वेल्लयन सुब्बैया: सद्‌गुरु, आपने एक सजे-संवरे हुए बाग और जंगल की जो मिसाल दी है, वह ढांचे बनाम अव्यवस्था की सोच से बहुत मेल खाती है। क्या नेताओं के लिए यह बहुत महत्व रखता है कि वे अव्यवस्था की दशा में मैनेज करें या उन्हें उस अव्यवस्था को एक व्यवस्थित ढांचे में लाना चाहिए? कार्पोरेट जगत में, नेताओं को इस बारे में कैसे सोचना चाहिए? क्या उन्हें इस तरह की अव्यवस्था को बढ़ने देना चाहिए या उन्हें इसे एक ढांचे में लाने की कोशिश करनी चाहिए?

जंगल के इकोसिस्टम को देखें

सद्‌गुरु: अव्यवस्था कोई विकल्प नहीं है। आपका चुनाव यह है कि आप उस अव्यस्था से कुछ पा सकें। अगर आप किसी चीज को अव्यवस्थित करने का चुनाव करते हैं तो वह आपकी मूर्खता होगी।

अगर कोई चीज आपको अव्यवस्थित दिखती है तो इसका मतलब यह जरुरी नहीं कि उसमें व्यवस्था है ही नहीं। आपके पास एक सीधा मन है, और जब कोई बात आपके सीधे मन में फ़िट नहीं बैठती तो आप मान लेते हैं कि वह ‘आउट ऑफ़ ऑर्डर’ है।

आपके पास एक सीधा मन है, और जब कोई बात आपके सीधे मन में फ़िट नहीं बैठती तो आप मान लेते हैं कि वह ‘आउट ऑफ़ ऑर्डर’ है।

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एक माली के मन को जंगल अव्यवस्थित लगेगा। लेकिन ऐसा नहीं है, उसमें भी एक गहरी व्यवस्था शामिल है। तभी तो जंगल लाखों वर्षों से चले आ रहे हैं और एक बाग, देखरेख के अभाव में एक माह भी नहीं चल सकता। लोग किसी चीज को अव्यवस्थित मान रहे हैं क्योंकि उनके पास चीजों का केवल बाहरी नजरिया है। उनके पास उसका कोई भीतरी नजरिया नहीं है। अगर आप इस ईकोसिस्टम को समझें - आज, इंसान धीरे-धीरे समझ रहा है – तो आप महसूस करेंगे कि यह बहुत बड़ी व्यवस्था है क्योंकि ये अकेली चीज़ है जो लाखों वर्षों से चलती आई है।

सभी को एक ही सिस्टम में न ढालें

एक सांप सीधा नहीं चलता। इसका मतलब यह नहीं कि इसकी चाल में कोई कमी है। देखिए, आप अपने अंगों के बिना रेंग कर दिखाएँ। सांप ने बाहरी अंगों के बिना भी अपने लिए रास्ता निकाल लिया है और वह बहुत अच्छे से अपना काम कर रहा है। वह उसी के अनुसार अपने रहने का इलाका चुनता है और अपनी चीज़ें मैनेज करता है।

सबको एक ही सिस्टम में लाने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसा करने पर, भले ही आप थोड़ी कार्य-कुशलता(एफ्फीशियंसी) पा लें लेकिन आप लोगों और हालात को बर्बाद कर देंगे।

तो यह विविधता से जुड़ी बात है – विविधता जीवन की, लोगों की, जगहों की और गतिविधियों की - बेहतर नतीजे पाने हों तो, आपको इसी का उपयोग करना होगा। सबको एक ही सिस्टम में लाने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसा करने पर, भले ही आप थोड़ी कार्य-कुशलता(एफ्फीशियंसी) पा लें लेकिन आप लोगों और हालात को बर्बाद कर देंगे। आप मौजूदा इकोलॉजी को बर्बाद कर, कुछ नया बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

एक अलग तरह की व्यवस्था भी होती है

मिसाल के तौर पर, हम अपने आश्रम में निर्माण के समय कभी धरती को समतल करने के लिए बुलडोजर नहीं लाए।

हो सकता है कि कोई दूसरा हमें सराहे लेकिन हमारी हालत दयनीय हो जाती है, क्योंकि हम ख़ुद को एक सीधे लिफ़ाफ़े में बंद कर लेते हैं।

मैंने जगह के अनुसार ही डिज़ाइन तैयार किया, और उसी डिज़ाइन के अनुसार निर्माण कार्य हुआ। जब मैं यू.एस. गया तो मुझे वहाँ यह देख कर बहुत निराशा हुई कि अगर उन्हें पचास घर बनाने हों तो उसके लिए वे पचास एकड़ धरती को समतल कर देते हैं। आप इससे बुरा कुछ नहीं कर सकते। आपको अंदाज़ा तक नहीं है कि आपने कितने जीवन के रूपों को कष्ट पहुँचाया।

आपको लगता है कि व्यवस्था का एक निश्चित तरीका होना चाहिए। नहीं, व्यवस्था एक अलग तरह की भी होती है, और अगर आप उसे इंसानी मन, इंसानी चेतना और अपने कामों के बीच जगह नहीं देते, तो हम सीधी रेखाओं जैसे हो जाते हैं। हो सकता है कि कोई दूसरा हमें सराहे लेकिन हमारी हालत दयनीय हो जाती है, क्योंकि हम ख़ुद को एक सीधे लिफ़ाफ़े में बंद कर लेते हैं। हमारे होने और काम करने का तरीका एक सीधी लकीर की तरह हो जाता है।

आप हर चीज को उसके कुदरती रूप में उपयोग में लाने की बजाए, उसे अपने हिसाब से निखारना चाहते हैं। इसकी वजह है कि आप खुद को बहुत ज्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण मानते हैं। आपको लगता है कि आप उन प्राकृतिक ताक़तों, जिन्होंने हर चीज को उसका आकार दिया है, से कहीं बेहतर हैं।

जंगल राज – एक बेहतरीन अव्यवस्था है

तो अव्यवस्था कोई विकल्प नहीं है। हमेशा एक ख़ास व्यवस्था होती है, जो तार्किक तौर पर सही नहीं होती। जंगल की व्यवस्था तार्किक तौर पर सही नहीं होती, लेकिन यह सबसे बेहतर व्यवस्था है क्योंकि यह किसी भी दूसरी चीज से कहीं ज़्यादा समय से चली आ रही है। हर कोई ऐसे कारोबार के बारे में सोच रहा है जो लम्बे समय तक चले। अगर आप भी लंबे समय तक बने रहने वाला काम करना चाहते हैं तो आपको जंगल की व्यवस्था को अपनाना होगा।

सब कुछ इस तरह से होता है कि यह लाखों सालों तक काम करने के बाद भी ज्यों का त्यों बना रहता है।

आजकल भारत में, हम ‘जंगल राज’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि जंगल यानी अव्यवस्था। मैं जंगल शब्द को एक बेहतरीन व्यवस्था के रूप में ले रहा हूँ। यह पूरी तरह से परिष्कृत(रिफाइंड) व्यवस्था है, जिसमें आप सीधी रेखाओं में नहीं देखते, लेकिन सब कुछ अपनी जगह बना रहता है। सब कुछ इस तरह से होता है कि यह लाखों सालों तक काम करने के बाद भी ज्यों का त्यों बना रहता है। ये निश्चित तौर पर बेहतर व्यवस्था है, है न?