बलात्कार की बढ़ती वारदातों का समाधान क्या है?
युवाओं जुड़ो सत्य से! अभियान के एक संवाद के दौरान एक विद्यार्थी ने सद्गुरु से पूछा कि वो कौन सी चीज़ है जो किसी व्यक्ति को बलात्कार की अमानवीय क्रिया के लिए उकसाती है। सद्गुरु हमें नई पीढ़ी में आ रहे सांस्कृतिक बदलावों के बारे में बता रहे हैं। वे बताते हैं कि आज की पीढ़ी ने युवाओं को उन समाधानों से वंचित कर दिया है, जो आम तौर पर शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को संतुष्ट करते थे। सद्गुरु कहते हैं कि सिर्फ सजा पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय बहस करने और मुद्दे को हल करने का समय आ गया है।
प्रश्न: सर, हम अपने भारत को एक स्त्री के रूप में देखते हैं और उन्हें ‘मदर इंडिया’ बुलाते हैं। फिर भी हम बहुत से बलात्कार के मामले देखते हैं, यहां तक कि व्यक्ति द्वारा अपनी ही मां, बेटी या बहन के बलात्कार के भी मामले देखने को मिलते हैं। ऐसा अमानवीय कृत्य(काम) करने के लिए किसी व्यक्ति को क्या ऐसे पागलपन के लिए उकसाता है?
क्या फांसी देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा?
सद्गुरु: हम पृथ्वी को ‘धरती मां’ कहते हैं। क्या इसका मतलब है कि धरती पर सारा अपराध रुक जाएगा? नहीं। अलग-अलग तरह के अपराध होते हैं। स्त्रियों पर यौन हमले बहुत आम हैं। इसके कई पहलू हैं। हम गुस्से में आकर बोल सकते हैं, ‘ठीक है, उन्हें फांसी दे दो।’ अगर आप बलात्कार की सजा के तौर पर फांसी को लाएंगे तो आपको समझना चाहिए कि बलात्कार के मामले में एकमात्र गवाह लगभग हमेशा पीड़िता होती है। अगर आप एक बलात्कारी को इस बात की गारंटी दें कि बलात्कार करके पकड़े जाने पर तुम्हें फांसी लगनी तय है, तो आपके ख्याल से वह क्या करेगा? वह उस एकमात्र गवाह को रास्ते से हटा देगा। तो कुछ कहने से पहले हमें सतर्क रहना चाहिए कि हम क्या कह रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनका समर्थन कर रहे हैं। सवाल बस यह है कि आपको समाधान चाहिए या कंगारू कोर्ट : ‘हर किसी को फांसी पर लटका दो।’
इस पीढ़ी में हमारे देश में बदलाव आ रहे हैं
हमें देखना चाहिए कि यह हो क्यों रहा है। पहली चीज यह है कि एक संस्कृति के रूप में भारत के लिए यह पहली पीढ़ी है जिसमें स्त्रियां वास्तव में सड़क पर निकल रही हैं, पुरुषों के साथ चल रही हैं और उनके करीब रह कर काम कर रही हैं। लोगों को इसकी आदत नहीं है। साथ ही लाखों युवा गांवों से शहरों में आ रहे हैं। उनके गांव में उनके लिए स्त्री का मतलब उनकी मां, उनकी मौसी, अत्ते या पाटी (बुआ या दादी) होती थी। अब वे शहर आकर युवा लड़कियों को सड़क पर चलते देखते हैं। यह उनके लिए बहुत नया है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए कि चीजों को अनदेखा कर दें और ऐसा दिखाएं मानो हम कहीं से टपके हैं।
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इंसानों में सेक्शुअलिटी या यौनिकता होती है। पंद्रह से पच्चीस की उम्र के बीच हार्मोन का असर अधिकतम होता है। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में खेल, कला, संगीत, शिक्षा जैसी चीजों में बुद्धि के विकास, और खुद को व्यक्त करने के दूसरे तरीकों में अनुशासित होता है, तो खुद को व्यस्त रखने के लिए बहुत सारी चीजें होती हैं। अगर आपको व्यस्त रखने के लिए कुछ नहीं है, सिर्फ आपके हारमोन आपके भीतर उछल रहे हैं फिर उसके बाद आप अपने गांव से शहर आते हैं और अचानक युवा लड़कियों को देखते हैं। आपने फिल्मों में जैसे लोगों को देखा था, वे सड़क पर चल रहे हैं। आदमी पागल हो जाता है। सबसे बढ़कर, आप हर कहीं शराब को बढ़ावा दे रहे हैं। जैसे ही शाम को उसके भीतर शराब की दो बूंद गिरती है, वह पूरा पागल हो जाता है। अगर उसे लगता है कि कोई देख नहीं रहा, तो वह किसी पर टूट पड़ेगा।
अमानवीय वातावरण में जीवन गुजारना
इसमें एक सामाजिक मुद्दा भी है। अगर वह गांव में होता, उसकी मां, मौसी और और कोई यह कहती, ‘तुम उस लड़की को जानते हो, हम उस लड़की से तुम्हारी शादी कर देंगे।’ वह उस लड़की से शादी करे या नहीं, उसके दिमाग में उसकी जरूरतों का एक हल मौजूद होता है।
अब वह अकेले शहर आता है। एक कमरे में दस लड़कों के साथ रहता है, दिन-रात एक बेकार और अमानवीय माहौल में काम करता है। वह बंदी शिविर की तरह होता है। अधिकांश लड़के उस तरह की स्थितियों में रहते हैं। और उसके लिए कोई समाधान नहीं होता – उसके हारमोन्स, उसके शरीर, उसकी भावनाओं, उसके जीवन के लिए। एक भी आदमी जाकर उससे नहीं पूछता, ‘तुम जीवन में क्या करोगे? किससे शादी करोगे? अपना जीवन कैसे बसाओगे?’ कोई एक इंसान भी उसकी तरफ देखता है? नहीं। जब वह शाम को दोस्तों के साथ शराब पीता है, तो पागल हो जाता है। लोग हर तरह के पोर्नोग्राफिक(अश्लील) वीडियो भी बेचते हैं। वह उन चीजों को देखता है और सोचता है कि वही करना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर इसका हल खोजना होगा
जब कोई अपराध करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए – यह अलग मामला है। मैं उसमें नहीं पड़ने जा रहा। मगर सामाजिक तौर पर इसका क्या हल है? क्या आप उन्हें संन्यासी बनने की शिक्षा दे रहे हैं? आप उन्हें योग या साधना सिखा रहे हैं ताकि वे ब्रह्माचारी बनकर इन चीजों से मुक्त हो जाएं? नहीं, आपने उन्हें ऐसा कुछ नहीं सिखाया। क्या आप उन्हें कोई हल दे रहे हैं? अगर वह गांव में होता, तो अठारह, उन्नीस साल की उम्र तक उसकी शादी हो चुकी होती। अब उसे कोई उम्मीद नहीं है। वह बस वहां रहता है और वह पागलपन की चीजें करेगा। एक इंसान की प्रकृति यही है, यह हमें समझना चाहिए।
आज युवा के जीवन में कोई समाधान नहीं है
सिर्फ पचास साल पहले लगभग हर लड़की की सोलह-सत्रह साल की उम्र तक शादी हो जाती थी। बीस से पहले लड़के की शादी हो जाती थी। काबू से बाहर होने से पहले उसकी समस्याएं हल हो जाती थीं। एक पीढ़ी और संस्कृति के तौर पर यह स्थिति बदल चुकी है। अब उसके जीवन के लिए कोई समाधान नहीं है। हमें बहस करने के लिए तैयार रहना चाहिए कि ‘हम अपने युवाओं के साथ क्या करने वाले हैं?’ केवल शुद्धतावादी होना काम नहीं करेगा।
संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org