सद्‌गुरुबात महाभारत काल की हो या आधुनिक समय की – ये दो शब्द- धर्म और अधर्म कई अर्थों में इस्तेमाल होते हुए हम देखते हैं। आखिर क्या है धर्म और क्या है अधर्म और क्या है दोनों में अंतर?

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धर्म और अधर्म

महाभारत की पूरी कहानी दो मूलभूत पहलुओं के आस-पास घूमती है – धर्म और अधर्म। ‘धर्म’ और ‘अधर्म’ को ज्यादातर लोग सही और गलत या अच्छे और बुरे के रूप में देखते हैं। धर्म और अधर्म को देखने के अलग-अलग तरीके हैं। क्षत्रिय यानी योद्धा का अपना अलग धर्म होता है। ब्राह्मण यानी गुरु का धर्म कुछ और होता है। इसी तरह वैश्य और शूद्र के धर्म अलग-अलग होते हैं।
यह जीवन को देखने का एक विवेकपूर्ण तरीका है। न सिर्फ अलग-अलग वर्गों के लोगों का अपना अलग धर्म होता है, हर व्यक्ति का भी अपना अलग धर्म होता है। आप बार-बार भीष्म और हर किसी को कहते सुनेंगे - ‘यह मेरा धर्म है।’ अगर हर किसी का अपना धर्म, अपना कानून होता है तो फिर हम पूछ सकते हैं कि कानून कहां है? कुरुक्षेत्र की लड़ाई इसलिए नहीं हुई क्योंकि हर किसी का अपना कानून था जो परस्पर विरोधी थे या आपस में टकराते थे। युद्ध इसलिए हुआ क्योंकि लोगों ने अपना धर्म तोड़ा। यह जीवन को देखने का एक तरीका है, जहां हर किसी का अपना धर्म हो सकता है, मगर फिर भी सब एक सामान्य धर्म की डोर से बंधे होते हैं, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता। इस तरह से हर कोई आजादी के साथ अपना जीवन जी सकता है मगर फिर भी एक-दूसरे के साथ कोई टकराव नहीं होता। धर्म की इस मूलभूत डोर ने ही सभ्यता के अस्तित्व को संभव बनाया।

मत्स्य न्याय

धर्म की स्थापना से पहले, मत्स्य न्याय नाम की एक चीज थी। इस संबंध में एक कहानी है। एक दिन एक नन्हीं सी मछली खुशी-खुशी गंगा में तैर रही थी। तभी उससे बड़ी एक मछली कहीं से आ गई। छोटी मछली बड़ी मछली का आहार बन गई और बड़ी मछली खुश हो गई। दूसरे दिन, उससे भी बड़ी मछली आई और इस मछली को खा गई। इसी तरह बड़ी से बड़ी मछलियां आती गईं और खुद से छोटी मछली को खाती गईं। फिर नदी की सबसे बड़ी मछली समुद्र में गई। उसने वहां की छोटी मछलियों को खाना शुरू किया और कुछ दिनों में वह इतनी विशाल हो गई कि उसके सिर्फ पूंछ हिलाने से समुद्र का पानी बढ़ कर हिमालय को छू लेता। वह विशालकाय मछली दुनिया के लिए एक खतरा बन गई।
इस कहानी को सही संदर्भ में समझे जाने की जरूरत है। आज भी यह एक सच्चाई है कि हर मछली अपने वर्तमान आकार से बड़ी होने की कोशिश कर रही है। अगर सारी मछलियां एक ही रफ्तार से बढ़ेंगी, तो वह एक सभ्य समाज होगा। लेकिन यदि एक मछली विशालकाय हो जाए, तो समाज के मूलभूत नियम और सभ्यता चूर-चूर हो जाएंगे। उस बड़ी मछली की सनक कानून बन जाएगी।
मत्स्य न्याय से आगे बढ़कर इंसान ने ऐसा समाज विकसित करना चाहा, जहां हर व्यक्ति के पास अपनी आजादी हो और वह समाज में नियमों की मूलभूत डोर को तोड़े बिना अपने नियम पर चल सके। उस डोर को तोड़ने से टकराव होगा। समाज में हर कहीं, यहां तक कि सरल भौतिक पहलुओं में भी सरल नियम-कानून बनाए जाते हैं। मसलन, भारत में हम सड़क के बाईं ओर गाड़ी चलाते हैं। मगर भारत एक विविध संस्कृतियों वाला समाज है, जिसमें बहुत से लोग असभ्य और स्वच्छंद हैं जो तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें सड़क के किस ओर गाड़ी चलाना है।

महाभारत में धर्म

महाभारत के समय ऐसी स्थिति थी, जब कुछ मछलियां बहुत बड़ी हो गई थीं और नियमों की मूलभूत डोर का सम्मान नहीं करती थीं जो हर व्यक्ति को अपनी आजादी दे सके। जब नियम-कानून या धर्म की बात की जाती थी, तो उसे सिर्फ एक नागरिक संहिता की तरह नहीं देखा जाता था, न ही उसे सिर्फ समाज में सुख-शांति के साधन के रूप में देखा जाता था। धर्म या कानून सिर्फ इंसानों द्वारा अपनी प्रतिभा, प्रेम और आजादी की अभिव्यक्ति के लिए भी नहीं था। धर्म का मतलब तो जीवन को इस तरह व्यवस्थित करना है ताकि हर कोई अपनी चरम प्रकृति की ओर बढ़ सके। अगर आप अपनी चरम, मूल, दिव्य प्रकृति की बढ़ रहे हैं, तो आप धर्म में रत हैं। अगर आप नहीं बढ़ रहे हैं, तो चाहे आप किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते, आप धर्म में नहीं हैं। महाभारत में धर्म का संदर्भ यही है।
जब कोई कहता है, ‘यह मेरा धर्म है,’ तो इसका मतलब है कि चाहे वह उन्हें पसंद न हो, उनके लिए सुविधाजनक न हो, मगर अपनी चरम प्रकृति तक पहुंचने का वही उसका रास्ता है। जब भीष्म ने कहा, ‘यह शपथ मेरा धर्म है। मैं इसे किसी कीमत पर नहीं तोड़ूंगा, चाहे कुरुवंश और पूरा साम्राज्य तहस-नहस हो जाए, हालांकि मैं अपना पूरा जीवन साम्राज्य के लिए समर्पित करने को तैयार हूं’। उनके कहने का मतलब यह था कि उनके मुक्ति पाने का तरीका यही है और वह उसे नहीं छोड़ेंगे।
आपने विदुर की बात पर ध्यान दिया होगा, विदुर कहते हैं – ‘परिवार की रक्षा के लिए, आप व्यक्ति की बलि दे सकते हैं। गांव की खातिर, आप परिवार का बलिदान कर सकते हैं। देश की खातिर आप एक गांव का बलिदान कर सकते हैं। दुनिया के लिए आप एक देश की बलि दे सकते हैं। और चरम प्रकृति को पाने के लिए आप पूरी दुनिया का बलिदान कर सकते हैं।’ धर्म को इसी संदर्भ में देखा जाता था। लोग साफ तौर पर देख सकते थे कि चरम प्रकृति ही चरम लक्ष्य है और उसका महत्व सबसे अधिक है।
आगे जारी...