आध्यात्मिक यात्रा कुछ पाने के लिए नहीं, खुद को मिटाने के लिए है
अक्सर बताया जाता कि अध्यात्मिकता का लक्ष्य खुद को जानना है। जानते हैं कि कैसे ये अपने अस्तित्व के स्रोत को जानने के बारे में नहीं है, बल्कि खुद को खो देने के बारे में है।
‘खोजना’- इस शब्द ने लोगों को भ्रम में डाला है। खोजने का मतलब है कि हम कुछ पाने के लिए खोज रहे हैं। भाषा में ये दोनों शब्द जुड़े हैं,लेकिन जब आध्यात्मिक प्रक्रिया की बात आती है तो वहां ये आपस में नहीं जुड़े हैं। एक जिज्ञासु कुछ पाने के लिए नहीं खोजता। वह नहीं जानता, इसलिए वह खोज रहा है। अधिकतर आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को यह बात समझ लेनी चाहिए।
इस तरह की धारणा ने आध्यात्मिक साधकों को बहुत हानि पहुँचाई है कि ‘आपको अपने जीवन का मकसद तलाश करना है’, या ‘आपको अपने जीवन का स्रोत पता करना है’ या ‘आपको अपने जीवन का लक्ष्य तलाशना चाहिए’।
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अगर आप बस बैठ कर ध्यान में खुद को खो सकते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। अगर ऐसा न हो सके तो कोई खेल खेलिए या नाचिए और खुद को उसमें खो दीजिए। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो काम में खुद को खो दीजिए। बस आपको किसी तरह खुद को खोना है।
अगर आपने खोजना चाहा तो यह एक अंतहीन दौड़ होगी। इंसान हमेशा उससे ज्यादा पाना चाहता है जो उसके पास पहले से है। अगर वह सिर्फ पैसे को जानता है तो उसे और पैसा चाहिए। ताकत को जानता हो तो उसे और ताकत चाहिए। प्यार को जान ले तो उसे और प्यार चाहिए। आपके अन्दर कुछ ऐसा है जो उससे कभी संतुष्ट नहीं होता, जो आप अभी हैं। आप जो भी हैं, उससे थोड़ा बेहतर बनने की कोशिश में हैं क्योंकि आपके भीतर कुछ ऐसा है जिसे सीमा में रहना पसंद नहीं है जो अपने लिए असीम अनुभव चाहता है। जरा सोचें कि अगर आपको असीम को पाना है तो कितने समय बाद, और कहां उसे पाएंगे। तो यह दौड़ कभी खत्म नहीं होने वाली। लेकिन आप खुद को खो सकते हैं। ऐसा करना आसान है क्योंकि आपकी सत्ता सीमित है। अगर आपने खुद को खो दिया तो जो भी पाने योग्य है, वह खुद ही आपके सामने होगा।
खुद को मिटाते जाना होगा
यह चीज हमेशा जारी रहनी चाहिए - चाहे आप कहीं भी हों, कोई भी काम कर रहे हों। हमेशा यह देखिए कि अपने हर काम, हर गतिविधि के जरिए खुद को स्थापित करने की बजाय कैसे खो सकते हैं। जो यह मानता है कि उसने खुद को स्थापित कर लिया है, उसका कुछ नहीं हो सकता है। जब आपको लगता है कि आप स्थापित हैं, आप स्वाभाविक रूप से उतने ही असुरक्षित हो जाते हैं। क्या कभी आपने महसूस किया है कि व्यवस्थित जीवन में असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है? जब बचपन में आपके पास कुछ नहीं था तो आप कितने मजे में थे? जवानी में भी संभवतः आपके पास अपना कुछ नहीं था। तब फटी जींस में भी आप आराम से घूमते थे। लेकिन जैसे-जैसे जीवन व्यवस्थित हुआ, साजो-सामान बढ़ता गया, परिवार, घर, कार, बैंक बैलेंस, जायदाद आ गई और अब आप खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे।
कुछ लोग हमेशा कुछ न कुछ बनना चाहते हैं। आप अपने शरीर को देखें, आप इसे केला, मूंगफली या सेब, जो भी दें- यह उसे भी शरीर ही बना देता है। जिस भौतिक शरीर में इतनी बुद्धि और चमत्कारिक शाक्ति है, वह अभी आपको जाल में फंसाने के काम आ रही है। यह भौतिक शरीर एक संभावना होने के साथ-साथ एक जाल भी है। इसे आप अपना घर कह सकते हैं, बशर्ते आप अपनी मर्जी से इसमें आ-जा सकें। अगर आप घर में जा कर बाहर न आ सकें तो इसे कैद कहा जाएगा। इस समय यही हो रहा है।
पसंद-नापसंद बढ़कर अलग-अलग रूप ले लेतीं हैं
अगर आपने खुद को खोने और कुछ न बनने का फैसला किया तो आप इस घर में नहीं उलझेंगे। आप इससे परे का अनुभव पाने लगेंगे। धीरे-धीरे, घर की दीवारें ऐसी हो जाएँगी कि यह आपको भौतिकता से परे जाने की आजादी देंगी। लेकिन खुद को खोना, एक आंतरिक काम है। अगर मैंने कोई छेद करना चाहा तो आपको चोट लगेगी और मैं मुश्किल में पड़ सकता हूँ। तो यह काम आपके भीतर से होना चाहिए - बाहरी मदद ली जा सकती है पर काम भीतरी ही है।
अगर आप खुद को खोना चाहते हैं, तो सबसे बुनियादी चीज है आपकी पसंद और नापसंद। बाकी सारी चीजें इसी पर टिकी हैं। ज्यादातर लोग पसंद और नापसंद के आधार पर ही अपना व्यक्तित्व गढ़ते हैं। अमेरिका में लोग अक्सर कहते सुने जाते हैं, ‘आई एम अ कॉफ़ी पर्सन’,‘आई एम अ ग्रीन टी पर्सन’ ‘‘आई एम अ बीयर पर्सन’। यानी आपका व्यक्तित्व आपकी पसंद और नापसंद से ही बना है। जो पसंद होता है, वही आपके मन में सकारात्मक रूप बड़ा रूप ले लेता है और जो नापसंद होता है वह नकरात्मक रूप से बड़ा हो जाता है।
एक बार जब आप यह प्रक्रिया शुरु करते हैं और अगर आपके भीतर किसी चीज को बढ़ा-चढ़ा देने का भाव हो, तो हम कहते हैं कि आपका एक व्यक्तित्व है। अगर आपमें अपनी पसंद और नापसंद का बोध ज्यादा मजबूत है, तो हम कहते हैं कि आपका व्यक्तित्व बहुत स्ट्रांग है। अगर आपकी पसंद-नापसंद का स्तर बहुत ज्यादा हो तो आपको अत्याचारी कहा जाता है। अगर आपकी पसंद-नापसंद का स्तर असामान्य रहा तो आपको ‘क्रेजी’ कहा जाता है। अगर आप पहला कदम भी लेते हैं, आपको पता होना चाहिए कि आप क्रेजी हैं- इतने अधिक नहीं कि लोगों को पता चल जाए, लेकिन आप छुपे पागल हैं, आपने पागलपन की और जाने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। हो सकता है कि आप इसे बस में कर सकें या फिर यह बेकाबू भी हो सकता है, ये इस पर निर्भर करेगा कि जीवन आपको कैसे हालात दिखाता है।
यह सादा अभ्यास करें
मैं चाहता हूँ कि आप यह एक सीधा व सरल सा अभ्यास करें। अपनी तीन पसंद और तीन नापसंद चीजों को चुनें। अगर कोई व्यक्ति नापसंद हों तो उनकी तस्वीरें ले लें। अब देखें कि आप जिसे पसंद करते हैं, उसे ही आप नापसंद भी कर सकते हैं। जो नापसंद हो, उसे पसंद कर सकते हैं। आप अपनी पसंद और नापसंद को आपस में बदल सकते हैं। बस जरुरत है चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर देखने की। लेकिन इससे आप एक बार फिर उसी हालत में होंगे, बस पसंद और नापसंद की चीजें बदल चुकी होंगी।
इस एक प्रयोग से होकर गुजरिए क्योंकि आपके लिए यह जानना बहुत मायने रखता है कि आपकी पसंद या नापसंद का, दरअसल कोई हकीकत नहीं है। आपने उन्हें अपने मन में बनाया है। अगर आप चाहें तो आपको जहर का स्वाद भी अच्छा लग सकता है। कुछ दिन ऐसा करें . आज आपको यह पसंद है, कल आपको कुछ और पसंद करें। एक दिन जो पसंद है, अगले दिन उसी को नापसंद करें। फिर एक दिन जो नापसंद था उसे पसंद करें। कुछ समय बाद आप जान लेंगे कि आप एक बेवकूफी से भरा खेल खेल रहे हैं और खुद को मिटा रहे हैं। अपने साथ ऐसा न करें।
क्या आप आजीवन अपने दिमाग मंे चल रहे तमाशे के साथ जीना चाहते हैं? या फिर जीवन को जान कर इसका अनुभव पाना चाहते हैं या कम से कम इस जीवन के स्पर्श को जानना चाहते हैं? यह जीवन इसलिए ही है कि इसे इसकी पूरी क्षमता के साथ खिलने दिया जाए। यह जीवन आपके तमाशे के लिए नहीं है। यह आपका मंच नहीं है। यह सृष्टि उस सर्जक के लिए एक मंच है जिस पर वह अपनी पूरी आभा के साथ नृत्य करता है। जीवन आपको थोड़ी इजाजत देता है कि आप छोटी सी भूमिका कर लें, लेकिन यह सोचना शुरु मत कर दीजिए कि यह सब सही है और अपना कलेजा निकाल कर रखना है। यह आपका नाटक नहीं है। इस कॉस्मिक तमाशे को खुद को छूने दें - बस यह जीवन यही है।