प्रश्न: क्या कुछ ऐसे भी शारीरिक दिक़्क़तें हैं, जिन्हें अपने भीतर ठीक किया जा सकता है? किन दिक्कतों में बाहरी मदद यानी थैरेपी, दवाओं और सर्जरी की जरूरत पड़ती है? उनके बीच अंतर कैसे करें?

क्या चुम्बक पहनने से बीमारी ठीक हो सकती है?

सद्‌गुरु : आधुनिक हेल्थकेयर सिस्टम काफी लोगों को बाहरी मदद लेने के लिए उकसाती हैं, भले ही उसकी जरूरत न हो। यह एक संस्कृति बन गई है, मगर उससे भी ज्यादा यह एक बड़ा कारोबार बन गया है। अमेरिका के उन्नीस ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था में से करीब तीन ट्रिलियन डॉलर हेल्थकेयर पर खर्च होता है। यह बिल्कुल भी अच्छा संकेत नहीं है। बहुत सारी प्रक्रियाएं, उपचार और सर्जरी काफी हद तक गैर जरूरी होते हैं, मगर उनका होते रहना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है – इसलिए आपको इन्हें चलाते रहना पड़ता है।

विशेषज्ञ डॉक्टर की राय – क्या ये जरुरी है?

सिर्फ कुछ खास चीजों में बाहरी दख़ल की जरूरत होती है। सवाल है कि इनमें अंतर कैसे करें? पहले तो आपको हर वह चीज करके देखनी चाहिए, जो संभव हो। फिर भी अगर काम न बने, तब आप बाहरी मदद लें। हो सकता है यह बात आधुनिक समाज के हिसाब से बिल्कुल अलग लगे, लेकिन अगर आप ठीक से ध्यान दें तो आपको हमेशा किसी महान विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है। मान लीजिए, आपके हाथ में दर्द है, तो सिर्फ़ ध्यान से देखने से आप यह समझ सकते हैं कि यह खास मांसपेशी सूजी हुई है, इसलिए उसे आराम की जरूरत है। मगर कोई अपना दिमाग नहीं लगाना चाहता, वे बस विशेषज्ञ की राय लेना चाहते हैं।

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मैं आपसे कह रहा हूं कि आप ही विशेषज्ञ हैं क्योंकि एक डॉक्टर कभी नहीं जान सकता कि कहां और कितना दर्द हो रहा है।

मैं आपसे कह रहा हूं कि आप ही विशेषज्ञ हैं क्योंकि एक डॉक्टर कभी नहीं जान सकता कि कहां और कितना दर्द हो रहा है। वह सिर्फ उतना ही जानता है, जितना आप उसे बताते हैं या वह उंगली से छूकर पूछता है और आप उसे जैसा बताते हैं, उसी से वह जान पाता है। तो सबसे बेहतर आप जानते हैं। लेकिन अगर आपके जीने का तरीका ऐसा है कि आप सिर्फ ऊपरी सतह पर ध्यान देते हैं, शरीर पर नहीं तो किसी और को बताना पड़ेगा कि किस मांसपेशी को आराम चाहिए और किसे कसरत। हो सकता है कि आप यह जानने के बाद भी ज़रूरत के अनुसार कसरत न करें, क्योंकि आप आलसी हैं, आपके पास समय नहीं है, या ऐसा ही कुछ कारण है आपके पास। यह अलग चीज है। लेकिन अगर आप पर्याप्त ध्यान दें तो हर कोई इसे जानने में समर्थ है कि उसे आराम की ज़रूरत है या कसरत की। आपको यह जानने के लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं है।

क्या बीमारी हमारे मन की उपज है?

70 फीसदी बीमारियों में डॉक्टर के इलाज की जरूरत नहीं होती

निश्चित रूप से कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जिन्हें आप नहीं जानते, जिनके लिए आपको एक विशेषज्ञ की जरूरत होती है। वह आपको बताता है कि आपके शरीर में क्या गड़बड़ी है। अगर आपकी किडनी काम नहीं कर रही है, तो हो सकता है कि आपको पता न चले। आप समझ नहीं पाते कि ऐसे लक्षण क्यों हो रहे हैं। फिर डॉक्टर की जरूरत पड़ती है। मगर रोजाना लोगों के सामने जो ढेर सारी समस्याएं आती हैं, उनके लिए आपको किसी बाहरी मदद की जरूरत नहीं होती। आप मुझसे पूछें, तो अगर लोग अपना खान-पान सही कर लें, और अपनी खुशहाली के लिए कुछ चीजें करने को तैयार हों तो सत्तर से अस्सी फीसदी उपचार और साठ फीसदी सर्जरी के बिना भी लोग ठीक रह सकते हैं।

मैं आपसे कह रहा हूं कि आप ही विशेषज्ञ हैं क्योंकि एक डॉक्टर कभी नहीं जान सकता कि कहां और कितना दर्द हो रहा है।

मेरे ख्याल से औसतन सत्तर फीसदी बीमारियों के लिए इलाज की जरूरत नहीं होती, उनके लिए अनुशासन(डिसिप्लिन) की जरूरत होती है। लगभग तीस फीसदी बीमारियों को इलाज और बाहरी मदद की जरूरत होती है। अगर लोगों के खुद के साथ सही चीजें करने पर दुनिया की सत्तर फीसदी उपचार की जरूरत गायब हो जाए, तो हम कह सकते हैं कि मानव जाति अधिक से अधिक सेहतमंद है। थोड़ा बहुत इधर-उधर हो सकता है, जिसमें आलसी और अज्ञानी लोगों के लिए थोड़ी गुंजाइश हो सकती है, मगर बाकी सब थोड़ा सा ध्यान देकर और कोशिश करके अपनी समस्याएं ठीक कर सकते हैं।

जब भी मुझे थोड़ी-बहुत परेशानी होती है, मैं हमेशा डॉक्टर से पूछता हूं, ‘क्या हुआ है?’ वे बताते हैं, ‘आपको यह हुआ है, आपको वह दवा लेनी होगी।’ मैं वह दवा नहीं लेता, मगर कुछ और करता हूं। मेरे आस-पास के लोग परेशान हो जाते हैं, ‘फिर आप डॉक्टर के पास क्यों जाते हैं?’ मैं बस एक राय लेना चाहता हूं। मैं जानता हूं कि मेरे साथ यह हो रहा है, मगर मैं उसे जांचता भी हूं। मैं इतना अहंकारी नहीं हूं कि बस सोच लूं कि यही है। इसलिए मैं बस जांचता हूं, मगर क्या मुझे उनकी सलाह मानने की जरूरत है? नहीं। मैं वह करूंगा, जो मेरे लिए सबसे बेहतर कारगर होता है।

शरीर और हर कोशिका सेहत के लिए काम कर रहे हैं

इसके लिए खुद पर ध्यान देने और जागरूकता के एक खास स्तर की जरूरत पड़ती है। ध्यान रखिए कि सेहत की जरूरत से अधिक चिंता करना भी ख़ुद में एक बीमारी है। अगर आप दुनिया में, खास तौर पर अमेरिका में, सेहत के बारे में मौजूद किताबों की संख्या और छपे पन्नों की मात्रा को देखें, तो लगता है कि सेहत को लेकर बहुत अधिक मोह है। यह अपने आप में एक बीमारी है। तो क्या आपको सेहत को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए? हां, होना चाहिए। मगर आपको समझना चाहिए कि आपके शरीर की हर कोशिका कुदरती रूप से सेहतमंद होना चाहती है। आपको अपने मन में इसे लेकर इरादा करने की जरूरत नहीं है।

मगर आपको समझना चाहिए कि आपके शरीर की हर कोशिका कुदरती रूप से सेहतमंद होना चाहती है। आपको अपने मन में इसे लेकर इरादा करने की जरूरत नहीं है।

आपके मन में सेहत एक इरादे की तरह तभी आती है, जब आप गलत खाते हैं, गलत तरह से जीते हैं, गलत पीते हैं, गलत तरह से सांस लेते हैं, सब कुछ गलत करते हैं। फिर आपको यह इरादा करना पड़ता है, ‘मैं सेहतमंद होना चाहता हूं।’ अगर आप ये सभी चीजें सही तरह से करते हैं, तो आपको नहीं सोचता पड़ता कि मैं सेहतमंद होना चाहता हूं। आपके शरीर की हर कोशिका सेहतमंद होने के लिए लालायित(इच्छा कर रही) है। बस उन्हें अकेला छोड़ दें। उन्हें बीमार न बनाएं। वे खुद अपना काम कर लेंगी।

मगर हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां हम गलत चीजों को सांस से अंदर ले रहे हैं, जो चीजें नहीं पीनी चाहिए, उन्हें पी रहे हैं, अनजाने में ऐसी चीजें खा रहे हैं, जिन्हें नहीं खाना चाहिए। थोड़ी अधिक सावधानी रखना जरूरी है क्योंकि हम आज एक जहरीली दुनिया में जी रहे हैं। हमने खाने-पीने की हर चीज को जहरीला बना दिया है। मगर सेहत शरीर और शरीर की हर कोशिका की एक कुदरती चाह होती है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे आपको एक मिशन की तरह चलाना पड़े।