बच्चों को प्रकृति के साथ क्यों जुड़ना चाहिये?
देहरादून साहित्य उत्सव( लिट् फेस्ट) में रस्किन बॉन्ड के साथ बातचीत के दौरान, सद्गुरु और ये लोकप्रिय लेखक अपनी युवावस्था तथा पर्वतों से अपने जुड़ाव को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इन दोनों के जीवन में एक रचनात्मक भूमिका अदा की !
सद्गुरु:जब मैं बहुत छोटा था, तब से ही मेरे मन में किसी पहाड़ की एक चोटी की तस्वीर हमेशा रहती थी। मेरी आँखें खुलीं हो या बंद, वह तस्वीर हमेशा मेरे मन में छाई रहती थी।मुझे यह भी लगता था कि ऐसा सबके साथ होता है – सबकी आँखों में ऐसी तस्वीर रहती है। यह भ्रम मेरा तब टूटा जब मैं 16 साल का हुआ। 16 साल की उम्र में जब मैंने अपने कुछ मित्रों से यह कहा तो उन्हें लगा कि मैं पागल हूँ। तब पहाड़ की उस खास चोटी को, जिसे मैं हमेशा देखा करता था, मैने ढूंढना शुरू किया।
मैं महीनों तक कर्नाटक और केरल के पश्चिमी इलाक़ों में घूमता रहा। फिर कारवार से कन्याकुमारी तक मैंने मोटरसाइकिल पर 11 बार यात्रा की और हर संभव शिखर पर नज़र डाली। फिर भी जब वह खास चोटी दिखाई नहीं दी तो 19 वर्ष की उम्र में, मैंने हिमालय के इलाक़े में जाना शुरू किया। लेकिन जैसे ही मैंने हिमालय की चोटियों को देखा तो मुझे समझ आ गया कि मैं जो ढूंढ रहा था, वह वहां नहीं था क्योंकि उन पहाड़ों का तो रूप ही बिल्कुल अलग था।
फिर, कई सालों बाद, मैने दक्षिण भारत के उस पहाड़ को पहली बार देखा, जिसके पास आज ईशा योग सेंटर स्थित है। तो मैं पहाड़ों का प्रेमी नहीं हूँ, मैं उनका गुलाम हूँ, मैं उनके बगैर जी सकूँ, यह किसी भी हाल में संभव नहीं है।
रस्किन बॉन्ड : सही है, हम दोनों ही पर्वतों के गुलाम हैं। मैं जब भी कहीं जाता हूँ, चाहे वो सिर्फ एक सप्ताह के लिये ही हो, मुझे पहाड़ों का खिंचाव महसूस होने लगता है। मुझे हमेशा वापस आ जाने की इच्छा होने लगती है क्योंकि एक बार जब पहाड़ आप के खून में घुस जाते हैं तो फिर वे बाहर नहीं आते।
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देहरादून साहित्य उत्सव में सद्गुरु की रस्किन बॉन्ड से बातचीत
घर में मेरे परपोते हैं। वे सदगुरु के बारे में मुझसे पहले से जानते थे। मैं सोचता था कि ये लड़के कोई बहुत आध्यात्मिक तो हैं नहीं, फिर सद्गुरु में ऐसा क्या है जो इन्हें खींचता है? तब बच्चों ने बताया, ‘वे मोटरसाइकल पर घूमते हैं’। तो कृपया अपने मोटरसाइकल वाले दिनों के बारे में बताइये।
सद्गुरु: अभी कुछ दिनों पहले, किसी ने मुझे बताया कि चेक मोटरसाइकल, जावा, फिर से भारत में आने वाली है। एक समय था जब मैं जावा मोटरसाइकल इतनी ज्यादा चलाता था जितनी कभी किसी ने चलाई नहीं होगी। हर साल मैं लगभग 55 से 60, 000 किमी चलाता था। 7 साल तक, मैं कह सकता हूँ कि मैं लगभग मोटर साइकिल पर ही रहता था।
मैं भारत में चारों ओर, इधर से उधर घूमा। किसी खास स्थान पर जाने के लिये नहीं, मुझे बस हर एक इलाका देखना था। मेरे लिये सब कुछ चित्र रूप ही होता है। मैं कभी, कुछ भी शब्द में नहीं सोचता था। मैं बस सभी इलाके देखना चाहता था, जमीन के हर हिस्से का हर टुकड़ा।
कुछ साल पहले, मैं हिमालय के इलाके में एक बार फिर गया और मैं गाड़ी चला रहा था। किसी ने मुझे एक तेज़ कार दी थी तो मैं पहाड़ों पर 150 से 160 किमी प्रति घंटे की गति से चला रहा था। लोग मुझे कहते थे कि सद्गुरु, आप ख़ुद को मार ही डालेंगे। तब मैंने उन्हें बताया, ‘इन रास्तों का हर मोड़ मेरे दिमाग में बसा है। में आंख बंद कर के भी गाड़ी चला सकता हूँ।
ये यात्रायें संभवतः मेरे जीवन की सबसे ज्यादा क़ीमती हिस्सा थीं क्योंकि मैं बिना किसी खास मक़सद के बस घूमता रहता था। मैं जो भी पढ़ता था वह भी बिना किसी मक़सद के पढ़ता था। मैं जब बड़ा हो रहा था तो अपनी किताबें बेच कर अपनी पसंद के उपन्यास ले आता था। जब तक परीक्षाएं न आ जायें, मैं कभी किताबें देखता भी नहीं था। हालाँकि यहां ऐसी बातें करना गलत है, क्योंकि यहाँ बहुत सारे बच्चे भी हैं।
देहरादून साहित्य उत्सव में सद्गुरु की रस्किन बॉन्ड से बातचीत
रस्किन बॉन्ड: मैं जब देहरादून में बड़ा हुआ, तब साईकिल का दौर था। सभी बच्चे और जवान साइकिल पर घूमते थे। उस समय कारें बहुत कम होतीं थीं और मोटर साइकिलें भी ज्यादा नहीं थीं। सभी लोग साइकिलों पर घूमते थे। मैं बहुत बार गिर जाता था, फिर शहर में चारों ओर पैदल ही घूमता था। मुझे हर सड़क, हर गली मालूम थी। इस कारण से वे मुझे ‘रोड इंस्पेक्टर’ कहते थे। आजकल आप को कहीं साइकिलें नहीं दिखतीं। आजकल के टेक्नोलॉजी युग में आज के बच्चे बहुत सारी ध्यान बंटाने वालीं चीजों के साथ बड़े हो रहे हैं। लोग कहते हैं कि वे पढ़ते नहीं हैं लेकिन मैं अभी भी बहुत सारे ऐसे युवाओं से मिलता हूँ जो पढ़ते हैं और बहुत सारे ऐसे हैं जो लिखते भी हैं।
सद्गुरु: टेक्नोलॉजी कोई खराब चीज़ नहीं है। दुर्भाग्यवश लोग ऐसी बातें करते रहते हैं जिनसे लगता है कि टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को बिगाड़ रही है। सिर्फ टेक्नोलॉजी ही नहीं, किसी भी चीज़ का गैर जिम्मेदाराना इस्तेमाल हमारे जीवन को बिगाड़ेगा। अपने दिनों में, आप और मैं, जब हम बच्चे थे, तब हम शारिरिक रूप से बहुत ही ऐक्टिव रहते थे। हम चाहे जो खाते, जितना खाते,फिर भी दुबले पतले रहते थे। बढ़ती उम्र का कोई भी लड़का या लड़की किसी हाल में मोटे नहीं होते थे क्योंकि हम हमेशा गतिविधि में लगे रहते थे।
मुझे लगता है कि आज के बच्चों के विकास में जो एक बड़ी चीज नहीं है वो है उनका आसपास के दूसरे जीवन – पेड़-पौधे, कीड़े, पशु-पक्षी, रेंगने वाले जीव और बाक़ी सभी तरह के जीवन, से किसी भी तरह का कोई भी संबंध ही नही रह गया है। कोई जुड़ाव है ही नहीं। एक मनुष्य के लिये यह मानना अच्छा नहीं है कि इस धरती पर वही सब कुछ है और दूसरे जीवन का कोई महत्व ही नहीं है।
रस्किन बॉन्ड : मुझे लगता है कि बच्चों को, युवाओं को, हमारे आसपास पर्याप्त खुली जगहें ही नहीं मिलतीं।
सद्गुरु: किसी को अन्य जीवन के बारे में पता ही नहीं है, प्रकृति के साथ किसी का कोई संबंध ही नहीं है, जो कुछ है बस सतही है। स्कूल को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि बच्चों का संबंध प्रकृति से बने। यह कोई पर्यावरण के बारे में जागरुक करने की बात नहीं है। अगर मानवता की तरक़्क़ी होनी है तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप को यह समझ आए कि सभी प्रकार के जीवन को पृथ्वी पर रहने का अधिकार है। वे यहां हमसे पहले से हैं।