कैसे ग्रहण कर सकते हैं कृपा?
कृपा किन नियमों के अनुसार काम करती है? क्या इस नियम के अनुसार कि हर क्रिया की एक बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है? नहीं, इस तरह के भौतिक नियम वहां बिल्कुल नहीं चलते।
कृपा किन नियमों के अनुसार काम करती है? क्या इस नियम के अनुसार कि हर क्रिया की एक बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है? नहीं, इस तरह के भौतिक नियम वहां बिल्कुल नहीं चलते।
सद्गुरु:
आपको ऐसा क्यों लगता है कि हर चीज नियम-कानून से ही चलनी चाहिए? जिसे आप आध्यात्मिक प्रक्रिया कहते हैं, उसका मकसद उन नियमों को तोडऩा है, जिनमें आप बंधे हुए हैं। जब आप कहते हैं कि मुझे मुक्ति चाहिए, तो आपका मतलब यह होता है कि मैं किसी नियम से बंधा होना नहीं चाहता। तो असली चाह नियमों को तोडऩे की ही है।
अगर आप नियम के तौर पर ही देखना चाहते हैं तो गुरुत्व हर चीज को नीचे की ओर खींच रहा है और कृपा हर चीज को ऊपर की ओर उठा रही है। दोनों में से आप किसके लिए उपलब्ध हैं, यह आप पर निर्भर करता है। अगर आप शारीरिक पहलू पर ध्यान देते हैं तो आप गुरुत्व के वश में हैं। अगर आप भौतिकता से परे के पहलुओं को छू रहे हैं तो आप पर कृपा बरसने लगती है।
Subscribe
बहुत सारे तरीकों से लोग कृपा के लिए उपलब्ध होने की कोशिश में लगे हैं। कुछ पलों के लिए उन पर कृपा हो सकती है। ये पल उनके लिए चमत्कारिक हो सकते हैं। लोग अपने जीवन में तमाम चमत्कारों का दावा करते हैं।
दुनिया में कोई भी साधना हो, चाहे आप पूजा कर रहे हों, क्रिया कर रहे हों या आसन कर रहे हों या कोई और चीज, इनमें से हरेक का मूल लक्ष्य आपकी भौतिकता को कम करना है ताकि आप कृपा के लिए उपलब्ध हो सकें। आखिर वास्तविक काम तो ईश्वरीय कृपा ही करती है। आपका काम बस इतना ही है कि आप खुद को उसे ग्रहण करने के लायक बनाएं। कृपा किन नियमों के तहत काम करती है? क्या इस नियम के तहत कि हर क्रिया की एक बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है? नहीं, इस तरह के भौतिक नियम बिल्कुल नहीं चलते। जिस नियम के तहत यह काम करती है, वह यह है कि कृपा ऐसी किसी भी चीज को ऊपर नहीं उठा सकती है, जो भौतिक है। अगर कोई भी चीज ऐसी है जो भौतिक नहीं है, तो कृपा उसे अवश्य ऊपर उठाएगी। तो हमारा काम यही है कि आपको जितना कम हो सके, उतना कम भौतिक बनाया जाए। बाकी काम कृपा अपने आप कर लेगी।
एक बार अगर इंसान कोई ऐसी चीज प्राप्त कर लेता है जिसकी प्रकृति भौतिक से परे है, एक बार अगर उस पर कृपा हो जाए, तो वह पाएगा कि यह केवल ऊपर की दिशा में ही चलती है, नीचे की ओर नहीं। कृपा की वजह से वह ऐसा हो जाता है कि उसे किसी देवता की जरूरत नहीं पड़ती। उसे तो उसका ईश्वर मिल गया।
हमारा शरीर और मन दोनों ही सबसे ज्यादा भद्दे होते हैं। जब इंसान अपनी जागरूकता खो देता है, तो फिर वह जो भी करता है, वह भद्दा और अशिष्ट ही होता है। जब वह जागरूक हो जाता है, तो उससे जुड़ी हर चीज खूबसूरत हो जाती है। उसे चीजों को इस तरह से या उस तरह से करने की जरुरत ही नहीं है। वह जो भी करेगा, वह खूबसूरत ही होगा। यहां तक कि इंसान इस शरीर को भी बड़ी खूबसूरती के साथ त्याग सकता है।