन्हें लगा कि बच्चे मुंह लटकाए बैठे हुए हैं। उनका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहिए, यह सोच कर उन्होंने तय किया कि वह उनसे एक पहेली पूछेंगे। उन्होंने कहा, ‘मैं सबसे एक पहेली पूछने जा रहा हूं।
अपनी पहचान को सभी चीज़ों से अलग करना होगा
तो आप इस मन को कैसे रोक सकते हैं? आपने अपनी पहचान उन चीज़ों से जोड़ ली है, जो आप हैं ही नहीं। जब आप अपनी पहचान ऐसी किसी चीज़ से जोड़ते हैं, जो आप नहीं हैं, तो आपका मन बेलगाम भागेगा। अगर आप बहुत सारा तला हुआ भोजन करेंगे तो गैस बनेगी। अब अगर आप गैस को निकलने से रोकना चाहें तो नहीं रोक सकते। अगर आप उचित प्रकार का भोजन करेंगे, तो कुछ रोकने की जरूरत नहीं, शरीर को कोई परेशानी नहीं होगी। ऐसा ही आपके मन के साथ भी होता है - आप गलत चीज़ों के साथ पहचान स्थापित कर लेते हैं। और फिर आपके मन को भी रोकना कठिन हो जाता है।
पर अभी, आपने बहुत सी ऐसी चीज़ों से पहचान जोड़ ली है, जो आप नहीं हैं। आपको देखना है कि आपने अपने भौतिक शरीर के साथ-साथ और किन चीजों से अपनी पहचान जोड़ रखी है। आपने बहुत सारी चीजों से पहचान जोड़ रखी है और मन को रोकने और ध्यान करने की कोशिश करते हैं - यह काम नहीं करेगा। आपको खुद ही इन पहचानों को तोड़ना होगा वरना जीवन इन पहचानों को तोड़ देगा। आपकी सारी से पहचान मृत्यु के समय यहीं रह जाएगी, है न? अगर आपने स्वयं किसी तरह से यह पाठ नहीं सीखा तो आपको इसे मौत के हाथों सीखना होगा। अगर आपमें थोड़ी भी समझ है, तो अभी सीख लीजिये। अगर आप अभी नहीं सीखेंगे, तो मौत आपको आपकी हर पहचान से खींच कर बाहर ले जाएगी।
हर पहचान से अलग होना होगा
तो आपको अपनी हर पहचान से अलग होना है। हर दिन, सुबह दस मिनट लगाएं और देखें कि आपने किन बातों से अपनी पहचान बना रखी हैं, जो कि आप नहीं हैं।
छोटी-बड़ी चीजे़ं, आपका घर, आपका परिवार; इन सभी को मानसिक तौर पर तोड़ें और फिर देखें। जिस चीज़ का भी टूटना आपको आहत करता हैैं, ये स्पष्ट है कि उनसे आपने पहचान जोड़ रखी है। एक बार आप किसी ऐसी चीज़ से पहचान जोड़ लेते हैं जो आप नहीं हैं, आपका मन किसी एक्सप्रेस ट्रेन की तरह बन जाता है, आपके लाख चाहने पर भी रुकने का नाम ही नहीं लेता। यह कभी रुकेगा भी नहीं। मन को भागने की पूरी ऊर्जा देने के बाद उस पर ब्रेक लगाना चाहते हैं - यह ऐसे काम नहीं करेगा। आपको किसी वाहन को ब्रेक लगानी हो तो पहले उसकी गति बढ़ानी तो बंद करनी होगी।