ईर्ष्या – क्यों पैदा होती है, और कैसे बचें इससे?
हम कई बार अपने मन में ईर्ष्या, नफ़रत, क्रोध आदि को जन्म दे देते हैं और फिर बाद में पछताते हैं। आख़िर ये भाव पैदा कहाँ से होते हैं? क्या इनसे छुटकारा मिल सकता है? जानते हैं इससे बचने के तरीके के बारे में।
प्रश्न: मैं अपने भीतर पैदा होने वाली ईर्ष्या से कैसे बच सकता हूँ?
सद्गुरु: जब तक आप भीतर से अधूरापन महसूस करते रहेंगे, तब तक किसी इंसान के पास आपके अनुसार अपने से थोड़ा सा भी ज्यादा दिखने पर जलन महसूस होगी। जब आप बहुत ख़ुश होते हैं, तब क्या आपके भीतर कोई जलन होती है? नहीं। जब आप नाख़ुश होते हैं, तभी आपके भीतर ईर्ष्या जन्म लेती है। आप ईर्ष्या की चिंता मत कीजिए। अगर जीवन के हर पल में, आपके भीतर की ऊर्जा परम आनंद से भरी है, तो जलन कैसे टिक सकती है? जलन से लड़ने से बेहतर होगा कि अपने जीवन के अनुभव को संपूर्ण बना लीजिए।
ईर्ष्या आपका स्वभाव नहीं है
किसी चीज को छोड़ने से आजादी नहीं मिलेगी, क्योंकि छोड़ने के लिए है ही क्या? इस समय, आपके भीतर कोई ईर्ष्या नहीं है। यह आपके स्वभाव का अंग नहीं है। आप इसे समय-समय पर पैदा करते हैं। अगर आपने इसे इसलिए पैदा किया होता कि आप ऐसा करना चाहते थे, तो यह आपके लिए आनंददायक होता। अगर आपको गुस्से, जलन और नफरत से खुशी होती है तो उसे पैदा कीजिए। पर ऐसा नहीं है, वे आपके लिए ख़ुशी देने वाले अनुभव नहीं हैं। तो आपने उन्हें क्यों रचा है? आपने उन्हें रचा है क्योंकि आपके भीतर जरुरी जागरूकता की कमी है।
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बदबूदार कचरे को सुगंध में बदलें
आप जो हैं, अगर आप अपने भयानक पहलुओं को खाद की तरह इस्तेमाल में ला सकें, तो आपके जो ख़ूबसूरत पहलू हैं, वे खिल सकते हैं। यह ‘भयानक’ क्या है और इसका मतलब क्या है? जब आप किसी इंसान को बहुत ज्यादा पक्षपाती, ईर्ष्यालु, गुस्सैल, नफरत से भरा और भयभीत पाते हैं तो यही वो भयंकर रूप हैं जो इन्सान ले सकता है।
इन दिनों लोग आर्गेनिक सब्जियों की बात करने लगे हैं। इसका मतलब है कि आपको ऐसी सब्जी पसंद है जिसे थैले में बंद रासायनिक उर्वरक(पेस्टिसाइड) नहीं, बल्कि मल और कचरे की खाद दी गई है। आप समझते हैं कि इस तरह की खाद से बेहतरीन फल, फूल और सब्जी पैदा कर सकते हैं - यह सबसे बढ़िया खाद है।
यही जीवन का तर्क है। आपको इसे ही समझना होगा, इसे प्रतीक के तौर पर, मनोवैज्ञानिक टूल के तौर पर और आध्यात्मिक तौर पर भी समझना होगा। आपके मन का सादा सा तर्क कहता है कि अगर आप बाग में अच्छे फूल उगाना चाहते हैं, तो मिट्टी में बहुत सारे फूल डालें, कई सारे सुंदर फूल खिलेंगे। अस्तित्व ऐसे काम नहीं करता। यह तार्किक है पर अस्तित्व तर्क पर नहीं टिका है। मिट्टी को बदबूदार कचरा चाहिए, उसे खुशबू वाले फूल नहीं चाहिए। बदबूदार कचरा सिर्फ 'ठीक' नहीं है, यही मिट्टी की मांग है। अगर आप इसे जड़ों में डालते हैं तो आपको खुशबूदार फूल मिलेंगे। अस्तित्व ऐसे ही काम करता है।
अपने स्वभाव के साथ चलें
आपके जितने भी भयंकर रूप हैं - पक्षपात, ईर्ष्या, गुस्सा, नफरत आदि - कृपया देखें कि ये कितनी तीव्रता के साथ आपके भीतर घटते हैं। अगर उतनी ही गहराई से ध्यान हो पाता, तो यह सब कितना अद्भुत होता?
आग बुझानी होगी, धुआँ से लड़ना छोड़ना होगा
बाई-प्रॉडक्ट्स पर काम करने की कोशिश न करें। आप ख़ुद को अधूरा मानते हैं क्योंकि आप अपने भीतर से खुशहाल नहीं हैं। जो आदमी आनंदित महसूस नहीं करता, वह दरअसल बीमार है। हो सकता है कि सामाजिक रूप से आपको ठीक माना जाए - क्योंकि आपके साथ बहुत सारे लोग हैं, और यह लोकतंत्र है - पर आप जीवन के लिहाज़ से बीमार हैं। ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई जिससे आप ख़ुद को सावधानी से देखते हुए यह समझ सकें कि अनुभव का स्थान आपके भीतर है। अगर आपके अनुभव का स्थान आपके भीतर है और आपको तय करना है कि आप यहाँ कितनी अच्छी तरह रह सकते हैं, तो सबसे पहले अपने भीतर देखें और यह जानें कि आप कौन हैं।
अगर ऐसा नहीं होता तो आपका कल्याण एक संयोग मात्र ही होगा। जब यह संयोग ही होगा तो ईर्ष्या, गुस्सा, नफरत व असुरक्षा स्वाभाविक तौर पर जीवन के अंग होंगे। यह कुछ ऐसा ही है कि हम जल रहे हों और उससे धुआँ पैदा हो रहा हो। तो आप इस धुएँ से न जूझें, आपको आग से लड़ना होगा।